कोरोना के बाद भारत की संभावनाएं : 2

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप

समय ने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा भी आयेगा जब अचानक ही उसकी रफ़्तार थम जायेगी और एक-दूसरे से आगे निकलने की अंधाधुंध होड़ में लिप्त यह सारा विश्व ठीक उसी तरह फ्रीज हो जायेगा जैसे बार्बी की कहानियों में दुष्ट जादूगर पूरे राज्य को फ्रीज कर दिया करता था। 

सुनीता श्रीवास्तव उर्फ़ अनुपम हमारे लीगल प्रिपरेशन विभाग  की सदस्या हैं और ईश्वर ने इन्हें अनेक प्रतिभायें उपहार स्वरूप दी हैं। वे एक श्रेष्ठ विचारक व लेखिका भी हैं। उन्होंने पर्यावरण व विज्ञान व टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारतीय सम्भावनायो के संबंध में अपने विचार कुछ यूँ व्यक्त किये –

कोरोना संकट के कारण लागू बंदी (लॉकडाउन) देश के उन सभी महानगरों के लिए वरदान साबित हुई है जो वर्तमान समय में  पर्यावण  प्रदूषण से सर्वाधिक प्रभावित थे। लॉकडाउन के बाद इन शहरों में इसके स्तर में खासी गिरावट दर्ज की गई है । भारत में वायु प्रदूषण की वजह से हर साल लाखों लोगों की मौत हो जाती है किंतु लॉक डाउन के दौरान और बीते सालों के बीच प्रदूषण के प्रभाव में भारी अंतर देखा गया है। सही मायनों में कोरोनावायरस ने प्रदूषण की मार झेलती दुनिया को वो मौका दिया है जिसमें ठहर कर वह अपनी जीवनशैली में  बदलाव करने पर विचार कर सकें । उल्लेखनीय है कि वाहन जनित वायु प्रदूषण बढ़ाने में गाड़ियों से निकलने वाले जहरीले धुएँ की प्रमुख भूमिका है तथा इसके अलावा धूल बिखेरते तमाम निर्माण कार्य एवं विषैला धुआँ उगलती फैक्ट्रियाँ जिम्मेदार  हैं परंतु वहीं दूसरी ओर ऐसे कार्य कई देशों के लिये निर॔तर विकास की पहचान बन गए थे। अब जबकि लाॅकडाउन की वजह से ज्यादातर गाड़ियाँ सड़कों पर नहीं चल रहीं हैं, इसका प्रत्यक्ष असर  देखने को मिला है। करीब 3 दशकों में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी आपदाओं एवं प्रदूषण से होने वाली बीमारियों ने पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता एव॔ अनिवार्यता की चर्चा को अनेक वैश्विक एवं राष्ट्र मंचों के केंद्र में ला दिया है। लॉकडाउन के दौरान हमारी  समस्त  नदियों तथा पवित्र गंगा नदी के प्रदूषण के स्तर में कमी आई है। विकास की अँधी दौड़ में पर्यावरण का हम सभी ने जो हाल किया है, वह बीते चार दशकों से चिंता का विषय रहा है लेकिन कई विकसित देश इस विकट समस्या के निदान के उपाय ढूँढने की बजाए विकासशील देशों पर हावी होने का अवसर खोजते रहे हैं। और इसी क्रम में विकासशील देश भी विकसित देशों के रास्ते पर चलकर पर्यावरण को नष्ट करने के अभियान में शामिल हो गए। हाँ, मगर कोरोना महामारी से भयभीत समूचे विश्व में लाॅकडाउन ने पर्यावरण को स्वच्छ  होने का अवकाश दिया है। हवा का जहर क्षीण हो रहा है और नदियों का जल स्वच्छ। यही ठीक समय है जब पूरी दुनिया  पर्यावरण प्रदूषण के क्षमन एवं विकास के अहम् पहलुओं पर गंभीरता से विचार करे। हाँलाकि इस बात से सभी देशवासी सहमत हैं कि लाॅकडाउन के दिन से ही पर्यावरण का शुद्धिकरण प्रारंभ  हो गया था। पक्षियों को उड़ने के लिये प्रदूषण रहित खुला आसमान मिला है। परंतु आने वाले समय में लाॅकडाउन खुलने के पश्चात भी क्या पर्यावरण संरक्षण के प्रति ऐसी जागरूकता बनाये रखना सहज होगा? क्योंकि शुद्ध वायु, स्वच्छ जल एवं स्वच्छता प्रत्येक प्राणी के लिये बहुत अनिवार्य है। और इस अहम् विषय पर सर्वसम्मति ही सच्चा मानव धर्म है।  

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग विश्व के सभी देशों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सभी देशों के उच्च संस्थानों में छात्र इस विषय को बड़े उत्साह से पढ़ते हैं। इस विभाग का प्रमुख कार्य  प्रौद्योगिकी के माध्यम से आम आदमी की तकनीकी जरूरतों को पूरा करना है। कोरोनावायरस की भयावह स्थिति के मद्देनजर इसका मुकाबला करने के लिए  ‘आरोग्य सेतु एप’ लॉन्च हुआ है जो कोविड-19 से संबंधित विभिन्न चुनौतियों को व्यापक तरीके से कवर करेगा। यह गूगल की ओर से एक प्रशंसनीय पहल है। साथ ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग कोविड-19 को पैदा करने को एजेंट नोवल करोनावायरस को कंट्रोल करने एवं उसे खत्म करने की खास तकनीक तैयार करने में निरंतर प्रयासरत हैं । लॉकडाउन के चलते स्कूल कॉलेज बंद होने से प्रभावित हो रही पढ़ाई को देखते हुए सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली को शुरू किया गया है । शिक्षण की इस तकनीक से न केवल अभिभावक प्रसन्न एवं संतुष्ट हैं बल्कि विद्यार्थियों में भी खुशी की लहर है। वर्तमान परिस्थितियों के कारण भारत में भी वर्क फ्रॉम होम का ट्रेंड तेजी से बढ़ा है नतीजतन आज बहुत सी कंपनियों में कई कामगार घर पर रहकर ही बड़ी कुशलता एवं धैर्यपूर्वक काम कर रहे हैं । लॉकडाउन की स्थिति में दुनिया भर के लोगों के लिए इंटरनेट एक बेहतरीन सहारे के रूप में उभर कर सामने आया है। परंतु आज हम जिस वर्चुअल कनेक्शन के माध्यम से एक दूसरे से जुड़ रहे हैं क्या वह हमारी सामाजिक जरूरतों को पूरा कर पाने में पूर्णतया सक्षम है ? क्या सही मायनों में हमारी सोच और उम्मीदों को मौजूदा हालात एवं सच्चाई के साथ तालमेल बिठाने की जरूरत है ? इन प्रश्नों के उत्तर से एक ओर जहाँ हमारी सोच को एक नई दिशा मिलेगी अपितु हम कई और चुनौतियों से जूझने और उससे निपटने की ताकत जुटा पाएँगे। जिससे हमारा मनोबल बढ़ेगा। कोरोनावायरस महामारी के चलते दुनिया को जितने वेंटिलेटर्स की जरूरत है उतने अस्पतालों में उपलब्ध नहीं है फिर चाहे वह विकसित देश हो या विकासशील देश। इस समस्या की गंभीरता को देखते हुए हमारे टेक्नीशियसं ने तेजी से नए वेंटीलेटर्स तैयार करने प्रारंभ कर दिये हैं। उनका यह कार्य निःसंदेह सराहनीय है। आमतौर पर लोग यह कहते सुनाई पड़ते हैं कि वह अपनी कई गतिविधियों में एक इंसानी एहसास चाहते हैं। इसी संदर्भ में कई तरह की नौकरियों  में अब रोबोट इंसान की जगह लेने जा रहे हैं। कोरोनावायरस से पैदा हुए संकट ने इस दिशा में प्रयासों को और अधिक बढ़ा दिया है । इसके अलावा  विज्ञान के क्षेत्र में अब एक नई हेल्पलाइन शुरू की जाने की संभावना है । जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के कार्यक्रमों एवं योजनाओं से संबंधित शंकाओं को दूर करने में मददगार होगी। भारत भी ‘विज्ञान और तकनीक’ का उपयोग कर जीवन के हर क्षेत्र में विकास की ओर सतत् अग्रसर हो रहा है। गौरतलब है कि हमारा ग्रामीण समाज भी विज्ञान और प्रौद्योगिकी तकनीक से अछूता नहीं है । एक प्रश्न यह भी है कि क्या भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली कोविड-19 की विश्वव्यापी महामारी का सामना करने के लिए तैयार है? क्योंकि जिस भयानक रूप से यह महामारी पूरी दुनिया के लोगों पर हावी हो रही है यह निश्चित ही चिंता का विषय है। इस महामारी की रोकथाम के लिए भारतीय टेक्नोलॉजी के क्षेत्र से जुड़ी कई प्रतिष्ठित कंपनियाँ अपने साधनों का उपयोग करते हुए सरकार की लगातार मदद कर रही हैं। आज कोरोनावायरस बीमारी की दहशत भरे माहौल में ड्रोन, उपकरण टेक्नोलॉजी की एक महत्वपूर्ण देन है। जिसका उपयोग आज के दौर में पूरी दुनिया में किया जा रहा है। अंत में यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि पूरे विश्व में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का योगदान अतुलनीय है।”

आपने सच कहा अनुपम जी। पर्यावरण, विज्ञान व टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हमें इस कठिन समय ने बहुत सिखाया है और भविष्य में ये क्षेत्र असीम संभावनाओं से भरे हुये हैं। 

पर्यावरण पर तो हमारे निबंधन विभाग के हेड एवं ICN उत्तर प्रदेश के ब्यूरो चीफ अखिल श्रीवास्तव जी भी हम सबसे कुछ बातें करना चाहते हैं। अखिल जी उत्कृष्ट कवि, व्यंग्यकार व लेखक हैं और हर बात को वे अत्यंत सलीके से रखते हैं। आइये, उनकी बात उन्हीं से सुनते हैं –

मनुष्य ईश्वर की बनाई हुई अनुपम कृति है। जब से मानव का इस धरती पर उद्भव हुआ है, तब से वह अपने जीवन की आवश्यकताओं के अनुरूप अपनी जीवन शैली में लगातार विकास करता रहा है। परन्तु यह विकास मनुष्य के जाने अनजाने प्रकृति से खिलवाड़ करता रहा और वह इस्श्वे की रचना को अपने फायदे के लिए ऐसी चोट देने लगा जो प्रकृति के लिए असहनीय थी।

प्रकृति की सहनशक्ति जवाब देने लगी और आखिरकार वह वक़्त आ गया जब सृष्टि ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू कर दिया। सम्पूर्ण विष त्राहि त्राहि करने लगा। मानव जो पुरी तरह से अहम से लबालब भरा हुआ था, जिसको अपनी असीम शक्ति का इतना गुमान हो गया ठाट जैसे वह प्रकृति को अपनी दासी मानता हो, टूट कर गिरने लगा। वह ईश्वर के आगे नतमस्तक हो गया और अपने जीवन की भीख मांगने लगा। पूरा विश्व चकाचौंध से अंधकार के उस कल में चला गया जैसे वह प्रकृति के कोप से भागकर छिप रहा हो और कह रहा हो कि हे सृष्टि, मुझे माफ़ कर दो। 

कोरोना नामक इस महामारी ने जहाँ समाज की गति को रोक दिया है, वहीँ चिंतन के लिए कुछ सवाल भी छोड़ दिए हैं। एक सवाल यह है कि हम किस ओर भाग रहे हैं। ऐसा लगता है कि प्रकृति ने एक बार हमें यह सोचने का अवसर दिया है कि हमारा उद्देश्य क्या है। हम इन प्राकृतिक वस्तुओं, धन, संपदा, सुख-सुविधा आदि का उपभोग तभी कर सकते हैं जब हम जीवित रहेंगे। जब हमारा जीवन ही समाप्त हो जायेगा तब हम क्या कर सकेंगे। 

कल-कल अपनी मदमस्त चल में बहती नदी ओर यह हवा, न जाने कितनी सदियों से हमारे कारण कैद थी किन्तु आज वह निर्बाध रूप से अपनी स्वच्छता के साथ बह रही हैं। वायु, जल, पृथ्वी आदि का प्रदूषण आज मानो ख़त्म हो गया हो । ये सृष्टि आज खुले में सांस ले रही है। क्या प्रकृति और मनुष्य एक साथ सुखपूर्वक नहीं रह सकते ? इसका अर्थ यह हुआ की या तो प्रकृति खुश रहेगी या मनुष्य – दोनों में से एक ही खुश रह सकता है। 

जब मनुष्य की ज़िंदगी थम गयी है, तब प्रकृति स्वतंत्र है और जब मनुष्य गतिमान होगा, तब प्रकृति परतंत्र हो जाएगी। यह जल प्रकृति ने नहीं बल्कि मनुष्य ने स्वयम तैयार किया है। मनुष्य ने अपने सुख के लिए प्रकृति का नाश किया है। प्रकृति हमें क्या नहीं देती – सांस लेने के लिए हवा, पीने के लिए जल, खाने के लिए अन्न, सब्जी, फल आदि। हमने प्रकृति को क्या दिया” हम सिर्फ अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए उसका दोहन करते चले गए। जब चाहते, जिसको चाहते, किसी भी जीव को मारकर खा जाते। प्रकृति ने सभी जीवों की इस पृथ्वी पर रहने के लिए बराबर अधिकार दिए हैं। हर जीव अपनी आवश्यकतानुसार यहाँ भोजन, पानी ग्रहण कर सुखपूर्वक रह सकता है लेकिन मनुष्य को यह गवारा नहीं था। वह तो अपने मद और अहंकार में इतना चूर हो चुका था कि वह ईश्वर द्वारा बनाये गए अन्य जीवों का भक्षण कर रहा है और प्रकृति के दिए गए वरदानों को शाप बनाने पर तुला है। और अब महामारी रूपी प्रकृति के इस कोप को देखकर मनुष्य का दिल दहल गया है।

मनुष्य अपने आप को बहुत शक्तिशाली समझने लगा था। उसके अंदर अप्रत्यक्ष रूप से एक अहम निवास करने लगा था । वह यह सोचता था की वः उस विजेता सिंहासन पर बैठा है जहाँ से वह कुछ भी हासिल कर सकता है। इस महामारी के बाद मनुष्य के उस अप्रत्यक्ष अहम् को कहीं न कहीं बड़ी चोट पहुंची है और वह ज़मीनी हकीक़त और ईश्वर की सत्ता को महसूस करने लगा है। इस महामारी ने जहाँ उसको हर तरह से पंगु बना दिया है, वहीँ उसके अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। हर तरह की जंग जीतने वाला मनुष्य आज असहाय हो गया है।

कहीं न कहीं उसके अंदर आंशिक वैराग्य जाग चुका है। आध्यात्मिक शक्ति को पहचानने वाले लोग इस बात को बखूबी समझ सकते हैं। हजारों की भीड़ में रहने वाला मनुष्य आज एकाकी हो चला है। इस वक़्त वे लोग जो पारिवारिक जीवन शैली को एक बेहतर जीवन शैली समझते हैं, आज उस परिवार की महत्ता को और ज्यादा समझने लगे हैं। अधिकांश लोg आज अपने परिवार के साथ समय व्यतीत कर रहे हैं। कहीं न कहीं पारिवारिक भावनाओं और पारिवारिक मजबूतियों को बल मिला है। आज के इन हालत से अगर हम कुछ सीख सकते हैं तो ये सीखें कि भारतीय जीवन शैली, खान-पान, प्राकृतिक व आध्यात्मिक सोच जो हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति की नींव है, कितनी सच्ची और यथार्थपरक है। पूरा विश्व जहाँ पाश्चात्य संस्कृति, खान-पान और रहन-सहन का दीवाना ही चुका था, आज भारतीय संस्कृति का लोहा मान रहा है। हमारे देश के वेद और शास्त्र आज अपनी प्रासंगिकता दर्ज करा रहे हैं । जरूरत है उसे समझने, सीखने और ग्रहण करने की।”

अखिल जी, आपके विचार व भाषा, दोनों ही प्रभावित करते हैं। आपने सच कहा है – भविष्य में हमारा अस्तित्व हमारे अधिक से अधिक प्राकृतिक बनने में ही निहित है। 

  क्रमशः ….

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