लिंगायत के बाद अब कोडावा समुदाय ने की अलग धर्म के दर्जे की मांग

कोडावा समुदाय
बेंगलुरु :  कर्नाटक सरकार के लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने की सिफारिश करने के दो दिन बाद अब कोडावा समुदाय भी धार्मिक अल्पसंख्यक मांग की रेस में शामिल हो गया है। बुधवार को समुदाय की तरफ से राज्य सरकार के अल्पसंख्यक विभाग को एमएम बंसी और विजय मुथप्पा ने ज्ञापन सौंपा है। विभाग ने कर्नाटक राज्य अल्पसंख्यक आयोग को समुदाय की मांगों से अवगत कराया।
ज्ञापन में कहा गया है, कोडावा समुदाय अल्पसंख्यक धर्म के दर्जे के योग्य है क्योंकि हमारी जनसंख्या 1.5 लाख से भी कम है। केंद्र ने संविधान की आठवीं अनुसूची में कोडावा थक्क, (कोडावी भाषा) को स्क्रिप्ट के बिना शामिल करने पर विचार किया है और प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक अधिसूचना भी जारी की गई है।
हम प्रकृति के पुजारी 
अपनी मांगों को न्यायोचित ठहराते हुए ज्ञापन में समुदाय की ओर से कहा गया है, हम प्रकृति के पुजारी हैं और हिंदू धर्म के कई रिवाजों का पालन नहीं करते। हमारी किसी भी रस्म में ब्राह्मण पुजारी को शामिल नहीं किया जाता है और हमारे सभी शास्त्र हमारी अपनी भाषा में है। हमारी वेशभूषा भी अलग है और हमारा प्रमुख आहार पोर्क (मांसाहारी) है।
इनकी मांगों का समर्थन करते हुए कोडगु स्थित नैचरल साइंसेस सोसाइटी के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल बीसी नंदा ने कहा कि कोडावा करीब 2 हजार साल पहले से कोडगु में बसे हुए हैं और इनकी पहली दर्ज उपस्थिति 1174 में होयसल राजवंश के दौरान पाई गई।
पहले अलग राज्य हुआ करता था कोडगु 
नंदा ने आगे बताया, कोडगु पहले एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था, जिसमें 1830 तक हलेरी (लिंगायत) राजाओं ने शासन किया। इसके बांद 1947 तक यहां अंग्रेजों का राज रहा। इसके बाद इसके सी राज्य घोषित होने पर सीएम पूनाचा यहां के पहले और आखिरी मुख्यमंत्री बने। 1 नवंबर 1956 को यह कर्नाटक राज्य में शामिल हो गया। कुछ कोडावा नेताओं ने कहा, कोडावा एकमात्र ऐसा समुदाय है जिसमें वंशावली आधारित कुल प्रणाली हैं। इनका एक पवित्र पाठ पटोले पलाम भी है, जो एक विशिष्ट संस्कृति का रेकॉर्ड है और 19वीं शताब्दी के आखिर में नदिकेरियंदा चिनप्पा द्वारा संकलित किया गया।
सुब्रमण्यम स्वामी ने भी दिया समर्थन 
कुछ कोडावा कार्यकर्ता भी मांग कर रहे हैं कि उन्हें कम से कम गोरखा हिल काउंसिल की तर्ज पर एक स्वायत्तता का दर्जा तो मिलना चाहिए। वरिष्ठ बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी कोडगु को स्वायत्त दर्जा देने के पक्ष में हैं और उन्होंने इसके संबंधन में व्यक्तिगत बिल भी संसद में पेश करने का वादा किया है। राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने हालिया कोडगु जिले के दौरे के दौरान कहा था कि कोडगु की स्वायत्तता की मांग पूरी तरह से उनकी जाति, समुदाय, परंपराओं और रिवाजों की रक्षा के लिए उचित है।
आदिवासी दर्जा देने के विचार पर कांग्रेस के नेताओं ने किया था विरोध 
उन्होंने वादा किया कि वे न सिर्फ कोडगु की स्वायत्तता बल्कि संविधान की आठवीं अनुसूचि में कोडावा भाषा के समावेश को भी समर्थन देते हैं। इससे पहले कर्नाटक सरकार ने कोडावा नैशनल काउंसिल (सीएनसी) के ज्ञापन से आधार पर मानव जाति विज्ञान और सोशियो-इकॉनमिक सर्वे भी कराने की पहल की थी, जिससे यह पता चल सके कि कोडावा समुदाय आदिवासी दर्जे के लिए अनुकूल है या नहीं। लेकिन इसे कांग्रेस में कोडावा और आदिवासी नेताओं के विरोध के बारे में बीच में ही रोक दिया गया।
सीएनसी नेता एनयू नाचप्पा ने कहा, विधानसभा में कोडावा की उपस्थिति सिर्फ दो सीटों तक है जबकि इनकी तुलना में लिंगायत के 100 सीटों पर विधायक हैं। मुझे नहीं लगता कि कोई पार्टी या सरकार हमारी सीमित राजनीतिक प्रभावों पर विचार कर हमारी मांगों को ध्यान में रखेगी। हम उम्मीद कर रहे हैं कि हमारे मुद्दे, संस्कृति और घटती आबादी को समझते हुए कोई सरकार या पार्टी एक दिन हमारे पक्ष में आएगी।

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