सकास में उत्खनन से खुलेंगे मानव के प्राचीनकालीन जीवन के राज

राणा अवधूत कुमार
पूरे भारत में सकास जैसे नहीं मिले हैं नर कंकाल, साढ़े चार हजार वर्ष पुराने कंकाल व अन्य सामग्री मिले
खुदाई में मिले सामग्री से सकास में खेती-किसानी के मिले कई संकेत, सामग्री जांच के लिए भेजे गए पुणे
एक्सपर्ट उत्खनन में प्राप्त सामग्री 4500 वर्ष पुरानी यानी नवपाषाण काल के होने की जता रहे हैं संभावना 
सासाराम। रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से सात किलोमीटर दूर सकास गांव में करीब 4500 वर्ष पहले के नरकंकाल और कई अवशेष मिले हैं. सकास गांव में मिले नर कंकालों का समय करीब 4500 वर्ष पूर्व जान पड़ता है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास व पुरातत्व विभाग टीम इस गांव में पिछले एक माह से उत्खनन कार्य कर रही हैं. बीएचयू के प्राध्यापक डॉ. विकास कुमार सिंह के नेतृत्व व प्रो. रवींद्रनाथ सिंह के मार्गदर्शन में 15 सदस्यीय शोधार्थियों की टीम उत्खनन कार्य हो रहा हैं. इस तरह के नर कंकाल भारत के किसी अन्य पुरातात्विक स्थल से नहीं मिले हैं. यहां से मिले नर कंकाल और अन्य सामग्रियों से मानव जीवन के कई राज खुलने की संभावना है। उत्खनन में मिले सामग्री को जांच के लिए वाराणसी, नागपुर और पुणे भेजा गया हैं. पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के पूर्व महानिदेशक डॉ. राकेश तिवारी पिछले दिनों उत्खनन स्थल का दौरा करने के बाद मिले नर कंकालों को अकल्पनीय और विशेष नर कंकाल बताया, और संभवतः इसे नव पाषाण काल का या उससे भी पहले के अवशेष मिल रहे हैं.
टीम के नेतृत्वकर्ता डॉ. विकास कुमार सिंह ने बताया कि प्रारंभिक रूप में उत्खनन से प्राप्त सामग्री को देखने से लगता है कि तत्कालीन मानव अन्न का भी उत्पादन शुरू कर दिए थे। उत्खनन के दौरान अन्न के दानें, मृदभांड, तीन मुंह वाले चूल्हे, घड़े, अस्थि बेधक, हड्डियों के कुछ अवशेष मिले हैं. इसके अलावे पशुपालन करने के संकेत मिले हैं. नर कंकाल के माध्यम से तत्कालीन मानव के शारीरीक स्थिति का अंदाजा लग सकता है। मसलन उस समय के मानव की लंबाई कितनी रही होगी। कपाल की स्थिति, उनकी उम्र, शारीरिक बनावट, लिंग, प्रजाति और मृत्यु के संभावित कारणों के बारे में जानकारी मिलेगी। सिन्धु घाटी सभ्यता तो नहीं लेकिन इस उत्खनन में मिले अधिवास पाषाण या नव पाषाण काल के साथ इसका संबंध जरूर रहा है. नगरीय सभ्यता का विकास क्रमिक हुआ है. सकास में मिली सामग्री से लगता है कि यहां की आबादी घनी रही होगी. यह गांव नगरीय सभ्याता की ओर कदम बढ़ा चुका था. इससे मानव जीवन के साथ ही रोहतास जिले के ऐतिहासिकता और प्राचीन सभ्यता की कई जानकारी मिलेगी।
वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास व पुरातत्त्व विभाग की टीम में करीब आधा दर्ज़न प्राध्यापकों के साथ दर्ज़न भर शोध छात्रों और कई  मजदूरों को शामिल किया गया है. जो इस कड़ी धूप और भीषण गर्मी में जमीन के नीचे उत्खनन और खुदाई के लिए सकास गांव पहुंचे हैं. उनके साथ विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ भी गांव का दौरा कर उत्खनन स्थल का दौरा आए हुए थे. विशेषज्ञों द्वारा उत्खन्न में मिली विभिन्न तरह की मिली सामग्री की विवेचना की जा रही है. वहीं उत्खनन कार्य के निदेशक बीएचयू के डॉ. विकास कुमार सिंह को पूरे गांव का सर्वे कराने की सलाह भी बाहर आए कई विशेषज्ञों  है. विदित हो कि पिछले पांच मार्च से सकास गांव में उत्खनन कार्य चल रहा है. अभी तक उत्खनन स्थल से कई नर कंकाल, कई तरह के मृदभांड, मनके, पाषाण के उपकरण, हड्डियों के उपकरण, फर्श, चूल्हे आदि कई तरह की सामग्री प्राप्त हुई है. जिस पर कई स्तरों पर शोध और अनुसंधान होंगे.
सकाश पुरातत्व स्थल का दौरा करने वाले डॉ. वीरवल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियो साइंसेज, लखनऊ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नीरज राय ने बताया की पुरातात्विक स्थल पर से प्राप्त सभी छह नरकंकालों के डीएनए टेस्ट के लिए नमूने लिए गए हैं, जिससे उनके बारे में विस्तार से अध्ययन किया जाएगा . उनके अनुसार यहां से मिले नर कंकाल करीब 4500 वर्ष पूर्व के प्रतीत होते हैं. उन्होंने भी यहीं बात कही कि डीएनए टेस्ट के बाद मामला पूरी तरह से साफ होगा. उन्होंने कहा कि पुरास्थल से प्राप्त हो रहे अन्य पूरा अवशेष हैं, जैसे चूल्हे, फर्श, मृदभांड, मनके पत्थर के औजार इत्यादि नव पाषाण काल के होने की संभावनाएं व्यक्त कर रहे हैं. यहां से कई चूल्हे भी प्राप्त हुए हैं. जो एक, दो व तीन मुंहवाले हैं. आज भी आस-पास के गांव में इस प्रकार के चूल्हे प्रयोग में हैं, जो सतत निरंतरता की जानकारी देता है. दिल्ली विश्वविद्यालय से आए डॉ. रत्नेश कुमार त्रिपाठी व डॉ. सीएल पांडेय दो दिनों तक पुरास्थल का अध्ययन करने के बाद कहा कि यह स्थल नव पाषाण कालीन प्रतीत होते हैं और आने वाले दिनों में उत्खनन के बाद काफी नवीन तथ्य उजागर होंगे. जो इस पुरास्थल की महत्ता के साथ ही पूरे इलाके को स्थापित करेंगे. इनके अनुसार इसकी प्राचीनता करीब 4500 वर्ष पूर्व की प्रतीत हो रही है. विदित हो कि पूर्व में भी इस स्थल का इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वरिष्ठ पुरातत्वविद प्रो. जेएन पाल, डेक्कन कॉलेज पोस्ट ग्रेजुएट रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे के प्रसिद्ध जंतु पुरातत्व वैज्ञानिक रहे प्रो. पीपी जोगलेकर भी इस पुरास्थल का दौरा कर चुके हैं. गौरतलब हो कि पांच साल से डॉ. विकास कुमार सिंह के निर्देशन व प्रो. रवीन्द्रनाथ सिंह के मार्गदर्शन में बीएचयू, वाराणसी की पुरातत्व टीम लागातार काम कर रही है.
सकास में उत्खनन में लगी टीम में प्रो. ओंकारनाथ सिंह, प्रो. अनिल कुमार दूबे, प्रो. डीके ओझा, डॉ. सुजाता गौतम, डॉ. अशोक कुमार सिंह, डॉ. प्रभाकर उपाध्याय, विनय कुमार, सचिन कुमार तिवारी, डॉ. अमित उपाध्याय, डॉ. विकास कुमार, टुनटुन सिंह,  रामजतन, सुभाषचंद्र यादव, यशवंत सिंह, अरुण पांडेय, सुदर्शन चक्रधारी, बृजमोहन कुमार, राज कुमार, धनंजय सिंह, अजय प्रताप सिंह, किशोर चंद्र विश्वकर्मा व श्याम सुंदर समेत बीएचयू के इतिहास व पुरातत्व विभाग के कई लोग शामिल थे. वहीं गांव में उत्खनन और कई तरह के सामग्रियों के मिलने आसपास के गांवों और आमलोगों के आकर्षण का केंद्र यह स्थल बना हुआ है.

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