गीत-गीता : 19

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

(श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद)

तृतीय अध्याय (कर्म योग)

(छंद 01-43)

 

श्रीकृष्ण : (श्लोक 8-14)

 

शास्त्र से जो भी है स्वीकार्य,

श्रेष्ठ कारित करना है कर्म ।

कर्म के बंधन में है देह,

कर्म है मानव तन का धर्म।।(8)

 

यज्ञ हित कर्म और अतिरिक्त,

कर्म से बँधता है समुदाय।

कर्म करना ही केवल श्रेष्ठ,

यही हेै आवश्यक सदुपाय।।(9)

 

प्रजापति ब्रह्मा ने रच यज्ञ,

संग दे प्रजा सहित संयोग।

कहा, कर वृद्धि यज्ञ से प्राप्त,

यज्ञ दे सबको इच्छित भोग।।(10)

 

यज्ञ से उन्नत होंगे देव,

देव से उन्नत हों सब लोग।

परम कल्याण सधे हर ओर, 

परस्पर उन्नति का हो योग।।(11)

 

यज्ञ से उपजेंगे जो देव,

करेंगे बिन माँगे हर दान।

करे जो बिन अर्पण के भोग

व्यक्ति वह होगा चोर समान।।(12)

 

यज्ञ से बचे अन्न का भोग,

वही है सर्वश्रेष्ठ आहार।

किंतु जो करे स्वयं हित भोग,

बने वह मात्र पाप आधार ।।(13)

 

विहित कर्मों से उपजे यज्ञ,

यज्ञ से होती है बरसात।

और बरखा से उपजे अन्न,

अन्न से उपजे प्राणी जात।।(14)

 

क्रमशः

 

विशेष :गीत-गीता, श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद है तथा इसमें महान् ग्रंथ गीता के समस्त अट्ठारह अध्यायों के 700 श्लोकों का काव्यमय भावानुवाद अलग-अलग प्रकार के छंदों में  कुल 700 हिंदी के छंदों में किया गया है। संपूर्ण गीता के काव्यमय भावानुवाद को धारावाहिक के रूप में अपने पाठकों के लिये प्रकाशित करते हुये आई.सी.एन. को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

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