भूखे व्यक्ति का धर्म क्या है?

मोहम्मद सलीम खान, सीनियर सब एडिटर-आईसीएन ग्रुप 

आजकल देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की महा शक्तियां भी कोरोना नामक दानव रूपी महामारी से  लड़ रही है। इस महामारी ने वैश्विक स्तर पर भयंकर रूप धारण कर लिया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 3 मई तक लॉक डाउन की अवधि बढ़ाने का निर्णय लिया है।

सहसवान/बदायूं: वर्तमान स्थिति को देखते हुए भारत सरकार के पास इसके अतिरिक्त कोई और दूसरा रास्ता भी नहीं है। इस वक्त हमारी स्थिति सावधानी हटी और दुर्घटना घटी जैसी हो गई है । हमारी एक गलती हमें और हमारे परिवार व समाज को संकट में डाल सकती है इसलिए हमें लॉक डाउन का पालन पूरी कर्तव्यनिष्ठा के साथ करना चाहिए। यह समय ऐसा है कि हर एक भारतवासी को एक साथ मिलकर इस वैश्विक दानव रूपी महामारी से लड़ना है और इस पर विजय प्राप्त करना है । जैसा कि  प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 3 मई तक संपूर्ण लोक डाउन का निर्णय लिया है। हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। अब  भारत सरकार को व प्रदेश सरकार को लॉक डाउन की अवधि  बढ़ाने के साथ-साथ इस बात पर भी मंथन करना चाहिए की क्या भारत देश जो एक कृषि प्रधान देश है और जिस देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा रोज का कुआं खोदता है और रोज पानी पीता है। क्या आबादी का एक बड़ा हिस्सा लॉक डाउन की इस अवधि को बर्दाश्त कर पाएगा या नहीं?  जनता इस उम्मीद पर अपने दिन गुजार रही थी कि 15 अप्रैल को लॉक डाउन खुल जाएगा और वह अपने परिवार का बिगड़ा हुआ बजट 20 या 25 दिनों में सही कर लेगी मगर बढ़ती हुई कोरोना पॉजिटिव की संख्या ने जनता को मायूसी के अंधकार की गर्त में धकेल दिया है। आने वाले 15 दिन देश की मजदूर वह गरीब जनता की स्थिति आर्थिक रूप से बहुत ही दयनीय हो जाएगी। अब जनता के सामने एक तरफ कोरोना का दानव खड़ा है और दूसरी तरफ दो वक़्त की रोटी का भयंकर संकट उत्पन्न हो गया है। आम आदमी के पास  जो जमा पूंजी थी  वह उसने लोक डाउन की  अवधि के दौरान खर्च कर ली। अब आने वाले दिन  उसके लिए  घोर अंधकार के हैं। भारत में औसतन ₹300 प्रतिदिन कमाने वाला मजदूर  जो महीने में 25 दिन ही काम कर पाता है। इस प्रकार वह अपने परिवार का पालन पोषण ही मुश्किल से कर पाता है तो धन की बचत करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता। मैं यह बात इतने बल से इसलिए कह रहा हूं की मैं जिस शहर सहसवान जिला बदायूं में रहता हूं वहां ज्यादातर मजदूर तबका रहता है इसलिए भारत सरकार व प्रदेश सरकार को जनता के लिए आर्थिक राहत पैकेज की भी घोषणा करनी चाहिए। केवल ₹500 की आर्थिक सहायता राशि वह भी सिर्फ जनधन खातों में डालना ऊंट के मुंह में जीरा डालने के बराबर होगा। भारत में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत न जाने कितनी ही एनजीओ चलते हैं और भारत सरकार से काफी फायदा उठाते हैं संकट की इस स्थिति में ऐसे एनजीओ को भारत सरकार की आर्थिक मदद करना चाहिए। lockdown के कारण देश की आर्थिक स्थिति पर भी  बहुत बुरा असर पड़ा रहा है। ऐसी स्थिति में  देश के उद्योगपति  बॉलीवुड के सितारे  व कारपोरेट सेक्टर से जुड़े हुए लोगों को  प्रधानमंत्री सहायता कोष मैं ज्यादा से ज्यादा  डोनेशन  देना चाहिए  ताकि उसका इस्तेमाल  भारत सरकार  भारत की ही जनता पर  कर सके। एक तो स्थिति वैसे ही खराब है उस पर जनता को जीवन यापन करने की आवश्यक वस्तुएं जैसे खाद्य सामग्री दूध सब्जी व दवाइयां यदि ना मिले तो जनता तो वैसे ही अध मरी हो जाएगी। ऐसी नाजुक स्थिति में प्रशासन व पुलिस प्रशासन कानून व्यवस्था के नाम पर जनता पर जरूरत से ज्यादा अपनी शक्तियों का नाजायज फायदा भी उठाते नजर आते हैं। प्रशासन का यह परम कर्तव्य है की ऐसी स्थिति में शासन द्वारा दी गई सुविधाएं जनता तक सुविधाजनक तरीके से पहुंच जाएं और जनता को विशेषकर खाद्य सामग्री दूध दवाइयों की सप्लाई शहर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी आसानी से प्राप्त हो सके। हालांकि हमारे जिला बदायूं के जिलाधिकारी श्री कुमार प्रशांत और विशेषकर तहसील सहसवान में तहसील सहसवान के  उप जिलाधिकारी श्री लाल बहादुर सीओ सहसवान श्री रामकरन व कोतवाल सहसवान श्री हरेंद्र सिंह  तथा कस्बा इंचार्ज श्री राम कुमार की कार्यशैली की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। यहां किसी व्यक्ति को खाद्य सामग्री प्राप्त करने व दवाइयां प्राप्त करने में कोई परेशानी नहीं हो रही है मगर प्रशासनिक अधिकारियों को इस बात पर भी ध्यान अवश्य देना चाहिए कि नगर या जिन ग्रामीण क्षेत्रों में पास जारी ना होने की वजह से सब्जी फल या दूध वगैरा नहीं पहुंच पा रहा है तो ऐसे ही ग्रामीण क्षेत्रों में पास बनवा कर वहां के लोगों को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने हैं की भी कोशिश करें। घर घर जाकर  सर्वेक्षण करने वाली  कर्मचारी  जैसे आंगनबाड़ी  चुनाव के दौरान  सर्वेक्षण करने वाले  नगर पालिका  के कर्मचारियों के पास पूरे शहर के गरीब व जरूरतमंद  परिवारों का रिकॉर्ड होता है। ऐसे परिवारों से संपर्क स्थापित करके उन्हें खाद सामग्री जैसे गेहूं ,चावल और दाल  शासन वा प्रशासन द्वारा  उपलब्ध  कराया जाना चाहिए। आने वाले 15 दिन इस देश की गरीब व मजदूर जनता के लिए बहुत ही मुश्किल भरे होंगे अब स्थिति यह उत्पन्न हो गई है कि एक सगा भाई भी अपने दूसरे सगे भाई की आर्थिक मदद चाह कर भी नहीं कर सकता क्योंकि लॉक डाउन की वजह से एक आम आदमी की कमर टूट गई है। वास्तव में आम जनता की लोक डाउन की अवधि बढ़ने के कारण दयनीय स्थिति का वर्णन जो मैं इस लेख में कर रहा हूं वो टीवी न्यूज़ चैनल को करना चाहिए मगर उन्हें थाली में भोजन परोसने की जगह जहर परोसने से ही फुर्सत नहीं है। संकट की स्थिति में  जहां पूरा देश  इस महामारी से एक साथ  मिलकर युद्ध  लड़ रहा है  वही समाज का एक घिनौना चेहरा  भी सामने आ रहा है ऐसी भी घटनाएं घटित हो रही हैं  कि कुछ सब्जी व फल बेचने वाले  लोगों को  एक विशेष संप्रदाय का होने के कारण  कुछ घटिया और तुच्छ मानसिकता रखने वाले लोग उन्हें अपने मोहल्लों में नहीं घुसने दे रहे हैं ।समाज में इस तरह के व्यक्ति मखमल पर एक टाट का पैबंद की तरह होते हैं और स्थिति तब और ज्यादा शर्मनाक हो जाती है जब कुछ संकीर्ण मानसिकता वाले प्रशासनिक अधिकारी ही सरकारी सुविधाएं लोगों तक पहुंचाने में भेदभाव करने लगते हैं। वह मुश्किल की इस घड़ी में भी भूखे व्यक्ति का धर्म टटोलने की एक घटिया कोशिश करते हैं। स्थिति कहीं यह उत्पन्न ना हो जाए कि “जिंदगी की तलाश में हम मौत के कितने करीब आ गए”। इस वैश्विक महामारी से जीवन बचाने के लिए ईश्वर ना करें हमारे गरीब परिवारों में भुखमरी के हालात पैदा ना हो जाएं । कई परिवार ऐसे भी होते हैं जो अपना सोशल स्टेटस बनाने के लिए कपड़े तो बहुत अच्छे पहनते हैं मगर उनके अंदरूनी हालात बहुत ज्यादा खराब होते हैं और ऐसे व्यक्ति भूख के कारण फाका अन्  त्याग तो कर सकते हैं मगर अपनी मजबूरी किसी के सामने जाहिर नहीं कर सकते। मेरे इस लेख को सम्मानित पाठक नकारात्मक दृष्टि से ना देखें यह समाज की एक कड़वी सच्चाई है जो जमीनी स्तर पर काम करके और मजदूर  गरीब परिवारों से बात करके सर्वेक्षण के बाद सही स्थिति का पता चलता है। हालांकि मुझे  अपने शहर  सहसवान के दोनों धर्मों के हिंदू एवं मुस्लिम परिवार के संपन्न एवं सम्मानित नागरिकों पर जो गरीब परिवारों को खामोशी से बिना एलान लगाएं खाद्य सामग्री उनके घर पहुंचा रहे हैं, एवं सामाजिक कल्याण संस्था जिसका नाम मिल्ली इमदादी सोसाइटी है, पर गर्व है जो मुश्किल की इस घड़ी में अब तक लगभग 500 परिवारों को खाद्य सामग्री प्रचुर मात्रा में बांट चुकी है और इस प्रकार की सहायता मिल्ली  इमदादी सोसाइटी के द्वारा आगे भी जारी रहेगी। अतः लेख के अंत में मेरी धनी व संपन्न लोगों से विनती है की कोरोना नामक महामारी से युद्ध लड़ने के साथ साथ लोगों के भूख के कारण पेट में लगी आग को भी बुझाने का अपने स्तर से प्रयास जब तक lockdown खुल ना जाए तब तक करते रहे।

यह लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार हैं यदि इस लेख में कोई त्रुटि हो तो मैं अपने सम्मानित पाठकों से क्षमा चाहता हूं।

Share and Enjoy !

Shares

Related posts