उर्दू शायरी में ‘सच’ : 3

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप

सच एक बहुत बड़ा तिलिस्म है। कहा जाता है कि सच बहुत कड़ुवा होता है लेकिन उसका परिणाम मीठा होता है। यह भी कहा जाता है कि सच अर्थात सत्य की सदैव जीत होती है। ‘सच को परेशान किया जा सकता है, पराजित नहीं’ – एक कहावत यह भी है। कई धर्म ग्रंथ कहते हैं कि सच शाश्वत है तो कई ऐसी धार्मिक विचारधाराएँ भी हैं जो यह कहती हैं कि सच कभी भी अपरिवर्तनशील नहीं हो सकता।

राहत इंदौरी का वास्तविक नाम राहत कुरैशी है। उनका जन्म सन् 1950  में इंदौर में हुआ और वर्ष 2020 में उनकी मृत्यु हुई। वे न केवल एक नामचीन शायर व फ़िल्मी गीतकार ही थे बल्कि उनकी शायरी में चुनौती का पैनापन भी सहज दिखाई देता है। ‘लमहा-लमहा’ उनका मशहूर दीवान है। सच पर उनके कुछ शानदार अशआर देखिये –

 

झूठ से, सच से जिससे भी यारी रख़ें। 

आप अपनी तकरीर जारी रख़ें।।”

 

और,

 

झूठों ने झूठों से कहा है सच बोलो।

सरकारी एलान हुआ है सच बोलो।। 

 

घर के अंदर तो झूठों की एक मंडी है, 

दरवाज़े पर लिखा हुआ है सच बोलो। 

 

गुलदस्ते पर यकजहती लिख रक्खा है, 

गुलदस्ते के अंदर क्या है सच बोलो। 

 

गंगा मइया डूबने वाले अपने थे,

नाव में किसने छेद किया है सच बोलो।”

उर्दू शायरी में सच की बात हो और उसमें परवीन शाकिर का यह बेइंतहा मशहूर शेर शामिल न हो तो बात मुकम्मल नहीं मानी जा सकती। परवीन शाकिर पाकिस्तान की लोकप्रिय शायरा थी और औरत के हुक़ूक के लिये क़लम से लड़ने वाली इंक़लाबी साहित्यकार थीं जो वर्ष 1952 में पैदा हुईं और वर्ष 1994 में बहुत कम उम्र में एक कार दुर्घटना की शिकार हो गईं। ‘इंकार’ व ‘ख़ुश्बू’ उनके प्रसिद्ध दीवान हैं।

 

“मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी,

वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा।”

इसहाक़ अतहर सिद्दीक़ी कराची, पाकिस्तान के मशहूर शायर हैं। ‘सूरज की खुदाई’ और ‘इमकान की तलाश’ उनके मशहूर दीवान हैं। बात कहना भी एक हुनर है कि झूठ भी सच लगे –

 

किसी ने सच न कहा और सब ने सच जाना,

अजब कमाल-ए-बयाँ था बयान से ऊपर।”

हिलाल फ़रीद का जन्म वर्ष 1959 में हुआ। वे एक चिकित्सक हैं और लंदन में रहते हैं और वे एक बेहतरीन शायर हैं।’जब दियों के सर उठे’ उनका दीवान है। सच पर उनका एक खूबसूरत शेर देखिये-

 

झूट कहने लगा सच से बचने लगा,

हौसले मिट गए तजरबा रह गया।”

शारिक़ कैफ़ी बरेली के शायर हैं और उनका जन्म सन् 1961 में हुआ। ‘यहाँ तक रोशनी कहाँ थी’ उनका मशहूर दीवान है। सच बहुत कड़ा है और कभी-कभी तो सच की हक़ीक़त जिंदगी को भी मुहाल कर देती है जबकि झूठा ख़्वाब ज़िंदगी आसान कर देता है। यह खूबसूरत शेर देखिये –

 

झूठ पर उस के भरोसा कर लिया, 

धूप इतनी थी कि साया कर लिया।” 

सचिन अग्रवाल उर्फ़ सचिन शालिनी का जन्म वर्ष 1979 में बरेली में हुआ। वे एक धारदार शायर हैं। सच पर उनके कुछ अशआर वास्तव में रेखांकित करने योग्य हैं –

 

मैं तुम पर हर बार भरोसा करता हूँ,

इतना सच्चा झूठ तुम्हारा होता है।”

 

और एक शेर यह भी –

 

झूठे चेहरों को सच्चा बताता सदा,

रखता इंसाँ सी फ़ितरत अगर आइना।”

त्रिवेणी पाठक बरेली से ताल्लुक रखते हैं। नौजवान शायर हैं और उनकी शायरी की धार देखते ही बनती है। उनके अशआर न केवल मानीख़ेज़ ही होते हैं बल्कि दिल की गहराइयों में भी उतरते हैं। सही होने और सुखी होने के बीच जो अंतर है, कमोबेश वही अंतर सच्ची मगर कड़ुवी और स्वपनिल मगर हसीन व खूबसूरत ज़िंदगी के बीच भी है। उनका यही नज़रिया उनके इस शेर के पार्श्व से झांकता है –

 

“सोचता हूँ – आज जी लूँ ख्वाब जैसी ज़िंदगी,

एक दिन सच्चाइयों का मकबरा हो जाऊँगा।”

 

अशोक रावत आगरा से संबंध रखते हैं। ग़ज़ल कहना और सलीके से कहना उनका पैशन है। बहुत खूबसूरत और असरदार शायरी करते हैं। उनकी लेखनी सीधे संवाद करती है, संकेतों में नहीं और यही उनकी ख़ासियत भी है। उनकी अनेक पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। सच पर उनका एक खूबसूरत शेर पेश है –

 

“मुश्किल में पड़ जायें, परीशां चाहे जितने हो जायें।

झूठ को सच कहने वालों में, शामिल कैसे हो जायें।।”

 

किसी अज्ञात शायर का सच पर यह शेर भी बहुत खूबसूरत है और बताता है कि आज के दौर में सच कहना कितना खतरनाक है –

 

जो देखता हूँ वही बोलने का आदी हूँ। 

मैं अपने शहर का सब से बड़ा फ़सादी हूँ।।”

विवेक भटनागर एक बेहतरीन युवा शायर हैं और अपनी बात को सामने रखने का उनका ढंग निराला है जो आज के दौर में युवा शायरों में उन्हें अग्रणी पंक्ति में स्थापित करता है। वे शायरी का सलीका भी जानते हैं और बेबाकी का बिंदास हुनर भी उनमें है। आइये, सच पर उनके कुछ अशआर से मुलाकात करते हैं –

 

नज़र से परदे हटा रहा है।

बुरा समय सच दिखा रहा है।।

 

और एक शेर यह भी –

 

अगर कुछ झूठ है तो वो है मंज़िल,

अगर कुछ सच है तो वो रास्ता है।”

पुष्पेन्द्र पुष्प नौजवान शायर हैं। उरई, ज़िला जालौन से संबंध रखते हेैं। गहरे शेर कहने के आदी हैं और उनका यह हुनर उन्हें उनकी उम्र से कहीं बड़ा कद अता करता है। सच पर उनका एक खूबसूरत शेर आपके हवाले कर रहा हूँ जो खुद ब खुद बोलता है –

 

ग़ज़ब का  दौर था, दीवानगी में,

मुझे हर झूठ, सच्चा लग रहा था।”

अरविंद असर एक प्रसिद्ध युवा शायर हैं। सीधे-सादे तरीके से बेजोड़ कह देने का हुनर उनके पास है। ‘तमस’ उनका चर्चित दीवान है। एक ज़माना था कि एक सच सौ झूठ पर भारी था लेकिन आज झूठों के लश्कर में सच बहुत निरीह है और कभी-कभी तो सच खुद ही झूठा साबित हो जाता है। आइये, सच को इस नज़रिये से भी देखते हैं –

 

सच अकेला खड़ा रह गया इक जगह,

झूठ  आगे  बढ़ा   काफिला  हो  गया।”

 

लेकिन फिर भी, सच तो सच ही है –

 

चाहे    जाना   बाज़ी   हार,

सच को सच ही कहना यार।”

मध्य प्रदेश से संबंध रखने वाले युवा शायर राज तिवारी बेहद शानदार लिखते हैं। उनकी क़लम पैनी है और लफ़्ज़ों में ज़बरदस्त धार है। आजकल सच बोलना वास्तव में चरित्र की पवित्रता का नहीं, बोलने वाले की हिम्मत का मोहताज है। क्या खूबसूरत शेर कहा है –

 

फ़ायदे आज न गिनवाओ झूठ कहने के,

हौसला हो तो मिरे साथ-साथ सच बोलो।”

 

लेकिन आज के सच का परीक्षण भी बोलने वाले के क़द पर निर्भर है –

 

देखता कौन झूठ है, सच है,

बात उसकी ज़बाँ से निकली थी।”

राजेंद्र वर्मा लखनऊ से हैं और साहित्य की अनेक विधाओं पर उनका प्रभावकारी कार्य है। उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और पाठकों ने उनका खुले दिल से स्वागत किया है। सच पर उनका एक खूबसूरत शेर देखिये –

 

सच है, दीपक-तले अँधेरा है,

फिर भी दीपक जला दिया हमने ।”

 

अमिताभ दीक्षित में अद्भुत संभावनायें हैं। वे हर मायने में कलाकार हैं। चाहे कहानी व स्क्रिप्ट लेखन हो, गीत व कविता हो, पेटिंग हो, फ़िल्म मेकिंग हो या धरानों की शास्त्रीय संगीत की अद्भुत विरासत, वे हर तस्वीर में पूरी तरह फिट दिखाई देते हैं। जीवन का हर रस उन्हें न केवल पसंद ही है बल्कि वे उसे और रसमय बना देते हैं। आज का इश्क़ और प्यार शायद तिजारत का एक और जरिया है। सच्ची मोहब्बत आजकल बड़ी दूर की कौड़ी है। उनका सच पर यह शेर देखें –

 

सच के हर इक सवाल पर हर शख़्स चुप रहा,

उल्फ़त की गाँठ खुल गई दौलत के सामने।”

 

आख़िर सच क्या है और झूठ क्या है – यह एक बड़ी बहस है। सच शब्दों या तथ्यों की नुमाइंदगी करता है या उनके पीछे की किसी ईमानदार भावना की, यह भी बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन यह प्रश्न तो फिर भी खड़ा रह जाता है कि वास्तव में ‘सच’ और ‘झूठ’ का सच क्या है? शायद इसका जवाब दुनिया की किसी किताब में नहीं है। लेकिन कहा जाता है कि जब किताबें चुप हो जाती हैं तो हमारे सीने में धड़कता दिल बोलता है और अगर सुनने वाले को दिल की अावाज़ को सुन पाने का हुनर आता है तो वह जान जाता है कि ‘सच’ केवल वही है जो बोलने वाले को रुहानी सुकूँ अता करे और ‘झूठ’ वह है जो बाहर से भले ही कितना शानदार और क़ीमती नज़र आये लेकिन आपके अंदर सिर्फ़ और सिर्फ़ बेचैनी और घुटन छोड़ जाये। सच कहा जाये तो सच की कोई भी निश्चित परिभाषा नहीं है और कई बार आमतौर पर सच लगने वाली बात झूठ होती है और झूठ लगने वाली बात सच हो जाती है। सच बस इतना है कि सच शब्दों या तथ्यों पर हर्गिज़ आधारित नहीं होता बल्कि यह हमेशा परिस्थितियों और आपकी शुद्ध और ईमानदार भावना से ही निकलता है। मेरी दृष्टि में सच की केवल इतनी सी परिभाषा है – जिसे मन स्वीकारे, वह ‘सच’ है और जिसे मन अस्वीकार कर दे, वह ‘झूठ’ है।

 

चलते-चलते ‘सच’ पर दो-एक अशआर मेरे भी –

 

जहाँ सच बोलना लाजिम था मुझ पर, मैंने सच बोला,

कोई मौसम नहीं देखा, कोई मौका नहीं देखा।”

 

और एक शेर यह भी –

 

सीने में इक दिल तो है।

पत्थर का हासिल तो है।।

 

आँखें मींची, कह डाला, 

सच कहना मुश्किल तो है।”

 

-तरुण प्रकाश श्रीवास्तव

Share and Enjoy !

Shares

Related posts