जमीन पर जेट एयरवेज

उदारवाद की वकालत करने वालों के कभी हमसफर रहे जेट एयरवेज ने पिछले साल ही अपनी 25वीं वर्षगांठ मनाई थी। उस पर करोड़ों का कर्ज बकाया था, नया कर्ज मिलने में दिक्कत हुई।
नतीजतन आसमान पर कुलांचे भरती जेट एयरवेज धरती पर आ गयी। जाहिर है, यात्रियों को तो परेशानी उठानी ही पड़ी, इसके कर्मचारी भी बेरोजगार हो गए। चूंकि 8500 करोड़ की देनदारियां अभी मालिकों पर बकाया है, इसलिए उधार देने वाले अगली राशि न देने का मूड बना चुके हैं। सवाल बाकी है कि कर्ज की गठड़ी इतनी भारी-भरकम कैसे हो गई? उसे क्यों नहीं चुकाया गया? एहतियाती कदम क्यों नहीं उठाए गए? हालांकि, समय-समय पर चेतावनी जारी हुई कि उदारवाद के पोस्टर ब्वॉय की तबीयत नासाज है। इससे पूर्व 2012 में किंग फिशर के साथ भी ऐसा हो चुका है। दो बड़ी विमानन सेवाएं, जिनका विश्वभर में सिक्का चलता था, का अचानक बंद हो जाना नि:संदेह दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा। हालांकि एयर इंडिया के हालात भी कमोबेश अच्छे नहीं हैं लेकिन सरकारी मदद के कारण इसे जीवनदान मिला हुआ है।जहां तक एयरलाइंस में वित्तीय लाभ का सवाल है, इसमें केवल इंडिगो ही खरी उतरती है। चूंकि चुनावी गहमागहमी अभी जारी है, इसलिए सरकार इस मामले को उलझने से बचाने की कोशिश करेगी। नि:संदेह सरकार ही इस सेक्टर को पुनर्जन्म दे सकती है। दरअसल, यह सरकार तथा उधार देने वाले साहूकारों का फर्ज बनता है कि वे देश की जनता को उस वजह की स्पष्ट जानकारी दें जो घाटे के लिए उत्तरदायी हैं। साथ ही यह भी कि चूक कहां पर हुई कि अचानक उड़ाने बंद करनी पड़ीं। कोई तो ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए थी कि किसी तरह से ये उड़ानें निर्बाध रह पातीं। इससे कंपनी की साख पर सीधा असर पड़ा है। किसी भी तरह उड़ानों का सिलसिला टूटना नहीं चाहिए था ताकि हवाई सफर पर निकले यात्री हक्के-बक्के न रहते और स्टाफ बेरोजगार भी नहीं होता।

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