सब कुछ याद रखा।

तरुण प्रकाश, सीनियर एसोसिएट एडिटर-ICN  
आज मैंने सोच रखा था, कुछ नहीं भूलूगां आज – कुछ भी नहीं। अपने रूमाल में गांठ बांधकर रखी थी ताकि जितने बार जेब में मेरा हाथ जाये, रूमाल की गांठ मुझे मेरे संकल्प की याद दिलाती रहे। यह विधि बचपन में मुझे मेरी दादी ने बताई थी। मैंने सोच रखा था, शारीरिक- मानसिक -तकनीकी जितनी भी विधियाँ संभव है- मैं सबका सहारा लूगां लेकिन कुछ भी नहीं भूलूगां आज।
कल रात में ही छोटी बेटी ने कह रखा था कि सवेरे उसके स्कूल में पैरेंट्स टीचर्स मीटिंग है और मुझे सवेरे आठ बजे उसके क्लास पहुँचना है। सवेरे जल्दी जल्दी नहा धोकर तैयार हो गया। पत्नी ने फटाफट नाश्ता सर्व किया और टिफिन लेकर अपनी कार से मेैं बेटी के स्कूल की ओर लपका। रास्ते भर वे सारे काम मन ही मन रटता जा रहा था जो नाश्ता करते समय पत्नी मुझे याद कराती जा रही थी और वे सारे कार्य भी जो मेरे व्यक्तिगत अथवा प्रोफेशनल थे। इन सब कार्यों के लिये मैं समय और दिशा की रूप रेखा भी बना रहा था कि किस समय किस ओर निकल कर कौन सा कार्य करना है।

 

स्कूल की मीटिंग में जल्दी से क्लास टीचर से आवश्यक अपडेट लेकर आफिस की ओर भागा। जेब में हाथ गया तो रूमाल की गांठ का स्पर्श हुआ और तुरंत पत्नी का निर्देश याद आया कि चाहे आफिस घूमकर दूर के रास्ते से पहुँचूं किन्तु उनकी छोटी बहन को पूजा का प्रसाद अवश्य पहुँचना है सो एक लम्बा चक्कर लगाकर अपनी साली साहिबा के घर पहुंचा और दे दनादन कालबेल बजानी शुरू कर दी। यह तो अच्छा हुआ कि शीघ्र ही दरवाजा खुल गया और मैं प्रसाद की पोटली साली साहिबा को थमाकर फिर पीछे लपका। वे बेचारी ‘जीजा जी, चाय तो पीते जाइये’ कहती ही रह गयीं और मैं ‘ये जा-वो जा’ की स्टाइल में  कार स्टार्ट करके निकल गया। आज मैं कुछ भी भूलना नहीं चाहता था।

आफिस खुल गया था।  मेरा हाथ जेब में था और मेरे रूमाल की गांठ मुझे याद दिला रही थी कि आज मुझे अपनी रिसेप्शनिस्ट को उसकी आवश्यकता के कारण एक माह की सेलरी एडवांस में देनी थी। मेरी रिसेप्शनिस्ट ने मेरे पहुँचते ही सवाल दागा, ” सर!….” मैंने तुरंत अपनी जेब से चेक निकाला जो मैं घर से ही बना कर लाया था और उसे पकड़ा दिया। हाथ से फिर रूमाल की गांठ टकराई। फिर कुछ याद आ गया तो अपने टाइपिस्ट्स को बुलाया और दिन के ढेर सारे असाइनमेंट्स उन्हें आवश्यक निर्देश देकर थमा दिये।मैंने  उन्हें बता दिया था कि कब-कब किस किस क्लाइंट का टाईम शिड्यूल्ड है। हाथ में फिर रूमाल की गांठ आयी तो तुरंत याद आया कि अपने मित्र डॉ संजय जो अस्वस्थ चल रहे थे, से फोन पर बात करके उनकी कुशल क्षेम पूछनी है तो तुरंत उन्हें फोन मिलाया और उनके स्वास्थ्य संबंधी समाचार प्राप्त किये ओर आश्वस्त हुआ।
हाथ से फिर रूमाल की गांठ टकराई तो अपने सेक्रेटरी से आज की मीटिंग्स से बारे में बात की और दोपहर बारह बजे से ढाई बजे तक आउट डोर अपाइंटमेंट्स निपटाये। लौटते समय रूमाल की गांठ ने यह भी याद दिलाया कि कैसरबाग में डॉ सिंधी की होम्योपैथिक फार्मेसी से पिता जी की दवा खरीदनी हेै और लालबाग़ से माताजी के कान की मशीन रिपेयरिंग की दुकान से उठानी है। रूमाल की गांठ ने यह भी याद दिलाया कि बड़ी बेटी के कोर्स की किताब जो स्थानीय राजाजीपुरम की दुकानों में नहीं मिल रही है, उसे हज़रतगंज के यूनीवर्सल बुक्स शाप से खरीदना है।
सांय चार से छह बजे तक इनडोर अपाइंटमेंट्स निपटाये जिनकी फाईल्स मेरे स्टाफ ने दिन में तैयार कर ली थीं।
फिर जेब में हाथ गया तो याद आया कि अपने पब्लिशर मित्र अमरेश से अपनी नयी पुस्तक के विषय में बात करनी है कि वह कहाँ तक तैयार हो सकी है।
रूमाल की गांठ ने फिर याद दिलाया कि शाम सात बजे से मेरे साहित्यकार मित्र प्रोफेसर सत्येन्द्र कुमार सिंह के नये कविता संग्रह ‘नमक घावानुसार’ का लोकार्पण हिन्दी संस्थान के यशपाल आडीटोरियम में होना है और वहाँ तो पहुँचना ही पहुँचना ही है क्योंकि पिछली बार उनके संग्रह ‘टूटा ही सही, एक रिश्ता तो है’ पर परिचर्चा के कार्यक्रम की तिथि भूल जाने के कारण पहुँच नहीं सका था जिसपर वे नाराज़ तो कम हुये थे लेकिन मुझे आत्मग्लानि अधिक हुई थी।
उनके नवीनतम संग्रह के शानदार कार्यक्रम में जब अनायास ही जेब में हाथ गया तो रूमाल की गांठ ने पुनः याद दिलाया कि पिछले सप्ताह बड़े भाईसाहब जिस टेलर से अपने कपड़े सिलवाने को दे गये थे, उनकी डिलिवरी मुझे आज ही लेनी है। टेलर की दुकान पर रूमाल की गांठ ने पुनः याद दिलाया कि सवेरे अपने वरिष्ठ मित्र संजय अग्रवाल जी की मिस काल देखी थी और उनसे बाद में बात करने का कार्यक्रम बनाया था इसलिये टेलर द्वारा  कपड़े पैक होते होते फोन मिला कर उनसे बात भी कर ली। मुझे रूमाल की गांठ ने यह भी याद दिला दिया कि लौटते समय न केवल घर के लिये माल से हरी सब्जियां व थोड़े बहुत मसाले व देशी घी खरीदना है बल्कि अपने बिल्डर मित्र शारिक से भी मिलना है ताकि अपने  ज्वाइंट कामर्शियल प्रोजेक्ट’ के संबंध में अगले हफ्ते के कार्क्रमों की रूपरेखा को समझा जा सके।
अंतिम रूप से जब मैं रात को वापस घर लौट रहा था तो रूमाल की गांठ ने मुझे फिर बताया कि कानपुर से एक रिश्तेदार के बेटी की शादी का मेरे निमंत्रण पत्र के साथ आया हुआ मामा जी का निमंत्रण पत्र मुझे उनके घर भी पहुँचाना है।
आज घर पहुँच कर मैं इस बात पर बहुत खुश था कि आज मैंने सब कुछ याद रखा और वह भी अपने रूमाल में बंधी गांठ के कारण। मैंने धन्यवाद देने के लिये रूमाल निकाला तो देखा कि रूमाल के दूसरे छोर में मेरी उस दवा की टेबलेट्स अभी भी बंधी थीं जो मेरी अस्वस्थता के कारण मुझे दिन में दो बार खानी थी। मुझे यह भी याद आया कि आज तो मैंने अपने आँखों के डाक्टर से अपाइंटमेंट ले रखा था और बहुत तेज भूख लगने के कारण पर जब गौर किया तो पाया कि आज भी मेरा टिफिन बाक्स बिना खुले घर वापस लौट आया था।
मैंने सबकुछ याद रखा था आज लेकिन आज भी मैं खुद को फिर से भूल गया था।

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