कोरोना वायरस : यह तीसरा विश्वयुद्ध है

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
बचपन में एक‌ कहानी पढ़ी थी। एक राजा के दरबार में एक जादूगर पहुँचा और अपनी जादुई कलाकारी के प्रदर्शन से सबको मुग्ध करने के बाद जब राजा ने उससे कुछ मांगने के लिये कहा तो उसने कहा,” हे राजन्! मुझे एक शतरंज के प्रत्येक खाने में दोगुने करते हुये चावल प्रदान करें।” राजा ने सोचा कि कुल मुट्ठी भर चावल ही होेंगे किंतु जब चावलों की गणना हुई तो उसके राज्य का कुल चावल भी कम पड़ गया लेकिन जादूगर की झोली नहीं भरी।
यह पुरानी कहानी कोरोना वायरस के नये संस्करण व आवरण में आज पुनः उपस्थित हेै। कोरोना जादूगर हेै, संपूर्ण विश्व शतरंज है और हम एवं आप वे चावल के दाने हैं जो ‘प्रत्येक बार दोगुने की गणित’ से जादूगर की काल पोटली में सदैव के लिये जाने को तैयार बैठे हैं यदि हम समय रहते जादूगर की इस जादुई श्रृंखला को ध्वस्त नहीं कर देते हेैं।
ऐसा लग रहा है जैसे हम सब किसी हॉलीवुड की फैंटेसी मूवी के चरित्र हेैं औेर संपूर्ण विश्व किसी आकाशीय लोक के दुर्दांत लड़ाकों की अदृश्य फौज का सामना कर रहा है। इस अदृश्य विषैली महाशक्ति के समक्ष हमारे सारे हथियार मात्र खिलौने बन कर रह गये हैं और हम सब आकाश में आँखें गड़ाये अपने रक्षक किसी ‘एवेंजर्स’ को तलाश रहे हों। इस फैंटेसी और हमारी वास्तविकता में मात्र इतना ही अंतर हेेै कि मूवी में तो भिन्न भिन्न रंगों के परिधान पहने हुये आश्चर्यचकित कर देने वाले हथियारों के साथ अनेक वैश्विक महायोद्धागण अपने अपने जीवन की बाजी लगाकर हमारी प्यारी धरती व हमें बचा लेते हैं किंतु वास्तविक जीवन में ऐसा कोई ‘एवेंजर’ हमें बचाने के लिये बाहर से कभी नहीं आयेगा।
यह संभवतः हमारे लिये निराशा की बात है कि हमें बचाने के लिये कोई एवेंजर बाहर से नहीं आने वाला है किंतु यह निश्चित ही हर्ष का विषय है कि हममें से प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक एक एवेंजर छिपा बैठा है जिसे हमें बाहर निकालना हेै और ‘समझदारी’, ‘सावधानी’ एवं ‘सतर्कता’ के सबसे ज़बर्दस्त हथियारों के साथ हमें सृष्टि के इस महाशत्रु से युद्ध कर इसे सदैव के लिये पराजित करना हेै।
कोरोना वायरस (कोविड- 19) कैसे जन्मा, कैसे विकसित हुआ और कैसे उसने सारे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया, यह सब तथ्य अनेकों माध्यमों से हम सब तक पहुँच चुके हैं और अब हम सबको यह विश्वास कर ही लेना चाहिए कि विश्व आज अपने ही बनाये बारूद के ढेर पर बैठा हेै और उसका पलीता सुलग रहा है। सच यह है कि यदि हम ‘दो दूनी चार दूनी आठ’ की निश्चित दिखाई दे रही गणित के पर कतर सकने में सक्षम हो सकें तो इसका सीधा सा अर्थ यह होगा कि हमने निरंतर बारूद के ढेर की ओर सरकते सुलगते हुये पलीते को काट कर अलग फेंक दिया और विश्व को महाप्रलय से सुरक्षित कर ‌लिया। यह थोड़ा मुश्किल तो लग सकता है किंतु असंभव हर्गिज़ नहीं।
हमारा सौभाग्य हेै कि जब तक विश्व के साइंटिस्ट कोरोना के डी.एन.ए. में सुराख करने के हथियार बना रहे हेैं,  हमें कोरोना की प्रारंभिक कमज़ोरियाँ मालूम हो गयी हैं और हम जान चुके हेैं कि कोरोना ऐसी महाशक्ति है जिसे हम ताकत से भले ही न हरा पायें किंतु उसकी अपनी ही कमज़ोरियों से उसे अवश्य ही हरा सकते हैं। कोरोना का वायरस हवा में यात्रा नहीं करता और उसकी मार संक्रमित व्यक्ति की थूक, छींक व स्पर्श के माध्यम से सम्पन्न होती है और यदि हम इसकी यात्रा को इसकी सीमित मार के दायरे से दूर रहकर रोक सकें तो इस वायरस की अधिकतम आयु चौदह दिन ही है। ये तथ्य हमारे बचाव के सबसे सुदृढ़ उपकरण हैं।
ईश्वर, गाड अथवा अल्लाह अपने हज़ारों लाखों हाथों से हमारी रक्षा करता है, हजा़रों लाखों पाँवों से हमारी यात्रायें पूरी करवाता है और असीमित ज्ञान व बुद्धि से हमारा भाग्य निश्चित करता है। सत्यता यह है कि हमारे हाथ ही उसके हाथ हेेैं, हमारे पाँव ही उसके पाँव हैं और हमारा विवेक ही उसका महाज्ञान है। हम सबमें ईश्वर है, गाड है, अल्लाह है। हमें अपने ही हाथों, पाँवों व विवेक का प्रयोग करना है और यही हमारे लिये ईश्वरीय सहायता हेै।
महाभारत में एक  युद्धनीति ‘चक्रव्यूह’ का वर्णन है। कोरोना वायरस ने हमें अपने जाल में फँसाने के‌ लिये जो बिसात बिछाई है, उसकी काट के लिये एवं कोरोना की स्थायी समाप्ति के लिये हम सबको अपना ‘समवेत चक्रव्यूह’ रचना हेै और इस चक्रव्यूह में हममें से प्रत्येक को एक दूसरे से एक निश्चित दूरी बनाये रखना है ताकि हम कोरोना के वार से मुक्त रह सकें तथा संक्रमण की किसी भी संभावना को नेस्तानाबूत करने के लिये अपने हाथों व शरीर की निरंतर स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना है।
हम अपने-अपने धार्मिक स्थलों में बाहर से कोई प्रकाश प्राप्त करने नहीं जाते हैं बल्कि अपने ह्रदय में जल रहे दीपक के इर्द गिर्द जम गये काजल को उकेरने जाते हैं ताकि हमारा प्रकाश बाहर झांक सके। यह बात आज फिर सिद्ध हो गयी कि विश्व भर के मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्धारे व अन्य धार्मिक स्थलों के कपाट बंद होने के बावजूद ईश्वर हमारे हृदयों मे मौजूद हेै और हमारी प्रार्थनायें किसी आकाशीय ईश्वरीय सत्ता के लिये नहीं वरन् हमारे स्वयं में उपस्थित ईश्वर के लिये होती हैं ताकि हमारा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के प्रति विश्वास जीवित रह सके।
प्रथम व द्धितीय विश्वयुद्ध अथवा किसी भी महान आपदा के समय भारतीय रेलवे आज तक कभी भी नहीं रुकी हेै किंतु आज यदि विश्व की सबसे बड़ी रेल सेवा ने अपने आप को जाम कर लिया हेै तो कोरोना नामक इस महा आपदा की गंभीरता के विषय में कोई अन्य प्रश्न शेष ही नहीं रह जाता है।
तीसरा विश्व युद्ध प्रारंभ हो चुका हेै। यह युद्ध बमवर्षक हवाई जहाजों, जंगी पैटनटैंकों, अग्नि मिसाइलों अथवा समुद्र की छाती चीरते विशालकाय जहाजी बेड़ों या पनडुब्बियों से नहीं बल्कि हमारी समझदारी, पारस्परिक समन्वय, सतर्कता, सावधानी व वैश्विक टीमवर्क से लड़ा जाना है। इस विश्व युद्ध में सारा विश्व एक तरफ है और कोरोना वायरस दूसरी ओर। हारेगा तो सारा विश्व हारेगा और यदि जीतेगा तो सारा विश्व जीतेगा। हम सब मात्र नागरिक, अध्यापक, विद्यार्थी, कर्मचारी, डाक्टर, अधिवक्ता, लेखक, कवि, व्यापारी अथवा किसान ही नहीं है बल्कि हम सब कोरोना के विरुद्ध वैश्विक सेना के सिपाही भी हैं और हम यह विश्वयुद्ध अवश्य जीतेंगे। आमीन् ।

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