अज़ाब कुदरत का-2

मोहम्मद सलीम खान, सीनियर सब एडिटर-आईसीएन ग्रुप  

सहसवान/बदायूं: ईश्वर धरती पर जब लोगों को या देश की सरकारों को  छूट दे देता है  तो दुनिया के लोग  और दुनिया की सरकारें घमंड और अहंकार में इतनी  चूर हो जाती हैं कि वह अपने आप को ही ईश्वर समझ बैठती है और जब ईश्वर अपनी रस्सी खींचता है  तो चीख निकल जाती है इसी के परिणाम स्वरूप ज्यादातर इन्हीं देशों में समय-समय पर अलग-अलग तरह की बीमारियां जैसे स्वाइन फ्लू बर्ड फ्लू जैसी संक्रामक बीमारियां भी होती रही हैं और इन देशों के लोगों के मुंह पर नकाब भी लगते रहे हैं जो लोग नकाब का विरोध करने वाले थे ईश्वर ने  सर से लेकर पैर तक उनके  शरीर पर नकाब लगा दिया। मेरा पाठकों से विनम्र निवेदन है  कि वे नकाब शब्द किसी एक धर्म विशेष के सिंबल या चिन्ह के रूप में ना देखें क्योंकि केवल मुस्लिम महिलाएं ही पर्दा नहीं करती हैं बल्कि हिंदू महिलाएं भी पर्दा करती हैं जिसका उदाहरण आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में देखा जा सकता है ग्रामीण क्षेत्रों की  हिंदू महिलाएं अपने चेहरे को घूंघट से ढकती हैं ईश्वर ने हमें बुद्धि दी है उसका इस्तेमाल करते हुए इस लॉजिक को समझें कि आखिर कहीं न कहीं हमने कुदरत के नियमों के साथ छेड़छाड़ की है या उस ईश्वर के बंदों के साथ अलग-अलग जगहों पर और अलग-अलग देशों में हमने अत्याचार किया यह वायरस ईश्वर के किसी दुखी व्यक्ति का कोई  श्राप तो नहीं है आज प्रकृति के प्रकोप ने महिलाओं के अलावा पुरुषों के मुंह पर भी नकाब लगा दिया जो लोग कल तक बुर्का या नकाब का मजाक उड़ाते थे वही लोग अपने मुंह पर नकाब लगाकर घूम रहे हैं जिसको हम अंग्रेजी में मास्क कहते हैं मैं पूरी सच्चाई और ईमानदारी से यह कह रहा हूं कि यह लेख किसी भी देश समाज या व्यक्ति के लिए कटाक्ष नहीं है हां एक संदेश जरूर है कि हम अपना सभी धर्म जाति और संप्रदाय के लोग अपना मुहास बा या आकलन करें कि आखिर हमसे चूक कहां हुई और सारी दुनिया की महा शक्तियां इस बात का ध्यान रखें कि उनसे भी बड़ी एक शक्ति है जिसको हम अल्लाह ईश्वर या गॉड के नाम से जानते हैं और उस ईश्वर की लाठी में आवाज नहीं होती आज सारी दुनिया की शक्तियां उस महाशक्ति के एक वायरस के सामने नतमस्तक हैं। अभी तो केवल 1 सप्ताह ही हुआ है और हमारा अपने घरों में दिल घबराने लगा  अब जरा कल्पना कीजिए  कश्मीर  जो हमारे महान मुल्क हिंदुस्तान का एक अभिन्न अंग है और इंशाल्लाह हमेशा रहेगा  वहां के नागरिकों पर क्या गुजर रही होगी जो पिछले 6 महीनों से अपने घरों में बंद हैं। खुदा का शुक्र है कि हमारे पास इंटरनेट फैसिलिटी मौजूद है जो मोबाइल या टीवी के द्वारा  अपना वक्त गुजार लेते हैं  कल्पना कीजिए उन लोगों की परेशानियों के बारे में  जो इसी हिंदुस्तान के नागरिक हैं  उन लोगों के ऊपर क्या बीत रही होगी। कुरान और वेदों में लिखा है कि हमें  किसी मजलूम की बद्दुआ  या श्राप नहीं लेना चाहिए  क्योंकि उसका ताल्लुक  सीधा सातवें आसमान से होता है। मे अल्लाह का शुक्रगुजार हूं कि मैं आईसीएन मीडिया वर्ल्ड मैं सीनियर सब एडिटर हूं और हमारे ग्रुप का नेटवर्क  बाहर विदेशों में भी है  इस लेख के जरिए मैं देश और विदेश मैं रह रहे  अपने सभी सम्मानित पाठकों से अपील करता हूं कि कोरोनावायरस  का यह तूफान गुजर जाने के बाद  कृपया सभी को  इस दुनिया में प्यार और मोहब्बत फैलाने का पैगाम दें। यह जिंदगी मोहब्बत के लिए ही बहुत कम है  नफरत के लिए वक्त कहां से निकाला जाए। ईश्वर की कृपा है कि हमारा जिला बदायूं वायरस के इस प्रकोप से बचा हुआ है और यहां के जिलाधिकारी महोदय कुमार प्रशांत एसएसपी बदायूं श्री अशोक कुमार त्रिपाठी और सहसवान के उप जिलाधिकारी महोदय लाल बहादुर सहसवान सीओ श्री राम करन,सहसवान कोतवाल श्री हरेन्द्र सिंह और सहसवान के कस्बा इंचार्ज श्री राम कुमार के दिन रात अथक प्रयासों के कारण यहां की जनता को खाद्य सामग्री प्राप्त करने में या और अन्य मेडिकल फैसिलिटी हासिल करने में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हो रही है और यहां की जनता लॉक डाउन का पूरी तरह से पालन कर रही है। समाज में कुछ असामाजिक तत्व भी होते हैं जो पुलिस और प्रशासन को परेशान करते हैं लेकिन अक्सर ऐसा होता है हुड़दंग मचाने वाले लोग जिस वक्त पुलिस को देखते हैं तो वह तो अपने घरों में घुस जाते हैं और एक भला आदमी जो बेचारा किसी काम से दुकान से कोई सामान लेने निकलता है वह पुलिस के हत्थे चढ़ जाता है और शरारती तत्वों का गुस्सा पुलिस उस भले आदमी पर निकाल देती है। इस लेख के जरिए मेरा सभी पाठकों से अनुरोध है की वे  पुलिस वा प्रशासनिक अधिकारियों को सहयोग करते हुए सरकार के आदेश का पालन करें आफ्टर ऑल यह लोग डाउन हमारा जीवन बचाने के लिए ही किया गया है। अंत में मेरा जिलाधिकारी महोदय बदायूं  कुमार प्रशांत साहब से और एसएसपी महोदय अशोक कुमार त्रिपाठी और बदायूं जिले के तमाम प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिसकर्मियों व पुलिस अधिकारियों तथा शहर के तमाम साहिबे हैसियत संपन्न लोगों से मेरा विनम्र निवेदन है की मुश्किल की इस घड़ी में इस बात का ध्यान रखें कि कोई भी व्यक्ति भूखा ना सोए। छोटे मासूम बच्चे जो केवल दूध के ऊपर ही निर्भर रहते हैं दूध की सप्लाई किसी भी हाल में ना रुके।

यह लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार हैं यदि किसी व्यक्ति को मेरे किसी शब्द से कोई कष्ट हो इस लेख में कोई त्रुटि हो तो उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं।

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