बच्चे अक्सर शरारत करते हुए कई चीजें ऐसी कर देते हैं कि माता-पिता को गुस्सा आ जाता है। बच्चा अगर डांटने के बाद भी बात न माने तो अक्सर पैरंट्स उसे सजा देते हुए या तो पिटाई कर देते हैं या फिर उसे बाथरूम में बंद कर देते हैं।
मनोवैज्ञानिकों की मानें तो किसी भी तरह की शारीरिक सजा बच्चे पर बुरा प्रभाव डाल सकती है। वह आगे चलकर खुद को नुकसान पहुंचा सकते हैं या फिर गुस्सेल बन सकते हैं।एक से पांच साल तक के बच्चों के लिए सबसे महत्वपूर्ण पैरंट्स ही होते हैं। इस दौरान वह उनके सबसे करीब होते हैं। ऐसे में बार-बार डांट या पिटाई होने पर उनमें यह भी भाव आ सकता है कि अपने करीबियों या छोटों को मारना और नुकसान पहुंचाना गलत नहीं है। इस स्थिति से बचने के लिए मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि सजा देने की जगह बच्चों का ध्यान कहीं और लगाना उनसे बात मनवाने का ज्यादा अच्छा तरीका है। मनोवैज्ञानिक इस तरीके को रीडायरेक्ट मेथड कहते हैं। उनका कहना है कि बच्चे हमेशा नई चीजों की ओर आकर्षित होते हैं। वह नए-नए तरीकों से उन्हें टटोलने की कोशिश करते हैं। ऐसे में अगर उन्हें डांटा या मारा जाए तो यह उनकी चीजों के बारे में सीखने की क्षमता पर असर डालेगा। इससे बचने के लिए उन्हें रीडायरेक्ट करें।उदाहरण के लिए, अगर बच्चा बार-बार इलेक्ट्रिक प्लग की तरफ जाता है तो उसका ध्यान किसी अन्य चीज की ओर आकर्षित करें। बच्चे को दूसरे कमरे में ले जाकर उसे उसका खिलौना दे दें, ताकि वह खेलने लग जाए। हो सकता है कि बच्चा बार-बार प्लग के पास आए लेकिन पैरंट्स को पेशंस रखने की जरूरत है। थोड़ी देर में बच्चा आपकी बात समझ जाएगा और आपके कहने पर वह इलेक्ट्रिक प्लग से दूरी बनाए रखेगा। यह तरीका हर बार अपनाया जा सकता है। इसके साथ ही बच्चे को क्या न करें बताने की जगह उन्हें यह बताएं कि वह क्या करें। साथ ही उन्हें यह भी बताएं कि आपने उन्हें किसी चीज को करने से क्यों रोका है। इस तरह का पॉजिटिव डिसिप्लिन बच्चों पर गलत प्रभाव नहीं डालेगा और वह पैरंट्स की बात आसानी से मानना शुरू कर देंगे।