उर्दू शायरी में ‘चेहरा’ : 2

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

कितना ज़रूरी होता है हर एक के लिये एक अदद चेहरा यानी सूरत यानी शक्ल यानी रुख़। कभी- कभी सोचता हूँ कि अगर यह दुनिया ‘बेचेहरा’ होती तो क्या होता। इस बेचेहरा दुनिया में कौन किसको पहचानता और कौन किसको याद रखता।

भला बिना पहचान की वह दुनिया कैसी होती। कितनी दुर्घटनाएं होतीं, कितने हादसे होते। सवेरे कोई किसी के साथ होता तो शाम को किसी के साथ। सिलीब्रटीज़ के बड़े-बड़े पोस्टर्स में आखिर क्या दिखाया जाता? पुलिस भला किसकी रपट लिखती और किसको पकड़ती? रिंद किसकी आँखों के मयखाने में डुबकियाँ लगाते और शायर किसके लबों में ‘दो पंखुड़ी गुलाब की’ ढूंढते? शायद हम एक दूसरे की गंध से एक दूसरे को पहचानते लेकिन जहाँ लोग चेहरे बदलने में उस्ताद हो गये हैं वहाँ भला गंध की क्या बिसात। दिन में चमेली की खुश्बू लुटाने वाले रात में गुलाब में सराबोर होने से क्या भला गुरेज़ करते? हमारी भिन्नताओं और हमारे अलग-अलग व्यक्तित्व की सबसे बड़ी पहचान हमारा चेहरा ही है। हमारा चेहरा ही मनुष्य व जानवरों के बीच का सबसे बड़ा अंतर भी है। हर मनुष्य का अपना एक चेहरा है जो उसका नितांत अपना है जबकि हर जानवर का चेहरा लगभग एक जैसा है।

चेहरे में भी तमाम तिलिस्म छिपे हैं। किसी के पास चेहरों की भीड़ है तो कोई चेहरा भीड़ में भी अकेला है। कोई चेहरा किताब जैसा पढ़ा जा सकता है तो कोई ऐसा भी है जिसके भावों को समझने के लिये हज़ारों किताबों को पढ़ना पड़ता है। कोई चेहरा आपको अपने अंदर तक झाँकने की अनुमति देता है तो किसी का चेहरा दर्पण जैसा है जो सिर्फ़ आपका ही अक़्स आपके सामने पेश करता है।

चेहरों और सूरतों की यह दुनिया विचित्र है। कोई चेहरा सपनों में भी आकर डराता है तो किसी एक दूसरे चेहरे की एक झलक के लिये कोई ताकयामत इंतज़ार करने को तैयार है। इन्हीं चेहरों पर परी देश का सम्मोहक जादू तैरता है और इन्हीं पर किसी तांत्रिक का मरणसिद्ध तंत्र भी।

दुनिया की हर कहानी में कोई न कोई हसीन चेहरा है, कोई न कोई भयानक चेहरा है, कोई न कोई मुस्कराता हुआ चेहरा है और कोई न कोई रोता हुआ चेहरा है। सच है, चेहरों के बगैर कहानियाँ नहीं होतीं, चेहरों के बगैर सपने नहीं होते, चेहरों के बगैर ज़िंदगी नहीं होती और हाँ, ….. चेहरों के बिना शायरी भी नहीं होती। दुनिया का कोई भी साहित्य हो, वह चेहरों से भरपूर है। शेक्सपियर ने तो यहाँ तक कहा है कि ‘फ़ेस इज़ दि इंडेक्स ऑफ माइंड’ और इसी तरह उर्दू शायरी में शायर के तसव्वुर में जो चीज़ सबसे ज़्यादा ताजगी से भरी और सबसे चमकदार है वह है महबूब का चेहरा। आधुनिक शायरी में कहीं-कहीं यह चेहरा आम आदमी का चेहरा है, मासूमियत का चेहरा है, धूर्तता का चेहरा है, लालच का चेहरा है, मक्कारी का चेहरा है, क्रूरता का चेहरा है और बेबसी का चेहरा है।

उर्दू के हर छोटे-बड़े शायर ने अपने-अपने फ़न से इन चेहरों की पड़ताल की है और हर बार किसी चेहरे या सूरत के ज़रिये उन्होंने ख़यालों के बेमिसाल मंज़र सृजित किये हैं। कितना मज़ेदार और दिलचस्प होगा इन बेहतरीन शायरों की शायरी में तमाम चेहरों से बातें करना और उन्हें परखना। चलिये, इस बार हम-आप उर्दू शायरी के इस नये सफ़र में ढेर सारे चेहरों से मुलाकात करते है, ढेर सारी सूरतों को निहारते हैं और उन्हें दिल में बसाने की कोशिश करते हैं।

और हाँ, एक और बात को समझना बहुत ज़रूरी है कि जब ढेर सारे शायर हों तो उन्हें एक क्रम तो देना ही पड़ता है। किसी शायर की वरिष्ठता अथवा श्रेष्ठता तय करने की न तो मुझमें योग्यता ही है और न ही कभी मैंने इसका प्रयास ही किया है। मुझे तो सारे शायर दिल से पसंद हैं और मेरे लिये गुलाब और रातरानी, दोनों की खुश्बू दिल को सुकूं पहुँचाने वाली हैं। मैंने मात्र अपनी व पाठकों की सुविधा की दृष्टि से शायरों का क्रम उनकी जन्मतिथि के आधार पर रखने का प्रयास किया है। ये सूचनायें भी मैंने उपलब्ध पुस्तकों व सूचना के अन्य स्रोतों जैसे इंटरनेट पर उपलब्ध विवरण से प्राप्त की हैं इसलिये यदि सूचनाओं का कोई विवरण अथवा उसका कोई अंश गलत है तो मैं उसके लिये आपसे प्रारंभ में ही क्षमाप्रार्थी हूँ और आपसे निवेदन है कि यदि आपके पास प्रमाणिक सत्य सूचना है तो कृपया मुझसे अवश्य शेयर करें ताकि ऐसी त्रुटि का सुधार किया जा सके। कुछ पुराने शायरों व अनेक नये शायरों की जन्मतिथि उपलब्ध न होने के कारण उन्हें क्रम में समुचित स्थान मैंने स्वयं ही दिया है जिसका आधार मेरी अपनी सुविधा मात्र है। सत्यता यह है कि मेरी स्पष्ट धारणा हेै कि प्रत्येक शायर व फ़नकार स्वयं में अनूठा है और उस जैसा कोई दूसरा हो ही नहीं सकता।

तो चलिए “उर्दू शायरी में चेहरा” के इस खूबसूरत सफ़र को आगे बढ़ाते हैं।

जोश लखनवी के विषय में भी किताबें, रिसाले और मालूमात के दूसरे श्रोत प्रायः खामोश ही रहते हैं। बस महज़ इतनी सी जानकारी कि एक शायर ‘जोश लखनवी’ था जिसने एक दिन बड़ी मस्ती में एक ऐसा अशआर कह दिया कि महफ़िल में जब भी चेहरे, सूरत, शक्ल या रुख़ की बात होगी तो यह अशआर अपने आप अपनी जगह बना लेगा। ज़रा आप भी देखिये –

“अब्र में चाँद गर न देखा हो,
रुख़ पे ज़ुल्फ़ों को डाल कर देखो।”

मेराजुद्दीन खुसरो काकोरवी लगभग एक शताब्दी पूर्व के शायर हैं। वे उस्ताद शायर जलील मानिकपुरी व शायरी के लखनऊ स्कूल के शायर अमीर मीनाई के शागिर्द थे। वे चेहरे को कुछ अलग ही अंदाज़ में पेश  करते हैं –

“उसने कहा शाम-ए-बला, मैंने कहा गेसू तेरे,
उसने कहा सुबह-ए-सफ़ा, मैंने कहा चेहरा तेरा।”

जाँ निसार अख़्तर का जन्म 18 फरवरी, 1914 को ग्वालियर में हुआ। वे मशहूर शायर व फ़िल्मी गीतकार थे।  ‘तनहा सफ़र की रात’ ‘घर आँगन’, ‘पिछले पहर’ आदि उनकी मशहूर किताबें हैं। ‘जाँनिसार अख़्तर : एक जवान मौत’ उनपर संकलित पुस्तक है जिसका संपादन निदा फ़ाज़ली ने किया है। 19 अगस्त, 1976 को उनकी मृत्यु हो गयी। चेहरे पर उनके कुछ मशहूर अशआर देखिये –

“उनसे पूछो कभी चेहरे भी पढ़े हैं तुमने,
जो किताबों की किया करते हैं बाते अक्सर।

और एक शेर यह भी –

“हमारे शहर में बेचेहरा लोग बसते हैं,
कभी कभी कोई चेहरा दिखाई देता है।”

क़ैफ़ भोपाली एक प्रसिद्ध शायर हैं। भोपाल में 20  फरवरी, 1917 में जन्मे इस शायर की मृत्यु 24 जुलाई, 1991 में हुई। वे पाक़ीज़ा फ़िल्म के गीत ‘चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो’ के गीतकार के रूप में भी चर्चा में रहे। चेहरे पर उनका यह खूबसूरत शेर पेश है –

“तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है।
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है॥”

सईद अख़्तर का जन्म 27 जनवरी, 1927 को अविभाजित भारत के बाराबंकी  में हुआ । पाकिस्तान की स्थापना के बाद वे कराची, पाकिस्तान  चले गये जहाँ 01 सितंबर, 1983 को उनकी मृत्यु हुई। वे अपने एंटी ग़ज़ल रुझान व आधुनिकता विरोधी विचारों के लिये खासे चर्चित रहे। ‘मज़ामीन-ए-सलीम’ व ‘चराग़-ए-नीम शब’ उनकी पुस्तकें हैं। कई बार एक चेहरा एक भीड़ भी होता है या यूँ कहें कि भीड़ का भी एक चेहरा होता है। ज़रा यह शानदार शेर तो देखिये –

“उस एक चेहरे में आबाद थे कई चेहरे,
उस एक शख़्स में किस किस को देखता था मैं।”

मुनीर नियाज़ी का जन्म 9 अप्रैल, 1928 को होशियारपुर में हुआ और उनका निधन 26 दिसंबर, 2006 को लाहौर में हुआ। वे एक मशहूर शायर थे और उन्होंने फ़िल्मों के लिये भी गीत लिखे। ‘आग़ाज़-ए-ज़मींस्तान में दुबारा’, ‘छह रंगीन दरवाज़े’, ‘दुश्मनों के दरम्यिान शाम’, ‘एक लम्हा तेज़ सफ़र का’, ‘जंगल में धनक’ और ‘पहली बात ही आख़िरी थी’ आदि उनकी मशहूर किताबें हैं। वक़्त आदमी का चेहरा बदल देता है। मुनीर नियाज़ी का यह शेर तो यही बताता है –

“मैं तो ‘मुनीर’ आईने में ख़ुद को तक कर हैरान हुआ,
ये चेहरा कुछ और तरह था पहले किसी ज़माने में।”

शबनम रूमानी का जन्म वर्ष 1928 में व मृत्यु वर्ष 2009 में हुई। वे पाकिस्तान के बड़े शायर थे। ‘दूसरा हिमाला’, ‘तोहमत’, ‘हायड पार्क’, ‘इत्र-ए-खयाल’ व ‘जज़ीरा’ उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। चेहरे पर उनका यह खूबसूरत शेर देखिये –

“मेरा चेहरा भी अब नहीं मेरा,
अब किन आँखों से मैं तुझे देखूँ।”

मुबारक अली बेग यानी ‘दिल अयूबी’ का जन्म 13 सितंबर, 1929 में हुआ। वे टोंक के प्रसिद्ध शायर हैं और अपने नातिया कलाम के लिये भी जाने जाते हैं। नज़र-ए-रिसालात’ व ‘रहगुज़र’ उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। कभी कभी कोई चेहरा इस तरह से ख़यालों में जगह बना लेता है कि उस चेहरे के सिवा सारी दुनिया बेमानी हो जाती है –

“लम्हा लम्हा मुझे वीरान किए देता है,
बस गया मेरे तसव्वुर में ये चेहरा किस का।”

अख़्तर सईद खां का जन्म 12 अक्टूबर 1930 को भोपाल में हुआ था। वे मूलतः अफ़ग़ानी थे। उनके दादा अहमद सईद खां रियासत भोपाल के जागीरदारों में शामिल थे और शायरों व अदीबों के क़द्रदान थे और इस माहौल का प्रभाव उनपर भी पड़ा। 1946 में उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एल.एल.बी. की डिग्री प्राप्त की और वकालत का पेशा अपनाया। उनकी शायरी पारंपरिक और प्रगतिवादी विचारधारा के सामंजस्य का एक उत्कृष्ट नमूना है। उनकी मृत्यु  10 सितंबर, 2006 को हुई। ‘निगाह’, ‘तर्ज़े दवाम’ एवं ‘सोच के नाम सफ़र’ उनके काव्य संग्रह हैं। चेहरे पर उनका यह खूबसूरत शेर बहुत मशहूर है –

“आ कि मैं देख लूँ खोया हुआ चेहरा अपना,
मुझ से छुप कर मिरी तस्वीर बनाने वाले।”

जौन एलिया का वास्तविक नाम सैयद हुसैन जौन असग़र था और उनका जन्म 14 दिसंबर 1931 अमरोहा (उत्तर प्रदेश) में हुआ और देश के विभाजन के लगभग दस वर्ष बाद उन्हें कराची, पाकिस्तान जाना पड़ा। वहाँ उन्होंने एक उर्दू पत्रिका इंशा निकाली। ‘यानी’, ‘गुमान’, ‘लेकिन’, ‘गोया’, और ‘शायद’ उनकी प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। जौन एलिया अपने अपारंपरिक लहजे के कारण सदैव सुर्ख़ियों में रहे और उन्होंने उर्दू शायरी में अपना एक नया मुक़ाम बनाया और शायरी को भी एक नयी सोच और दिशा प्रदान की। उनकी मृत्यु  8 नवंबर 2002 को कराची में हुई। जौन एलिया सिर्फ़ एक शायर ही नहीं थे बल्कि उन्होंने साबित किया कि बदलते वक़्त के साथ शायरी के अंदाज़ कैसे बदलते हैं। चेहरे पर उनका यह मशहूर शेर अहसास और मानवीय संवेदनाओं की कमतरी की ओर इशारा करता है –

“क्या सितम है कि अब तिरी सूरत,
ग़ौर करने पे याद आती है।”

अहमद मुश्ताक़ का जन्म वर्ष 1933 में हुआ। वे पाकिस्तान के सबसे विख्यात और प्रतिष्ठित आधुनिक शायरों में से एक हैं और अपनी नव-क्लासिकी लय के लिए प्रसिद्ध हैं। वर्तमान में वे संयुक्त राज्य अमेरिका में रहते हैं। चेहरे पर उनके कुछ खूबसूरत पेश हैं –

“अब उस की शक्ल भी मुश्किल से याद आती है,
वो जिस के नाम से होते न थे जुदा मिरे लब।”

और यह शेर –

“भूल गई वो शक्ल भी आख़िर,
कब तक याद कोई रहता है।”

और एक शेर यह भी –

“इक रात चाँदनी मिरे बिस्तर पे आई थी,
मैं ने तराश कर तिरा चेहरा बना दिया।”

अतहर नफ़ीस का जन्म वर्ष 1933 में अविभाजित भारत में हुआ एवं तत्पश्चात वे पाकिस्तान चले गये जहाँ वर्ष 1980 में कराची में उनका इंतक़ाल हो गया। वे नई ग़ज़ल के महत्वपूर्ण शायर हैं और अपनी ग़ज़ल ‘वो इश्क़ जो हम से छूट गया’ के लिए भी प्रसिद्ध जिसे कई गायकों ने आवाज़ दी है। उनका असली नाम कुंवर अतहर अली खान था। ख़्वाबों में भी महबूब का चेहरे की ही तलब है। ख़्वाब में चेहरा और चेहरे से फिर नये ख़्वाब – क्या बात है जनाब अतहर नफीस साहब –

“ख़्वाबों के उफ़ुक़ पर तिरा चेहरा हो हमेशा
और मैं उसी चेहरे से नए ख़्वाब सजाऊँ।”

01 अक्टूबर, 1934 को शकेब जलाली का जन्म अलीगढ़ में हुआ था। मात्र बत्तीस वर्ष की छोटी आयु में ही 12 नवंबर, 1966 को उनका इंतक़ाल सरगोधा, पाकिस्तान में हो गया लेकिन इतने कम अरसे में भी जो वे उर्दू शायरी को दे गये, वह वास्तव में कमाल का है। ‘रोशनी ऐ रोशनी’ उनका चर्चित दीवान है। देखिये तो, क्या खूब फ़र्माया है चेहरे पर –

“कोई भूला हुआ चेहरा नज़र आए शायद,
आईना ग़ौर से तू ने कभी देखा ही नहीं।”

और यह शेर भी –

“रहता था सामने तिरा चेहरा खुला हुआ,
पढ़ता था मैं किताब यही हर क्लास में।”

क्रमशः

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