By: Akhil Kumar Srivastava, Bureau Chief-ICN U.P.
दुख का सन्नाटा गहरा है ।
जीवन दुनिया का ठहरा है।।
हरदम गिनती बढ़ती जाती।
साँसें पल पल थमती जाती।।
पहुंचा मंगल चाँद तलक जो।
नतमस्तक है किंतु विश्व वो।
जिसने पंख प्रकृति के नोचे।
पड़ा ज़मीं पर गुपचुप सोचे।।
सृष्टि रही फुफकार भयानक।
विवश विश्व हो गया अचानक।।
कुछ विचार कर मनुज अभागे।
हिंसा सदा जीव पर त्यागे ।।
प्रलय यही, इसमें क्या शक है।
मिला प्रकृति से बड़ा सबक है।।
संकट में है साँस अभी भी।
लेकिन जीवित आस अभी भी।।
दुख का सन्नाटा, माना है।
पर इसको भी जी जाना है।।
रात कटेगी, प्रात खिलेगा।
जीवन का आनंद मिलेगा।।