आओ थोड़ा करीब से जानें गाँधी को

सुरेश ठाकुर, कंसल्टिंग एडिटर-ICN

बरेली : महात्मा गाँधी को लेकर आज देश में भ्रम का वातवरण है | ये वातावरण दो प्रकार के लोगों द्वारा बनाया जा रहा है| एक तो वे जो गाँधी के कुछ निर्णयों पर केवल तात्कालिक नफा-नुकसान के दृष्टिगत प्रश्न खड़े कर रहे हैं|

दूसरे वे अपरिपक्व जो उधार के इस दृष्टिकोण को अकारण प्रचारित प्रसारित कर रहे हैं जबकि उन्होंने गाँधी को पढ़ने और समझने का कभी भी किंचित प्रयास नहीं किया है|

दरअसल, गाँधी किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि एक विचार धारा का नाम है | ये बात अलग है कि जन सामान्य के व्यवहार का गुण भी गाँधी जी के विशाल व्यक्तित्व का एक हिस्सा था किंतु केवल जन सामान्य का प्रतिनिधि मान कर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का आंकलन करने वालों को गाँधी जी को सही सही जान पाना असंभव है|

गाँधी किसी व्यक्ति का नहीं बल्कि एक विचार धारा का नाम है:

पारिवारिक संस्कार बाल्यावस्था से ही गाँधी जी के विशिष्ट व्यक्तित्व निर्माण में अपना योगदान देते रहे| उन संस्कारों की ग्राह्यता के प्रति उदारता बल्कि सहर्ष स्वीकार्यता गाँधी के अति-साधारण से अति-असाधारण बनने की नींव थी|

स्व-विवेक के आधार पर भी उन्होंने सही और ग़लत के बीच हमेशा अन्तर किया और जो उन्हें सही लगा, वो चुना| अंतर्निहित गुणों के आधार पर व्यक्तित्व का कितना विशाल और मजबूत स्तंभ बनकर तैयार हुआ इसकी पहली और निर्णायक परीक्षा हुई दक्षिण अफ्रीका में|

स्वतंत्र वकालत को लेकर आत्मविश्वास खो चुका, एक अंग्रेज अधिकारी से पंगा लेकर स्थानीय सहयोग से वंचित, आर्थिक अभावों का सामना कर रहा और बड़े भाई के उपकारों का प्रतिदान करने को आतुर, एक साधारण व्यक्ति “मोहनदास करमचंद गाँधी” मात्र एक सौ पाँच पौण्ड के मेहनताने की जरूरत में अपने वतन से हज़ारों मील दूर दक्षिण अफ्रीका जाने के लिए बाध्य होता है, और काम मिलता है सेठ अब्दुल्ला के चालीस हजार पौण्ड के भारी भरकम मुकदमें में उनके वकील के सहयोगी मात्र का|

वहाँ ट्रेन की प्रथम श्रेणी की बोगी में हुई एक अपमानजनक घटना उनके अस्तित्व को इस क़दर झकझोर जाती है कि उनके द्वारा संग्रहीत और संरक्षित संस्कार एकजुट होकर उनके व्यक्तित्व को वो रुप दे जाते हैं जो संसार की बड़ी से बड़ी चुनौती से टकराने में भी किंचित संकोच नहीं करता|

दक्षिण अफ्रीका का उनका इक्कीस वर्षों का प्रवास इसका प्रत्यक्ष साक्षी है| नेल्सन मण्डेला ने भी इन्हीं गाँधी जी के ही सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए वहाँ रंगभेद के सर्प के फन को कुचला और देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त किया|

“सत्य और अहिंसा” के आत्मसात ने उन्हें आत्म-विश्वास, साहस, निडरता और आत्मिक शक्ति का ऐसा विलक्षण अस्त्र ‘सत्याग्रह’ दिया जिसके द्वारा उन्होंने बड़ी से बड़ी चुनौती को आगे बढ़कर ललकारा और उसका सामना किया|

दक्षिण अफ्रीका से लेकर हिंदुस्तान तक अनेक उपलब्धियाँ उनके नाम हैं| चीज़ों को जाति, धर्म, सम्प्रदाय, ऊँच-नीच से परे देखना उनके जीवन का सिद्धांत था जिसका पालन करते करते कालांतर में वह उनका स्वाभाव बन गया था|

गाँधी जी के अनेक ऐसे निर्णय रहे जिन्हें साधारण नजरिये से देखें तो निश्चय ही अनावश्यक और आलोचना के पात्र लगते है जैसे दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध के दौरान रेड क्रॉस की तर्ज पर गोरे सैनिकों को चिकित्सा सेवा देना, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना में भारतीयों की भर्ती को लेकर प्रयास, खिलाफ़त आंदोलन में भागेदारी, देश के बँटवारे के समय दिए गए कुछ बयान बगैरह|

 

किंतु इन सारी चीज़ों को यदि गैर राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो निश्चय ही इनमें महानता परिलक्षित होती प्रतीत होती है| गाँधी जी एक शातिर राजनीतिज्ञ या कूटनीतिज्ञ कतई नहीं थे|

उनके सारे निर्णय चूँकि उनके मूल सिद्धांतों की छलनी से गुज़र कर आते थे अतः उनमें अति आदर्शवादिता होना स्वाभाविक ही थी| राजनेता से अधिक वे एक जन कल्याणी, समाज सेवी, और संत थे|

हो सकता है उनसे कुछ चूकें हुई हों, हो सकता है उनके निकट सहयोगियों के द्वारा ही उनका राजनैतिक इस्तेमाल हुआ हो| ये एक बहस का विषय भी हो सकता है किंतु व्यक्तिगत तौर पर गाँधी जी निश्चय ही एक महान विभूति थे|

सत्य और अहिंसा के अतिरिक्त राम राज्य, समाजवाद, ऊँच नीच, अस्पृश्यता, नारी उत्थान, कृषक कल्याण, नैतिक शिक्षा, सदाचार, प्रार्थना, ब्रह्मचर्य उनके सिद्धांत और जीवन दर्शन के प्रमुख बिन्दु हैं|

गाँधी जैसी महान आत्मायें कदाचित ही धरती पर अवतरित होती हैं| 150वीं जयंती के अवसर विश्व के सर्वमान्य राजनेता, प्रेरणा पुरुष और भारत के सच्चे सपूत महात्मा गाँधी को सहस्त्रों नमन|

 

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