नई दिल्ली। चीन से किसी भी टकराव की स्थिति में सेना अब ज्यादा तेजी से सीमा पर पहुंच सकेगी। पूर्वी सीमा पर सेना के ट्रेनों की स्पीड बढ़ाने के लिए रेलवे ने ट्रायल करने का फैसला किया है। रेलवे ने अब रक्षा जरूरतों को प्राथमिकता देते हुए चीन से जुड़े सीमावर्ती इलाकों में अपना इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने को प्राथमिकता देने का फैसला किया है। खास बात यह है कि रेलवे इसमें अपनी ओर से भी रकम खर्च करने के लिए तैयार है।
सैनिकों को सीमा तक पहुंचाने में रेलवे की अहम भूमिका होती है, खास तौर से युद्धकाल में। 2001 में संसद पर आतंकवादी हमले के बाद ऑपरेशन पराक्रम के तहत पश्चिमी सीमा पर सैनिकों को जुटाने की जो कवायद हुई थी, उसमें ट्रेनों की उपलब्धता चिंता का विषय थी। ऑपरेशन पराक्रम के बाद सेना और रेलवे को तालमेल दिखाने का वैसा मौका नहीं मिला है। हाल में कमर्शल हितों की ओर रेलवे का झुकाव बढ़ते देखा गया। इससे सेना में टॉप लेवल पर यह चिंता रही कि सैन्य मामलों की प्राथमिकता कहीं कम न हो जाए। लेकिन रेलवे ने सेना को रिटर्न गिफ्ट देने का फैसला किया है। मुंबई में हाल में रेलवे फुटओवरब्रिज हादसे के बाद सेना ने रेलवे के लिए तीन फुटओवरब्रिज बनाए थे।
सूत्रों ने बताया है कि आर्मी के कामकाज और इसकी इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरतों को समझने के लिए रेलवे ने अपने अफसरों को सीमावर्ती इलाकों में भी भेजने का फैसला किया है। साथ ही इन्फ्रास्ट्रक्चर का जो काम कम खर्च में निपट जाता है, उसे रेलवे ने अपने बजट से खर्च करने का फैसला किया है। रेलवे की साइडिंग पर रैंप का निर्माण अहम है, जिसके जरिये टैंकों, तोपों और गोलाबारूद आदि को वैगनों में लादा जाता है। जिन पांच जगहों पर प्राथमिकता से रैंप बनाने का फैसला हुआ है, उनमें चीन से सटे अरुणाचल प्रदेश के शिलपत्थर, मरकोंग सेलका, भालुकपोंग जैसे इलाके भी हैं। इन जगहों पर फिलहाल अस्थायी रैंप से भी काम चलाया जाता है।
यह तय किया गया है कि ट्रेनिंग आदि के लिए सैनिकों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने वाली मिलिट्री स्पेशल ट्रेनों की मॉनिटरिंग के लिए ऑनलाइन सिस्टम तैयार किया जाएगा। आर्मी के पास अपने 5000 वैगन हैं, जो रेलवे के अधीन चलते हैं। सैनिकों के लिए चलने वाली करीब 800 ट्रेनों के लिए सेना रेलवे को हर साल 2000 करोड़ रुपये देती है। इन ट्रेनों की मूवमेंट का रीयल टाइम लोकेशन भी सेना को ऑनलाइन मिल जाएगी। शांति काल में भी सैनिकों का यात्रा जरूरतों के लिए कम समय में भी सीट उपलब्ध कराई जा सके, इसके लिए कोटा बढ़ाने में भी रेलवे ने दिलचस्पी दिखाई है।