मुश्किल होती उड़ान

संस्थापक चेयरमैन नरेश गोयल के पद छोडऩे और करीब 200 करोड़ रुपये की तात्कालिक मदद पाने के बाद भी जेट एयरवेज का संकट कम होता नहीं दिख रहा। यह रकम कर्मचारियों को बीते दिसंबर महीने का वेतन देने और ईंधन का बकाया चुकाने में खप गई बताई जाती है।
अभी तत्काल बाहरी मदद नहीं मिली तो उदारीकरण के दौर में आई शुरुआती उड्डयन कंपनियों में से एक जेट एयरवेज अप्रैल खत्म होते-होते पूरी तरह बैठ जाएगी।और हां, इन दिनों सबका ध्यान जेट एयरवेज की ही तरफ है, लेकिन सचाई यह है कि देश का पूरा एविएशन सेक्टर ही पिछले कुछ वर्षों से किसी दलदल में जा फंसा है। उबरने की लाख कोशिशों के बाद भी इसका कोई न कोई हिस्सा नीचे धंसता ही जा रहा है। विजय माल्या की किंगफिशर पहले ही डूब चुकी है, लेकिन अभी चाहे इंडिगो, स्पाइस जेट और गोएयर जैसी प्राइवेट कंपनियां हों या एयर इंडिया जैसा सरकारी महारथी, लगभग सारी ही एयरलाइंस वित्तीय मोर्चे पर लगातार संघर्ष करती दिख रही हैं। 42.5 फीसदी मार्केट शेयर वाली इंडिगो की बात करें तो दिसंबर में खत्म हुई तिमाही में इसके शुद्ध मुनाफे में 75 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि इसी तिमाही में स्पाइसजेट के शुद्ध मुनाफे में 77 फीसदी की कमी आई। आलम यह है कि क्षेत्रीय एयरपोर्ट विकसित करने को लेकर दो साल पहले लॉन्च की गई स्कीम उड़ान (उड़े देश का आम नागरिक) के तहत निविदा भरने वाली छह एयरलाइंस अपने ऑपरेशंस बंद कर चुकी हैं। इसका नतीजा यात्रियों को फ्लाइट कैंसिलेशन और बढ़ी टिकट दरों के रूप में भुगतना पड़ रहा है। एविएशन सेक्टर की गड़बडिय़ों के लिए सरकार की बदइंतजामी और मंत्रियों-अफसरों की मनमानी को जिम्मेदार ठहराते हुए भी इस हकीकत को रेखांकित करना जरूरी है कि भारत में एविएशन हाल तक सरकारी पैसों पर ही फलता-फूलता रहा, फिर चाहे वह हज सब्सिडी के रूप में मिलने वाली रकम हो या सरकारी हवाई यात्राओं का लंबा-चौड़ा बिल भुगतान हो। मामला उलझना तब शुरू हुआ, जब सरकारें इस खर्चे को लेकर सचेत हुईं और निजी कंपनियों के दखल से हवाई यात्रा आम लोगों के दायरे में आने लगी। इस विशाल ग्राहक वर्ग को लुभाने के लिए टिकट दर कम रखने की मजबूरी और ईंधन, पार्किंग व लीज के बढ़ते खर्च के बीच संतुलन बनाना इस सेक्टर के लिए कठिन चुनौती बना हुआ है। जेट एयरवेज का ऊंट आज नहीं तो कल एक करवट बैठ जाएगा। बोइंग 737 विमानों की उड़ान बंद होने से उपजी कठिनाई भी देर-सबेर दूर कर ली जाएगी। लेकिन इस सेक्टर को फैलाव के जरिये फायदेमंद बनाने की चुनौती उसके बाद भी बनी रहेगी। याद रहे, मार्च 2019 में समाप्त हुए वित्त वर्ष में भारतीय विमान कंपनियों का कुल घाटा 1.7 अरब डॉलर होने का अनुमान है जो अगले वित्त वर्ष में घटकर 55 से 70 करोड़ डॉलर के बीच रह सकता है। लेकिन फायदे में जाना अभी इस सेक्टर के लिए दूर की कौड़ी ही है।

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