बाइबल की भविष्यवाणी सच होती हुई : दो-अरब मुसलमान अमेरीकी तानाशाही के खिलाफ चीन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने को लामबंद होते हुये!

एज़ाज़ क़मर, डिप्टी एडिटर-ICN 
And the number of the army of the horsemen were two hundred thousand thousand (20,00,00,000) : and I heard the number of them” (Revelation 9:16)
नई दिल्ली। बाइबल का लगभग एक तिहाई हिस्सा भविष्यवाणियों पर आधारित है जिसमे अंतिम समय मे होने वाले अंतिम युद्ध अर्थात जंग-ए-अरमजदून (Armageddon) का विस्तृत संकेत दिया गया है,इसलिये इसाई और मुसलमान बड़ी बेसब्री से हज़रत ईसा की वापसी और यहूदियो के नेता दज्जाल (एंटी-क्राइस्ट) के बीच मे होने वाले संग्राम (लड़ाई) का इंतेज़ार कर रहे है, क्योकि हदीस के एक विशेष अध्याय मे अंतिम समय मे घटने वाली घटनाओ का विस्तृत ज्ञान दिया गया है।
इसाईयो का पक्ष पड़ा सीमित है क्योकि उनके अनुसार इस युद्ध के दौरान हज़रत ईसा इसाईयो को अपने परो (Wings) पर बिठाकर आसमान के ऊपर ले जायेगे और वही से इस युद्ध के दर्शन करवायेगे,जबकि मुसलमानो का पक्ष विस्तृत है क्योकि हज़रत ईसा उनका नेतृत्व करते हुये यहूदियो के नेता दज्जाल को जंग मे हराकर पूरे विश्व मे इस्लामिक राष्ट्र की स्थापना करेगे,फिर हज़रत ईसा चालीस (40) साल तक पूरे विश्व मे शासन करेगे और उनके देहांत के बाद उन्हे पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब (ﷺ) के बराबर दफन किया जायेगा जिसकी व्यवस्था चौदह सौ (1400) साल पहले से ही कर दी गई है इसलिये पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब (ﷺ) के मज़ार (समाधी) के सीधे हाथ की तरफ उनको दफन करने के लिये स्थान छोड़ दिया गया है।
दर्जन-भर से अधिक हदीसो के अलग-अलग विश्लेषण का सार यह है अर्थात यह अंदाज़ा लगाया जाता है कि “ग्रेटर इज़रायल” राज्य की स्थापना होगी जिसकी सीमाये मदीना तक पहुंच जायेगी अर्थात अरब देशो (सीरिया, जॉर्डन, लबनान, इराक, मिस्र, लीबिया, सूडान, सऊदी अरब तथा दूसरे खाड़ी के देश) और तुर्की के बड़े हिस्से पर इज़रायल का कब्ज़ा हो जायेगा,क्योकि मुस्लिम सेना आंशिक रूप से परास्त हो चुकी होगी और अधिकतर खाड़ी के अरब देश परमाणु हमलो से तबाह हो चुके होगे जिनमे मुसलमानो के पवित्र शहर भी शामिल हो सकते है,क्योकि पैगंबर साहब (ﷺ) ने कहा है; कि “बेतुल-मुक़द्दस (यरूशलम) की आबादी मदीना की वीरानी होगी” और अपने कबीले बनु-हाशिम के बारे मे बहुत ही हृदय विदारक विवरण देते हुये बताया है कि “क़ुरैश की एक जूती पड़ी होगी” अर्थात जिसे देखकर लोग चर्चा करेगे कि कभी कुरैश भी यहां रहते थे।
दज्जाल (एंटी-क्राइस्ट) के आतंक से त्रस्त जनता इमाम मेंहदी को अपना नेता (खलीफा) घोषित करेगी और वह संघर्ष शुरू करेगे,फिर सीरिया मे एक मस्जिद की छत पर दो फरिश्तो के कंधे पर हाथ रखे हुये हज़रत ईसा उतरेगे और उन्होने हाजियो जैसे सफेद कपड़े पहने होगे तथा उनके बालो से मोतियो की तरह पानी टपकता होगा फिर वह इमाम मेंहदी से नमाज़ का नेतृत्व करवायेगे और नमाज़ के बाद युद्ध के लिये कूच करेगे जहां (युद्ध क्षेत्र) पर वह दज्जाल को मारकर संसार मे शांति की स्थापना करेगे।
बाइबल और हदीस की भविष्यवाणियों से भविष्य की एक साफ तस्वीर बनाना अर्थात भविष्य मे घटने वाली घटनाओ का श्रृंखलाबद्ध वर्णन करना संभव नही हो पाया है, इसलिये हमे ऐसे भविष्यवक्ता की आवश्यकता होती है  जिस की भविष्यवाणियां सटीक (accurate) तथा स्पष्ट हो अर्थात आसानी से समझ मे आ जाने वाली हो और हज़रत शाह नेमतुल्लाह की भविष्यवाणियां हमारी इस ज़रूरत को पूरा करती है,क्योकि उन्होने आठ शताब्दियो पूर्व इतनी सरल और सहज भाव मे भविष्यवाणियां की थी जिसे एक साधारण सा छात्र भी समझ सकता है और आज तक एक भी भविष्यवाणी गलत साबित नही हुई अर्थात उसका क्रम/समय भी आगे पीछे नही हुआ।
हज़रत शाह नेमतुल्लाह साहब ने तैमूर लंग के बारे मे भविष्यवाणी करते हुये कहा था कि इसकी संताने तीन सौ (300) वर्षो तक भारतीय उपमहाद्वीप और ईरान मे शासन करेगी फिर उन्होने मेहमान गोरी कौम (यूरोपियन) के द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप को हड़पने के षड्यंत्र का खुलासा किया था और महात्मा गांधी द्वारा चलाये जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम का सजीव चित्रण करते हुये भारत के विभाजन की भविष्यवाणी करी थी,चूँकि इसके बाद उन्होने बांग्लादेश निर्माण की भविष्यवाणी कर दी थी इसलिये उनका सम्मान और महत्व बढ़ जाता है,परंतु ग़ैर-मुस्लिमो का आरोप है कि यह भविष्यवाणियां एकतरफा होती है इसलिये इसमे मुस्लिम शासको की पराजय का उल्लेख बहुत कम होता है और अराजनीतिक घटनाओ (सामाजिक-आर्थिक-वैज्ञानिक) की चर्चा नही होती है।
भविष्यवाणियां फिफ्थ जनरेशन वार (हाइब्रिड वार) अर्थात पांचवी पीढ़ी के युद्ध का हिस्सा मानी जाती है अथवा भविष्यवाणियों के द्वारा षड्यंत्र करके अपने समर्थको तथा विरोधियो को गुमराह किया जाता है,इसलिये प्रबुद्ध वर्ग भविष्यवाणियों पर भरोसा नही करता है क्योकि इनके द्वारा शासक तथा खुफिया एजेंसियां भविष्य मे अपनी षड्यंत्रकारी योजनाओ के क्रियान्वयन के लिये अपनी जनता को मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार करती है अर्थात “माइंड प्रोग्रामिंग” करती है और इसका जीता-जागता उदाहरण अमरीका मे यहूदी लॉबी द्वारा चलाया जाने वाली सिंपसन कार्टून (Simpson Cartoon) सीरीज़ है,जिसका एक लेखक केविन कुर्रान (Kevin Curran) 59 वर्ष की आयु मे लंबी बीमारी के बाद मर गया किंतु अपनी मौत की भविष्यवाणी नही कर सका था,जबकि यही सैमसंग कार्टून सीरीज़ वर्षो पहले ट्रंप के राष्ट्रपति बनने जैसी राजनीतिक घटनाओ और पेट्रोल मूल्य-शेयर बाजार गिरने जैसी आर्थिक घटनाओ का सजीव चित्रण कर चुकी है।
भविष्यवाणियों के फर्ज़ीवाड़े अर्थात हाइब्रिड वार मे इस्तेमाल किये जाने वाला दूसरा उदाहरण नास्त्रेदामस की भविष्यवाणियां है क्योकि बड़ी कुटिलता से पहले हिटलर और आज नाटो देश इसका उपयोग करते हुये विरोधियो के विरुद्ध प्रोपेगंडा (दुष्प्रचार) करके उन्हे निशाना बनाते है,इसलिये जब सद्दाम हुसैन को रास्ते से हटाना था तब उन्हे नास्त्रेदामस का कथित खलनायक (मुस्लिम नेता) बना दिया गया और दूसरा खलनायक भविष्य मे इटली के ऊपर आक्रमण करने वाला अरब नेता ग़द्दाफी को बना दिया गया था किंतु अब इन दोनो की मृत्यु हो गई है तो किसी नये खलनायक को खोज लिया जायेगा,हालांकि इस्लामोफोबिया से पीड़ित नस्लवादी नास्त्रेदामस धर्मातंरित यहूदी पिता की इसाई औलाद था और उसकी सारी भविष्यवाणियां धूर्तता तथा कुटिलता से भरी होती है जिन्हे घटना के घटित होने के पश्चात नये-नये बहाने बनाकर किसी भी घटना से जोड़ा जा सकता है।
अगर नास्त्रेदामस एक सच्चा धार्मिक इसाई होता तो वह सबसे पहले हज़रत ईसा के पुनरागमन की तिथि बताता क्योकि इसाईयो के लिये यह सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक विषय है और मुसलमान तथा इसाई दोनो हज़रत ईसा के पुनरागमन का इंतेज़ार कर रहे है,हालांकि मुसलमान उन्हे पैगंबर मानते है जबकि इसाई उन्हे खुदा की संतान मानते है लेकिन उन्हे अपना भविष्य का धार्मिक नेता मानने मे दोनोे पंथो मे कोई मतभेद नही है,किंतु यहूदी हज़रत ईसा को झूठा पैगंबर मानते है और अभी तक अपने मसीहा (एंटी-क्राइस्ट/दज्जाल) का इंतेज़ार कर रहे है इसलिये नास्त्रेदामस ने एंटी-क्राइस्ट की चर्चा नही करी क्योकि उसे डर लगा होगा कि कही उसके कारण यहूदियो के मसीहा (नेता) को कोई नुकसान नही हो जाये परंतु यह हरकत (चालाकी) उसके पाखंड तथा झूठ की पोल खोल देती है।
भविष्यवक्ता हमेशा अपने समुदाय (पंथ) को केंद्र मे रखकर भविष्यवाणियां करते है इसलिये दूसरा पक्ष उन्हे हमेशा पक्षपातपूर्ण मानता है क्योकि बाइबल के ओल्ड-टेस्टामेंट की भविष्यवाणियां यहूदियो के पक्ष मे तथा न्यू-टेस्टामेंट की  भविष्यवाणियां ईसाइयो के पक्ष मे है और हदीसो की पेशनगोइयां मुसलमानो के विश्व-विजय अभियान का मार्ग प्रशस्त करती है,किंतु यह धार्मिक भविष्यवाणियां एक मानसिक विकृति अर्थात मनोरोग का रूप ले लेती है क्योकि हर धर्म के अनुयाईयो का मत है कि भविष्य मे सिर्फ उनका धर्म ही बचेगा अर्थात दूसरे धर्मो का अंत हो जायेगा,इसलिये यहूदियो का मत है कि उनका मसीहा (दज्जाल) दूसरे धर्मो का सफाया कर देगा तथा इसाईयो का विश्वास है कि यशु-मसीह (हज़रत ईसा) के आगमन के बाद सारा विश्व इसाईयत मे रंग जायेगा और सनातन-धर्मीयो का विचार है कि कल्की अवतार सारे विश्व मे सनातन-धर्म की पताका फहरायेगा।
अगर धर्म को अफीम कहा जाये तो भी अतिशयोक्ति नही होगी बल्कि धर्म को ज़हर बोलना चाहिये क्योकि विश्व विजय करके दूसरे धर्मो का अंत करने की सनक इस पृथ्वी के विनाश का कारण बनेगी,किंतु सौभाग्य से अभी तक अधिकतर भविष्यवाणियां झूठी साबित हुई है जिसमे सूरदास जी के नाम से प्रचलित भविष्यवाणी (हलधर पूत, पवार उपजे, देहरी छत्र धरे) भी शामिल है क्योकि नास्त्रेदामस ने भी 1995 मे धरती पर उल्का पिण्ड गिरने तथा 2000 से पहले तीसरा विश्वयुद्ध होने की भविष्यवाणी की थी और माया सभ्यता के कैलेंडर (मेसो-अमेरिकन लोंग कैलेंडर मे 5,126 साल लंबे चक्र की समाप्ति तिथि) के अनुसार 21 दिसंबर 2012 को पृथ्वी समाप्त होने वाली थी,परन्तु भविष्यवाणियों की आड़ मे दुकान चलाने वाले ज्योतिषी फर्जीवाड़ा करके भविष्य मे घटने वाली घटनाओ की तिथि आगे बढ़ाते रहते है इसलिये यह ठग (ज्योतिषी) 1999 मे होने वाले तीसरे विश्वयुद्ध की तिथि को आगे बड़ाकर पहले 2015 मे बताते थे फिर 2017 से 2019 तक घसीट कर ले गये और जब इनकी दाल नही गली तो अब 2020 से लेकर 2026 तक की तिथिया बता रहे है,हालांकी आशा है कि 2027 मे भी विश्वयुद्ध नही होगा लेकिन तब यह ज्योतिषी अपना धंधा बचाने के लिये 2038 मे तीसरा विश्वयुद्ध होने की भविष्यवाणी कर देगे।
कशमीर मे कई वर्षो तक रहने वाले हज़रत शाह नेमतुल्लाह साहब एक सूफी संत थे इसलिये उन्होने बिना किसी स्वार्थ के भविष्यवाणियां करी थी जो आज तक सच (99.99%) साबित हुई है जिसमे पहले दो विश्वयुद्ध की भविष्यवाणियां भी शामिल है,किंतु तीसरे विश्व युद्ध की भविष्यवाणियों को एक सूत्र मे पिरोना असंभव सा प्रतीत होता है क्योकि उनकी भविष्यवाणियों के विश्लेषण से यह अनुमान लगाया जाता है कि यह युद्व चार चरण मे पूरा होगा,प्रथम चरण मे आंतरिक कलह से पीड़ित भारत पाकिस्तान पर परमाणु हमला करेगा जिसके परिणाम स्वरूप मुस्लिम देश भारत पर जवाबी हमला कर देगे फिर अमेरिकी सेना द्वारा भारत की सहायता के लिये कूच करने की समाचार सुनकर चीन पूरब मे मोर्चा खोल देगा और मुस्लिम सेनाओ के गठबंधन की सहायता से चीन श्रीलंका तक काबिज़ हो जायेगा।
दूसरे चरण मे एशिया से दुत्कारा हुआ रशिया अपने मित्र जर्मनी की सहायता से इंग्लैंड के ऊपर हमला करेगा और फिर अमरीका के ऊपर भयानक परमाणु हमला करके उसे दुनिया के नक्शे से मिटा देगा,किंतु उसके बाद अर्थात तीसरे चरण मे चीन रशिया पर हमला करके उसे आत्मसमपण के लिये मजबूर कर देगा,परन्तु अंतिम चरण मे सेंट्रल-एशिया का कोई मुस्लिम देश चीन की सेना को पराजित कर देगा।
पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब (ﷺ) ने भविष्यवाणी करी है कि “सिंध (पाकिस्तान) की खराबी हिंद (भारत) से और हिंद की खराबी चीन से है” अर्थात पाकिस्तान को भारत से नुकसान होगा तथा भारत को चीन क्षति पहुंचायेगा,किंतु विषय मुसलमानो की भविष्यवाणियों से संबंधित़ नही है बल्कि बाइबल की एक भविष्यवाणी का उल्लेख किया गया है जिसके अनुसार (बीस) 20 करोड़ की सेना के साथ चीन इज़रायल की तरफ बढ़ेगा इसलिये नास्त्रेदामस जैसे  षड्यंत्रकारी-यहूदी (Zionist) ज्योतिषी मुस्लिम-चीन सेनाओ के गठबंधन द्वारा यूरोप पर कब्ज़ा कर लेने की फर्ज़ी कहानियां गढ़ते रहते है,ताकि मुसलमानो तथा इसाईयो को आपस मे लड़ाया जा सके जबकि दोनो का एक ही लक्ष्य है अर्थात दोनो हज़रत ईसा को भविष्य का धार्मिक नेता मानकर संसार मे उनके पुनरागमन का इंतेज़ार कर रहे है तब फिर आपस मे लड़ने की क्या ज़रूरत है क्योकि इसका निर्णय तो हज़रत ईसा ख़ुद कर देगे कि कौन सही है और कौन गलत है?
आई०सी०एन० मीडिया हाउस की नीति है कि अंधविश्वास फैलने से रोका जाये इसलिये हम वेब-पोर्टल पर भविष्यवाणियों की चर्चा नही करते है और ना ही किसी को कोई परामर्श देते है,क्योकि अधिकतर राजनीतिक भविष्यवाणियां दुर्भावना से प्रेरित तथा एकतरफा होती है जिसका उद्देश्य अपने समर्थको का मनोबल बढ़ाना और विरोधियो का मनोबल कम करना होता है ताकि राजनीतिक लक्ष्यो की प्राप्ति की जा सके,किंतु अव्यवहारिक समझे जाने वाले विषय पर शोध तथा अनुसंधान करके संभावनाओ पर विचार करना बौद्धिकता का अंग माना जाता है इसलिये हम सोचने पर मजबूर है कि दो ध्रुव समझे जाने वाले वामपंथी-चीन और सर्वाधिक-धर्माध समुदाय के बीच मे कोई गठबंधन कैसे संभव है?
रमज़ान मे सरकारी कर्मचारियो को ज़बरदस्ती खाना खिलाना, छात्रो को अवैध (हराम) भोजन कराना, इस्लामिक नाम और दाढ़ी रखने पर पाबंदी, घर मे नमाज़- क़ुरान पढ़ने की इजाज़त का ना होना, मस्जिदो मे ताले लगाने आदि अत्याचारो और काले-क़ानूनो से चीनी सरकार ने चीनी मुसलमानो के जीवन को नर्क बना दिया गया,फिर मुस्लिम क्षेत्रो मे बाहर से दूसरे चीनी लोगो को लाकर और उन्हे मुस्लिमो की ज़मीन पर बसाकर स्थानीय मुस्लिमो के राजनैतिक अस्तित्व को खत्म करने की कोशिश की गई, इसलिये संक्षेप मे लिखा जा सकता है कि चीन के मुसलमान संसार मे सबसे पीड़ित धार्मिक अल्पसंख्यक है, किंतु चंद महीनो मे कैसे चीन मुस्लिम देशो का सबसे बड़ा मित्र बन गया?
मलेशिया-इंडोनेशिया-ब्रुनूई से दक्षिणी चीन-सागर की सीमा को लेकर विवाद और तुर्की से खराब राजनैतिक संबंधो के बावजूद भी मुस्लिम देशो की जनता मे चीन के लिये प्रेम और सहानुभूति की लहर क्यो उमड़ पड़ी है?
अधिकतर मुसलमान शासक विशेषकर खाड़ी के अरब देशो के तानाशाह अमरीकी एजेंट माने जाते है,उसके बावजूद भी वह चीन के खिलाफ कोई बयान देने से क्यो बच रहे है?
सरल शब्दो मे इसका एक ही जवाब है कि “अमेरिकी गुंडागर्दी” और “रशिया की गद्दारी” से तंग आकर मुसलमानो ने चीन का दामन थाम लिया है,किंतु महज़ इतनी छोटी सी बात नही है बल्कि इसके पीछे चीन की कड़ी मेहनत और सफल आर्थिक-नीति छुपी हुई है,क्योकि जो भी मुस्लिम-देश अमरीकी या रशियन कैंप से निराश होकर बाहर आया उसे चीन ने बड़ा “आर्थिक पैकेज” देकर अपना मुरीद बना लिया और फिर उसे शक्ति-प्रदर्शन के लिये उपयोग करना शुरू कर दिया।
बीसवीं शताब्दी मे पाकिस्तान को छोड़कर किसी भी मुस्लिम-देश के पास भविष्य के लिये कोई राजनीतिक एजेंडा नही था बल्कि वह अमीर (आर्थिक रूप से समृद्ध) बनना चाहते थे और संप्रदायवाद (Sectarianism) फैलाकर अपने राजनीतिक अस्तित्व को बनाये रखना चाहते थे,इसलिये इक्कीसवीं शताब्दी मे मुस्लिम-देश समाजवादी तथा पूंजीवादी खेमो से बाहर निकलकर दो पंथो मे बट गये जिसमे से शिया-पंथ का नेतृत्व ईरान करने लगा और वहाबी-पंथ का नेतृत्व सऊदी-अरब करने लगा,क्योकि सोवियत-रूस के विघटन के बाद रशिया ने पश्चिमी-देशो से दोस्ताना संबंध बना लिये और मुस्लिम देशो से किनारा कर लिया जिसके कारण सद्दाम तथा कर्नल गद्दाफी जैसे समाजवादी नेताओ की पूंजीवादी ताकतो ने बलि चढ़ा दी।
सबसे बड़ी समस्या अफग़ानिस्तान और पाकिस्तान जैसे मुस्लिम-देशो को हो रही थी जो अपनी मिश्रित-आबादी के कारण ईरान तथा सऊदी अरब मे से किसी एक ग्रुप (पंथ) को स्वीकार करने के बजाय फिरका-वाराना (Sectarian) संतुलन बनाये रखने के लिये दोनो खेमो से बराबर संबंध बनाये रखना चाहते थे,फिर तैयब एर्दोगान के तुर्की राष्ट्रपति बनने के बाद से तुर्क क़ौम मे अपना खोया हुआ सम्मान वापस पाने का सपना जाग उठा और तीसरे ख़ेमे (ग्रुप) की आवश्यकता महसूस होने लगी,किंतु सबसे ज़्यादा बदलाव पुतिन के कारण आया क्योकि ब्रिटिश दबाव मे पश्चिमी-देशो ने रशिया विशेषकर उसके नेता पुतिन को अपनाने से इंकार कर दिया तो अपमानित पुतिन ने घायल नाग (सांप) की तरह प्रतिशोध लेने का निर्णय कर लिया और फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति बदलने लगी।
पुतिन ने पश्चिमी-देशो को चिढ़ाने के लिये मुस्लिम-देशो को दाना डालना शुरू कर दिया और सबसे पहले ईरान को हथियार दिये फिर सीरिया मे शिया तानाशाह असद की सत्ता को बचाने के लिये सेना भेज दी,किंतु पुतिन के इन कदमो से सुन्नी देशो मे नाराज़गी हो रही थी और रशिया की अधिकतर मुस्लिम आबादी सुन्नी है इसलिये रशिया ने तुर्की के साथ बहुत तेज़ी से अपने संबंध सुधारना शुरू कर दिये और फिर पुतिन ने तुर्की मे रूसी राजदूत की हत्या की घटना को भी नज़र-अंदाज़ कर दिया,परंतु सीरिया के मुद्दे को लेकर तुर्की और असद मे संघर्ष शुरू हो गया जिसके कारण रशियन गैस-पाइपलाइन को बचाने के चक्कर मे पुतिन ने तैयब एर्दोगान को अपने देश मे बुलाकर अपमानित किया इसलिये रूस-तुर्की संबंधो मे खटास आना शुरू हो गई फिर तुर्की ने ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियन के लिये (बाबरी मस्जिद की तरह) संवेदनशील मुद्दा समझे जाने वाली आया-सूफिया मस्जिद मे नमाज़ शुरू करके रशिया को कड़ा संदेश भेज दिया।
इज़रायल की 20% आबादी रूसी मूल के यहूदियो की है जिन्हे दोहरी नागरिकता प्राप्त है और इनकी रशिया के उद्योगो मे बड़ी हिस्सेदारी है जिसके कारण यहूदी लॉबी हमेशा पुतिन से अपनी मांगे मनवाती रही है जिसमे सुरक्षा से जुड़ी खुफिया सूचनाओ का आदान-प्रदान भी शामिल है,किंतु ईरान को रशिया तथा इज़रायल के संबंधो से कोई तकलीफ नही थी परंतु जब पिछले वर्ष इज़रायल के स्टील्ट हवाई जहाज़ (एफ०-35) ईरान की जासूसी करने मे सफल हुये और फिर ईरानी वायु सेना के सुरक्षा उपकरणो (एयर डिफेंस सिस्टम) मे सेंध लगाकर इज़रायल की साइबर सेना ने यूक्रेन का विमान गिराकर ईरान पर आरोप लगा दिया, तब ईरान को यह एहसास हुआ कि रशिया ने उसके साथ गद्दारी करी है और उसके एयर-डिफेंस सिस्टम तथा मिसाइल-सिस्टम के कोड (पासवर्ड) इज़रायल को दे दिये है इसलिये उसने सुरक्षा के लिये चीन की तरफ देखना शुरू कर दिया।
ईरान ने भारत के राजनीतिज्ञो तथा भारतीय खुफिया एजेंसियो को हर तरह से पाकिस्तान के विरूद्ध सहायता प्रदान करी थी किंतु उसके बावजूद भी जब वर्तमान भारत सरकार ने इज़रायल को खुश करने को लिये ईरान से किनारा कर लिया,तब ईरानी नेताओ ने क्रोधित होकर पाकिस्तान से रिश्ते सुधार लिये फिर सी०पी०इ०सी० (China Pakistan Economic Corridor) मे शामिल होने के बहाने पाकिस्तान की मार्फत चीन की तरफ दोस्ती का पैग़ाम भेजा,इसलिये दोस्ती को क़ुबूल करते हुये और सस्ते तेल की उपलब्धता का बहाना बनाकर चीन ने ईरान मे चार सौ (400) अरब डालर निवेश करने का समझौता कर लिया,जबकि चीन का उद्देश्य लबनान की बंदरगाह तक रसाई और तुर्की होते हुये सड़क मार्ग से यूरोप तक अपना माल भेजने का वैकल्पिक रास्ता तैयार करना है क्योकि दक्षिणी-चीन सागर मे युद्ध की संभावना बनी हुई है।
बांग्लादेशी प्रबुद्ध वर्ग को यह लगता था कि पाकिस्तान से खराब संबंधो के कारण भारत उनको ब्लैकमेल करता है और उन्हे अपनी उंगलियो पर नचा रहा है लेकिन वह भारत से अपने संबंध बिगाड़ना नही चाहते थे,किंतु एन.आर.सी. (NRC) के मुद्दे पर बंगलादेश मे जनअसंतोष उबल पड़ा जिसके कारण भारत समर्थक शेख हसीना को भी अपनी नीतियो पर पुनर्विचार करने को मजबूर होना पड़ा और उन्होने चीन की तरफ सहायता के लिये हाथ बढ़ाया,परंतु जब चीन ने उम्मीद से अधिक कृतज्ञता दिखाते हुये बांग्लादेश की पाँच हज़ार (5000) से अधिक वस्तुओ पर सीमा-कर (कस्टम ड्यूटी) माफ कर दिया तब बांग्लादेश ने भी एहसान का बदला चुकाते हुये चीन के आदेश पर पाकिस्तान को अपने गले लगा लिया और अब भारत सरकार बंगलादेश को दोबारा पटाने की कोशिश कर रही है।
जब प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पश्चिमी-देशो द्वारा खिलाफत की हत्या कर देने से पैदा हुई हीन-भावना से त्रस्त होकर दुनिया भर के मुसलमान ग़म तथा मायूसी मे डूबे हुये थे और उन्हे खलीफा- राशेदीन की सेना (विश्व मे सर्वश्रेष्ठ) की तरह मुस्लिम हितो की सुरक्षा करने वाली सेना की ज़रूरत महसूस हो रही थी,तब भारतीय उपमहाद्वीप के मुस्लिम बुद्धिजीवियो ने रियासत-ए-मदीना (मदीना-ए-तैय्यबा) की तर्ज़ पर एक शक्तिशाली इस्लामिक राष्ट्र की स्थापना के लिये आंदोलन की नींव रखी,फिर जिसके परिणाम स्वरूप 1947 मे विश्व के दूसरे इस्लामिक राष्ट्र की स्थापना हुई क्योकि प्रथम राष्ट्र की स्थापना पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब (ﷺ) ने 622 ईस्वीं मे की थी।चूँकि हिंदुस्तान इस्लाम की प्रथम पुण्य भूमि है क्योकि  प्रथम पैगंबर हज़रत आदम को आसमान से इसी पवित्र भूमि पर उतारा गया था और वह जन्नत (स्वर्ग) से फल-फूल-पत्तियां लाये थे तथा उनका रोपण इसी भूमि पर किया गया था फिर पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब (ﷺ) ने कहा था कि “मुझे हिंदुस्तान से जन्नत की हवा आती है”,किंतु पैगंबर नूह के ज़माने मे आपस मे ऊँच-नीच की आड़ मे भेदभाव करने तथा बहुश्वेरवाद के कारण जल-प्रलय हो गया था,इसलिये इस पवित्र भूमि पर बने विश्व के दूसरे इस्लामिक राष्ट्र को “पवित्र लोगो का निवास स्थान” (पाकिस्तान) अर्थात “मदीना-ए-तैय्यबा” का नाम दिया गया था परन्तु पाकिस्तान अपने उद्देश्य से भटक गया क्योकि सामंतवादी वर्ग तथा पंजाबी सैनिक अधिकारी भ्रष्टाचार फैलाकर इसको बर्बाद करने लगे।
पाकिस्तान की छवि आतंकवाद निर्यात करने वाले एक असफल राष्ट्र की बन गई और जब वह अंतरराष्ट्रीय पटल पर अलग-थलग पड़ गया तब चीन ने पचास (50) अरब डालर का निवेश करने की घोषणा करके आर्थिक रूप से कंगाल पाकिस्तान को जीवनदान दिया,फिर परमाणु संपन्न राष्ट्र बनवाकर विश्व के मुसलमानो की इस्लामिक बम (एटम बम) बनाने की इच्छा को पूरा करवाया जिसने सारे मुसलमानो को चीन का कृतज्ञ बना दिया किंतु चीन यही नही रूका बल्कि उसने पाकिस्तान के अन्दर एम०आई०आर०वी० (Multiple independently targetable reentry vehicle) जैसी अत्याधुनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी तथा चौथी पीढ़ी के जंगी हवाई जहाज़ (जे०एफ०-17) निर्मित करने की क्षमता पैदा करवाई,फिर अब चीन पाकिस्तानी वैज्ञानिको को चेंगदू (Chengdu) जैसे चीनी संस्थानो मे पांचवी पीढ़ी के हवाई जहाज़ (JF-20 under AZM project) बनाने तथा एच०जी०वी० (Hyper Glide Vehicle) जैसी अत्याधुनिक मिसाइल बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है ताकि पाकिस्तान अत्याधुनिक सुरक्षा उपकरणो का निर्माण करने मे आत्मनिर्भर हो जाये।
चीन पाकिस्तान को रडार से लेकर पनडुब्बिया तक सभी सैनिक साजो-समान उपलब्ध करवा रहा है और उसके बदले मे पाकिस्तान मुस्लिम देशो के साथ “संपर्क-कूटनीति” करके चीन से   मुस्लिम देशो के संबंध जुड़वा रहा है, क्योकि तुर्की के चीन से संबंध सुधरवाकर पाकिस्तान ने असंभव काम को भी संभव कर दिया,इसलिये अब वह मलेशिया तथा इंडोनेशिया के साथ भी चीन के संबंध सुधरवाने का प्रयास कर रहा है ताकि वह (पाकिस्तान) उत्तर-कोरिया का स्थान लेकर चीन का सबसे बड़ा विश्वासपात्र बन जाये।आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति अरब देशो की बनी हुई है क्योकि तेल के निकलते नये-नये स्रोतो तथा गिरते दामो ने अरबो की नींद हराम कर दी है और ऊपर से नई-नई टेक्नोलॉजी ने डीज़ल-पेट्रोल का जीवन बहुत सीमित कर दिया है,किंतु अरब तानाशाहो की सबसे बड़ी समस्या उनके गुप्त रहस्यो की फाइले (Files) है जिन्हे सी.आई.ए. (CIA) तथा मोसाद ने अरबो को ब्लैकमेल करने के लिये तैयार किया है क्योकि अगर अरब मुंह खोलते है तब अमेरिका उनके रहस्यो से पर्दा हटाते हुये देश मे बग़ावत करवाकर अरब राजकुमारो को सत्ता से बेदखल करवा देगा, परंतु आंखे दिखाने के बाद भी अगर अरब तानाशाह अपनी सत्ता बचाने मे सफल रहे तो अमेरिका अपने काले-कानूनो की मदद से अरबो की संपत्ति को ज़ब्त करके उन्हे आर्थिक रूप से कंगाल करते हुये अंतरराष्ट्रीय पटल पर अलग-थलग कर देगा और फिर भी अरब अमरीकी कैंप से बाहर गये तो ईरान की तरह उन पर पाबंदियां लगाकर उन्हे भिखारी बना देगा और इज़रायल की मद्द के द्वारा अरबो की भूमि पर कब्ज़ा कर लेगा।
अरबो की मनोस्थिति को समझते हुये चीन ने कमाल का पत्ता फेका और इज़रायल को फलस्तीनियो की भूमि विशेषकर यरूशलम पर नाजायज़ कब्ज़ा करने की स्थिति मे गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दे डाली जिससे यहूदियो की नींद हराम हो गई,क्योकि यहूदी जानते है कि वह सीधे चीन से नही लड़ सकते और दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनने के चक्कर मे अमेरिका-चीन को लड़ाने का षड्यंत्र यहूदियो ने ही रचा है इसलिये उन्हे अपनी पोल खुलने और अपने मंसूबो पर पानी फिरने का डर सता रहा है,चूँकि चीन विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति बनना चाहता है और वैश्विक-अर्थव्यवस्था  यहूदियो के चंगुल मे फंसी हुई है इसलिये सबसे ज़्यादा खतरा इस बात का है कि चीन ईरान जैसे दुश्मन देशो को अत्याधुनिक हथियार देकर इज़रायल के अस्तित्व को मिटाने की व्यवस्था कर सकता है।
अमरीकी सरकार सेंट्रल बैंक से कर्ज़ा लेती है जिसके मालिक (पर्दे के पीछे) रॉथमैन चाइल्ड जैसे यहूदी है और दूध बनाने वाली कंपनी ‘नेस्ले’ से लेकर हवाई जहाज बनाने वाली कंपनी ‘लॉकहीड मार्टिन’ के मालिक यहूदी ही है इसलिये अब यहूदी चाहते है कि इन सभी बड़ी कंपनियो का हेडक्वार्टर अमेरिका के बजाय इज़रायल मे होना चाहिये ताकि वह डिजिटल करंसी बाज़ार मे उतार कर इज़रायल को दुनिया की इकलौती सुपर पावर बना सके जिसका वर्णन बाइबल और मुसलमानो की भविष्यवाणियों मे किया गया है,किंतु इस समय सोने तथा काले-सोने (तेल) से भी ज़्यादा महत्वपूर्ण कंप्यूटर का डाटा (DATA) है और ‘गूगल’ से लेकर ‘एपल’ तक कंपनियो के मालिक धर्मातरित यहूदी है इसलिये मोसाद ‘इलुमिनाटी’ और ‘फ्रीमैसन’ जैसी संस्थाओ की सहायता से इन कंपनियो पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रहा है जिसके कारण काफी समय बर्बाद होता जा रहा है,परंतु यहूदियो को सबसे ज़्यादा नुकसान ट्रंप जैसे धोकेबाज़ो ने पहुंचाया है क्योकि यहूदी मुसलमानो-ईसाईयो को आपस मे लड़ाकर ग्रेटर-इज़रायल तथा थर्ड टेंपल (हैकल-ए-सुलेमानी) बनाना चाहते थे इसलिये रूस की यहूदी लॉबी की मदद से अमेरिकी चुनावो मे गड़बड़ी करके ट्रंप को राष्ट्रपति बनवाया था।
यहूदियो द्वारा चलाये जाने वाले माइंड प्रोग्रामिंग के कार्यक्रमो विशेषकर सिंपसन जैसी कार्टून सीरीज़ ने दिखाया था कि ट्रंप अमेरिका का राष्ट्रपति बनेगा फिर युद्व तथा बीमारियो के कारण अर्थव्यवस्था तबाह हो जायेगी जिससे अमरीकी जनता सड़क पर आ जायेगी और अमेरिका के पचास (50) टुकड़े हो जायेगे,इसलिये ट्रंप की बेटी की शादी एक रसूखदार यहूदी से करवाई गई और सारे धार्मिक नियम त्यागकर उसे (दुल्हन) यहूदी बना दिया गया क्योकि मोसाद चाहती थी कि ट्रंप के ऊपर हर वक्त नज़र रखी जा सके फिर योजना के अनुसार एक आतंकवादी हमला होना था जिसके जवाब मे ट्रंप को मुस्लिम-देशो पर परमाणु आक्रमण करने का आदेश देना था,किंतु ट्रंप ने ऐसा करने से इंकार कर दिया और जॉन बोल्टन (John Bolton, national security adviser) जैसे मंत्रियो को जो मोसाद का एजेंडा पूरा करने के लिये दबाव डाल रहे थे उन्हे अपने मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया क्योकि ट्रंप एक राष्ट्रवादी गोरा (White Supremacist) है जो पश्चिमी-देशो को किसी भी हालत मे नुकसान नही पहुंचाना चाहता है परंतु अब मोसाद ट्रंप को सबक सिखाने के लिये सी.आई.ए. के अधिकारियो की मार्फत परेशान कर रही है और प्रतिद्वंदी उम्मीदवार जो बिडेन (Joe Biden) की सहायता कर रही है।
मोसाद के इशारे पर पुतिन डॉलर को तबाह करके अमेरिकी अर्थव्यवस्था को चौपट करने के लिये चीन के साथ मिलकर डिजिटल करेंसी या स्वर्ण विनिमय (Golf Exchange) व्यापार पद्धति अथवा स्वर्ण मुद्रा (Gold Currency) मे लेन-देन जैसी योजनाओ पर कार्य कर रहा था क्योकि चीन अमरीका के ऋण-पत्र खरीदता है और लगभग बत्तीस सौ (3200) बिलीयन डॉलर के अमरीकी ऋण-पत्र चीन ने खरीद रखे है इसलिये रूस ने इस षडयन्त्र मे चीन को अपना साझेदार बनाया था ताकि चीन अमेरिका के ऋण-पत्रो को खुले बाज़ार मे बेचकर अमेरिकी डॉलर के मूल्य को गिरा दे,किंतु चीनी जासूसो ने पता लगाया कि पुतिन का उद्देश्य सिर्फ अमरीका को आर्थिक रूप से कंगाल करने का नही है बल्कि रशिया अमेरिका-इंग्लैंड के ऊपर परमाणु हमला करके यूरोप पर कब्ज़ा करना चाहता है इसलिये उसने तालिबान तथा ईरान समर्थित शिया आतंकवादियो को अमेरिकी सैनिको की सुपारी दी है,चूंकि चीन विश्व को परमाणु अस्त्रो से बर्बाद करने के बजाय आर्थिक विकास के मार्ग पर चलकर विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति बनना चाहता है इसलिये उसने रूस के षड्यंत्रो से किनारा करने का प्रयास किया तो यहूदी षड्यंत्रकारियोे ने उसे चारो तरफ से घेर लिया और रशिया ने जासूसी का आरोप लगाकर एंटी मिसाइल सिस्टम (एस-400) की डिलीवरी रोक दी।
अकेले पड़ चुके चीन ने जब दुनिया की सबसे जांबाज़ कौम को मदद के लिये पुकारा तो दो अरब मुसलमानो ने चौदह हज़ार (14,000) से अधिक परमाणु अस्त्र रखने वाले अमरीका-रशिया के पैरो के नीचे से क़ालीन खींच लिया,क्योकि “मुसलमानो को इल्म सीखने के लिये चीन जाना चाहिये” वाली पैगंबर हज़रत मोहम्मद साहब (ﷺ) की हदीस के कारण मुसलमानो के दिल मे चीन के लिये असीम प्रेम छुपा हुआ है और यह भविष्यवाणी फलीभूत भी हुई है क्योकि कागज़ बनाने से लेकर एटम-बम बनाने तक की टेक्नोलॉजी मुसलमानो को चीन से ही प्राप्त हुई है अर्थात मुसलमान चीन के ऋणी है,किंतु देढ़ सौ साल (1862-1877) पहले चीन मे हुई-नस्ल के मुसलमानो का नरसंहार (Dungan Revolt or Tongzhi Hui Revolt) और अब उइगर मुसलमानो के ऊपर अत्याचार के कारण चीन और मुस्लिम-देशो के संबंध बेहद तनावपूर्ण है इसलिये अब यह चीन का दायित्व है कि वह अपने अल्पसंख्यको विशेषकर मुसलमानो के मानवाधिकार की गारंटी देकर विश्व के सारे मुसलमानो की सहानुभूति प्राप्त करे।
मुसलमानो का सहयोग मिलने के बाद अब कोई भी देश चीन को विश्व की सबसे बड़ी सुपरपॉवर बनने से नही रोक सकता है,किंतु चीन को मुसलमानो के साथ-साथ भारतवासियो का भी ध्यान रखना पड़ेगा क्योकि  भारत की दो तिहाई से अधिक जनसंख्या फासीवादी नही है बल्कि मानवतावादी है और वह चीन को अपना भाई मानती है,दूसरे दिल्ली तथा अजमेर जैसे मुसलमानो की पुण्य भूमी (धार्मिक स्थल) और बरेली तथा देवबंद जैसे मुसलमानो के शैक्षिक केंद्र भारत मे ही स्थित है,इसलिये भारतवासियो से पंगा लेना चीन के गले की फांस बन जायेगा।

एज़ाज़ क़मर (रक्षा, विदेश और राजनीतिक विश्लेषक)

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