1984 के बाद आरा में लड़ाई से बाहर हो गयी कांग्रेस, 2014 में पहली बार जीती भाजपा (हाल-ए-लोकसभा, आरा)

राणा अवधूत कुमार
कभी कांग्रेस का अभेद्य किला रहे आरा सीट पर 1989 से अलग-अलग दलों के सांसद रहे
शाहाबाद के नाम से मशहूर रहे इलाके में समाजवादियों और वामपंथियों का प्रभाव रहां है
1952 से 2014 तक आरा लोकसभा सीट से 17 लोकसभा चुनकर गए हैं कुल 10 सासंद
सासाराम। कभी कांग्रेस की परंपरागत सीट रही आरा संसदीय क्षेत्र पर 1989 के बाद से समाजवादियों और वामपंथियों का गहरा प्रभाव रहा है. देश की दोनों प्रमुख पार्टियां कांग्रेस व भाजपा 2014 से पूर्व आरा सीट से दूर हो गयी थी. 2014 में राजकुमार सिंह उर्फ़ आर.के. सिंह पहली बार यहां भाजपा के कमल खिलाने में कामयाब हुए. आईएएस की आरामतलवी जिंदगी से निकल राजनीती की पथरीली राहों में जब आरके सिंह 2014 में आये तो उनकी चर्चा पूरे आरा क्षेत्र में थी. लेकिन गृह सचिव की जिम्मेवारी संभालने वाले आर.के. सिंह राजनीती में भी मंझे हुए खिलाड़ी की तरह खेलते नज़र आये. बाद में ऊर्जा मंत्रालय की जिम्मेदारी भी निभायी। 2014 से पूर्व भाजपा और कांग्रेस जैसे बड़े दल आरा सीट से दूर ही रहे थे. हालांकि कांग्रेस अभी भी आरा में संगठनात्मक रूप से कमजोर हो गयी है. यहां राजद, जदयू, समता व कम्युनिष्ट पार्टियों जैसे क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व रहा है। 1991 के बाद भाजपा ने तो आरा में कभी अपने प्रत्याशी ही नहीं उतारे। भाजपा इसके बाद हर चुनाव में यह सीट अपने सहयोगी जदयू, समता को दे दी है। लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष बलिराम भगत की कर्मस्थली रहे इस क्षेत्र में अब कांग्रेस का नाम लेने वाले भी कम ही रह गए हैं। 1952 से 1984 तक बलिराम भगत कुल छह बार यहां से कांग्रेस के सांसद बनते रहे. लेकिन इस सीट पर 1989 के जनता दल के लहर के बाद दोनों प्रमुख दल लड़ाई से बाहर ही रहे हैं। इस बार भी एनडीए गठबंधन की ओर से भाजपा उम्मीदवार के रूप में आरके सिंह हैं तो दूसरी ओर महागठबंधन के साझा उम्मीदवार राजद की टिकट पर राजू यादव मैदान में हैं. मूल रूप से सीपीआई माले के नेता राजू राजद की कोटे से चुनाव में हैं. इस सीट की विडंबना रही है कि क्षेत्र व पार्टी के साथ यहां के सासंद भी बदलते रहे हैं। 1984 के बाद यहां कोई प्रत्याशी दोबारा जीत हासिल नहीं कर सका है
1952 से 1984 तक कांग्रेस इस सीट पर रही थी मजबूत 
1952 में शाहाबाद पटना क्षेत्र के नाम से जाने जाने वाले इस क्षेत्र से कांग्रेस के दिग्गज नेता बलिराम भगत सांसद बने थे. इसके बाद अगले चार चुनावों में 1971 तक पांच चुनाव में बलिराम भगत की जीत का प्रतिशत बढ़ता गया. 1962 में यह सीट स्वतंत्र रूप से आरा क्षेत्र बन गया। 1977 में जनता पार्टी की लहर में भारतीय लोक दल के चंद्रदेव प्रसाद वर्मा बलिराम भगत को हरा कर यहां से पहली बार सांसद बने. 1980 में जनता पार्टी की टिकट पर चंद्रदेव प्रसाद वर्मा दोबारा सांसद बने. 1984 में कांग्रेस के बलिराम भगत ने फिर से इस सीट पर वापसी की.. इसके बाद कांग्रेस इस सीट पर कभी जीत नहीं दर्ज कर सकी। 1989 में जनता दल के लहर के बावजूद आरा में पहली बार सीपीआई को इस सीट पर कब्ज़ा हुआ. आईपीएफ माले यानि इंडियंस पिपुल्स फ्रंट के रामेश्वर प्रसाद आरा सीट से सांसद बने. इसके बाद हर चुनाव में यहां से अलग-अलग दलों के प्रत्याशी सांसद बने।
1989 से आरा क्षेत्र से लगातार बदल रहे हैं सांसद
आरा संसदीय क्षेत्र देश के उन कुछ चुनिंदा लोकसभा सीटों में रही है। जहां बलिराम भगत को छोड़कर किसी सांसद को एक बार से अधिक प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला है। 1996 में जनता दल से चंद्रदेव प्रसाद वर्मा सांसद बने. 1998 के चुनाव में समता पार्टी के टिकट पर एचपी सिंह सांसद बने। लेकिन एक वर्ष बाद ही 1999 में राजद की टिकट पर रामप्रसाद सिंह एचपी सिंह को हरा कर पहली बार सांसद बने। 2004 में राजद की टिकट पर कांति सिंह भी पहली बार यहां से सांसद बनी. 2009 में तपेश्वर सिंह की बहू और अजीत सिंह की पत्नी मीना सिंह पहली बार सांसद बनी. 2014 में मोदी लहर पर सवार सुपौल से आए पूर्व गृह सचिव आरके सिंह राजद के भगवान सिंह कुशवाहा को बड़े अंतर से हरा कर पहली बार सांसद बने.
इस बार भाजपा-राजद में है सीधा मुकाबला
17 वीं लोकसभा चुनाव में एनडीए की ओर से भाजपा प्रत्याशी राजकुमार सिंह उर्फ़ आरके सिंह व महागठबंधन की ओर राजद प्रत्याशी राजू यादव के बीच सीधी टक्कर है। दोनों गठबंधनों की ओर से जातीय समीकरण को ध्यान में रख प्रत्याशियों का चयन किया गया है। राजू यादव पिछले चुनाव में डेढ़ लाख वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहा था. इस बार यादव, मुस्लिम, कुशवाहा, दलित और वाम दलों के साथ अपने कैडर वोटर्स राजू के पक्ष में दिख रहे हैं. उधर आरके सिंह सवर्णों के साथ अति पिछड़ों को साधने में जुटी है. हालांकि यहां आरके सिंह अपनी व्यक्तिगत छवि के आधार पर विपक्ष से आगे निकलते दिख रहे हैं. हालांकि आरा संसदीय क्षेत्र का मुकाबला इस बार रोचक होने की संभावना है। आरके सिंह को अपनी सीट बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.
आरा सीट की भौगोलिक संरचना
आरा संसदीय क्षेत्र भोजपुर जिला का मुख्यालय है। जिसमें कुल सात विधानसभा क्षेत्र शामिल किए गए हैं। इस सीट में तरारी, संदेश, अगियावं, जगदीशपुर, बड़हरा, आरा और शाहपुर विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। यहां लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में 19 मई को एक साथ सभी मतदान केंद्रों पर मतदान कराएं जाएंगे। लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 2055316 है।महिला मतदाताओं की संख्या 929835 है तो वहीं पुरूष मतदाताओं की संख्या 1125328 है। सबसे ख़ास बात कि आरा लोकसभा सीट के सातों विधानसभा में कहीं भी भाजपा के विधायक नहीं हैं. राजद से पांच विधायक एक भाकपा माले तरारी में जीती है. भाजपा की समर्थित जदयू को सुरक्षित सीट अगियावं पर जीत नसीब हुई थी.
वर्तमान सांसद – राजकुमार सिंह (मोदी कैबिनेट में ऊर्जा मंत्री के स्वतंत्र प्रभार मंत्री रहे)
आरा संसदीय सीट से 2014 के आम चुनाव में भाजपा के आरके सिंह पहली बार लोकसभा सांसद बने। मोदी लहर पर सवार होकर चुनाव जीतने के तीन वर्षों बाद मंत्रिमंडल विस्तार में ऊर्जा मंत्रालय की अहम जिम्मेवारी मिली। पांच साल तक सांसद के रूप में इनका कार्यकाल संतोषजनक रहा है. लोगों से मिलने-जुलने में थोड़ी कोताही रही. मूल रूप से सुपौल जिला के बाँसपट्टी गांव निवासी आरके सिंह का भोजपुर और रोहतास जिला से संबंध रहा है. देखने वाली बात होगी कि आरके सिंह का राजनैतिक भविष्य 23 मई के बाद कैसा रहता है?

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