विरोध की आंधी में झुलसते ‘डॉक्टर’

डॉ. प्रांजल अग्रवाल ( असिस्टेंट एडिटर-आई सी एन ग्रुप )

देश भर में चारों तरफ विरोध की आंधी चल रही है, विरोध – अपने हक के लिए , विरोध – अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए, विरोध – अपनी अच्छी शिक्षा के लिए, विरोध – सरकारी नौकरी के लिए, कहीं कहीं विरोध – बैंकों और कॉलेजों में होने वाले अत्याचारों के लिए, आदि-आदि | नोट बंदी हो या जीएसटी, सीलिंग हो या ब्याज दरों में कमी, सरकारों के तानाशाह रवैय्ये से सारी जनता परेशान है, फिर भी सरकारें सब के विकास का ढोल पीट रहीं हैं |

किसान अपने पिछड़ते जीवन और बड़ते कर्जों से परेशान है, छात्र बड़ते मुकाबले और घटती सीटों से परेशान है, युवा बड़ते प्रतिस्पर्धा और घटती सरकारी नौकरियों से परेशान हैं, व्यापारी बड़ते टैक्स और घटते व्यापार से परेशान है, टीचर बड़ते कोर्स और चुनावों के ड्यूटी के चलते घटते घंटों से परेशान हैं, माँ-बाप बड़ते खर्चों और बिगड़ते बच्चों से परेशान हैं, वृद्धजन बड़ते घुटनों के दर्द और घटते पारिवारिक मेल-मिलाप से परेशान हैं, पत्रकार बड़ते चैनेल और घटती विश्वसनीयता से परेशान हैं, और तो और नेता भी घटते विपक्ष को लेकर परेशान हैं, जहाँ देखों तहाँ, परेशानी का दौर है, पर इसी कड़ी में एक वर्ग ऐसा है, जिसके पास सब तब पहुँचते हैं जब अपने स्वास्थ्य से परेशान होते हैं, और वो वर्ग है ‘डॉक्टर्स’ का |

यदि यहाँ तक के लेख में आपको लगा की सब परेशान हैं, पर डॉक्टर्स नहीं, तो आप शायद गलत हो सकते हैं | परेशानी के इस दौर से वो भी अछूते नहीं हैं | क्लिनिकल एस्टाब्लिश्मेंट एक्ट, एन.एम.सी. यानी नेशनल मेडिकल कौंसिल बिल और नेक्स्ट यानी नेशनल एग्जिट टेस्ट नाम की कुछ परेशानियों के बादल इस वर्ग के ऊपर भी मंडराने के लिए छोड़े गए हैं |

चिकित्सक समुदाय दिन-रात एक कर रोगियों को उनके रोगों से निजात दिलाता आ रहा है, पर पिछले कुछ समय से राजनीतिक लाभों और मीडिया को टी.आर.पी. में लगातार मिलती बढ़त का खामियाजा डॉक्टर्स को झेलना पढ़ा है, क्यूंकि डॉक्टर और मरीज के रिश्ते में अविश्वास की खाई लगातार गहराती जा रही है | राजनीतिकों और न्यायपालिका के बिना सोचे-समझे हस्तक्षेप के कारण, इस समस्या की जटिलता बडती जा रही है |

इसी समस्या को समझते हुए, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने जनविरोधी कानूनों में आवश्यक बदलाव की मांग के साथ, साईकल यात्रा प्रारम्भ की है | देश भर के चिकित्सक अपने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रवि वानखेड़कर की अगुवाई में, साईकल पर उतर आयें हैं, ताकि जनता को आभास हो सके, की ये विरोध चिकित्सकों के लिए नहीं, बल्कि जन-हित में हो रहा है | जन-हित में इसलिए क्यूंकि ऐसे बिल बनाने वालों को भी अंदाजा नहीं है, की यदि ये सभी बिल पूरी तरह से लागू कर दिए गए, तो देश में इमरजेंसी जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है |

सरकारी तन्त्र, 100 में से केवल 20 फीसदी मरीजों को ही इलाज उपलब्ध कराने के सक्षम है, बाकी के बचे 80 फीसदी मरीजों को अपने खर्च पर स्वास्थ्य सेवाएं निजी अस्पतालों से मिलती हैं, जो की क्लिनिकल इस्ताब्लिश्मेंट एक्ट एवं एन.एम.सी. जैसे क़ानून लागू हो जाने के बाद, आम आदमी की पहुँच से बाहर हो चलेंगी | चिकित्सा छेत्र पर इतने मानकों और कानूनों की मार डाल डी जाएगी, जिसके बाद कोई चिकित्सक जल्दी अस्पताल खोलने की हिम्मत ही नहीं कर सकेगा, जब ऐसा होगा तो कॉर्पोरेट जगत की चिकित्सा छेत्र में मांग बड़ जायेगी, बड़े और मेहेंगे कॉर्पोरेट अस्पतालों का निर्माण और संचालन देश के पूंजी-पतियों द्वारा किया जायेगा और गरीब लाचार आम आदमी, और गरीब…और लाचार होता जाएगा |

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