उर्दू शायरी में ‘धूप’: 2

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

धूप का ख़याल आते ही ज़ह्न में रोशनी और तपन भर जाती है। धूप रोशनी भी है और ज़िंदगी भी। धूप अगर जीवन के चमकदार पक्ष की वकालत करती है तो वह जीवन के जलते हुये सफ़र की साक्षी भी है।

 

धूप के अनेकों रंग हैं और वैज्ञानिक तथ्य तो यह है कि जब सारे रंग एक साथ मिल जाते हैं तो ‘धूप’ बन जाती है। उर्दू शायरी में इस बहुआयामी धूप को तरह-तरह से परिभाषित करने की कोशिशें हुई हैं लेकिन धूप है कि किसी एक खाने में बंधने का नाम ही नहीं लेती है। आख़िर धूप है क्या, उर्दू शायरी में इसे किन-किन नज़रियों से देखा गया है, यह बहुत दिलचस्प है।

 

हम सबकी ज़िंदगी में धूप के कई मायने हैं। कभी यह खुशी की प्रतीक है तो कभी ग़म की। कभी इसे उजाले के रूप में देखा जाता है तो कभी जलन के रूप में। आइये, आज इसे शायरों की नज़रों से परखने की कोशिश करते हैं।

 

अतहर नफ़ीस प्रसिद्ध पाकिस्तानी शायर थे। उनका जीवन काल वर्ष 1933 से वर्ष 1980 के दरम्यिान रहा। ‘वो इश्क जो हमसे छूट गया’ उनकी बहुत मशहूर ग़ज़ल है जिसे तमाम फ़नकारों ने अपनी आवाज़ें दीं हैं। धूप तो हर तरफ़ से आती है। बस उसके सूरज के चलते रहने के आधार पर अपना कोण बदलने का समय अलग-अलग है। इसी खूबसूरत पहलू से निकला है यह शानदार शेर –

 

ये धूप तो हर रुख़ से परेशान करेगी,

क्यूँ ढूँड रहे हो किसी दीवार का साया।”

मुसव्विर सब्ज़वारी का जन्म वर्ष 1932 में हुआ और उनका इंतकाल वर्ष 2002 में गुड़गाँव, भारत में हुआ।

धूप पर उनका यह तसव्वर महबूब की यादों व मौसम के तेवर के सम्मिश्रण से किस तरह ख़ुशबूदार होकर इस शेर की शक्ल में सामने आया है, यह देखते ही बनता है –

 

वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया, 

लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह।” 

 

‘गुरूब’ का अर्थ है – अस्त होना।

सरशार सिद्दीक़ी पाकिस्तान के शायर हैं। वर्ष 1926 में उनका जन्म हुआ और वर्ष 2008 में इंतकाल। ‘बेनाम’, ‘पत्थर की लकीर’ ‘अबजाद’ व ‘असास’ उनके चर्चित दीवान हैं। धूप का आगे खिसकना वास्तव में जीवन के आगे बढ़ने के समान है। कितना खूबसूरत संदेश है इस शेर में –

 

नींद टूटी है तो एहसास-ए-ज़ियाँ भी जागा, 

धूप दीवार से आँगन में उतर आई है।”

 

‘एहसास-ए-ज़ियाँ’ का अर्थ है – खोने का अहसास।

हिमायत अली शाएर का जन्म 1926 में हुआ व निधन वर्ष 2019 में। वे टोरंटो, कनाडा के बाशिंदे थे। उन्होंने कई दीवान उर्दू शायरी को दिये जिनमें ‘आग में फूल’, ‘आईना दर आईना’, ‘हर्फ़ हर्फ़ रोशनी’, ‘हर्फ़ों की आवाज़” व ‘तिश्नगी का सफ़र’ ख़ासे चर्चित हैं। धूप की शिद्दत इतनी होती है कि कभी कभी उसकी आँच साये भी महसूस करते हैं। बेहद खूबसूरत तसुव्वर से सजा उनका यह शेर काबिले ग़ौर है –

 

“इस दश्त-ए-सुख़न में कोई  क्या फूल खिलाए।

चमकी जो ज़रा धूप तो जलने लगे साए ।।”

ज़ेब ग़ौरी वर्ष 1928 में कानपुर में जन्मे और वर्ष 1985 में उनकी‌ मृत्यु हुई। वे भारत में आधुनिक शायरी के अग्रणी शायर थे। ‘चाक’ व ‘ज़र्द ज़रख़ेज़’ उनके चर्चित दीवान है। धूप पर उनका यह खूबसूरत शेर आपके हवाले –

 

किस ने सहरा में मिरे वास्ते रक्खी है ये छाँव, 

धूप रोके है मिरा चाहने वाला कैसा ।”

फ़ज़्ल ताबिश भोपाल से वाबस्ता थे। वर्ष 1933 में जन्मे और वर्ष 1995 में उनका इंतकाल हुआ। ‘झरोखा’ उनका चर्चित दीवान है। उनकी शायरी में हिंदी के नवगीतों जैसे नये बिंब, प्रतीक और संदर्भ मिलते हैं और इसलिये उनकी शायरी कुछ और भी ताजा लगती है। क्या खूबसूरत शेर कहा है धूप पर और वह भी बिल्कुल नये अंदाज़ में – 

 

कमरे में आ के बैठ गई धूप मेज़ पर, 

बच्चों ने खिलखिला के मुझे भी जगा दिया।” 

मंज़ूर हाशमी अलीगढ़ में वर्ष 1935 में जन्मे और वर्ष 2008 में उनका इंतकाल हुआ। ‘बारिश’ व ‘आब’ उनके चर्चित दीवान हैं। बला की तेज़ धूप का चित्र कुछ यूँ खींचते हैं वे –

 

कुछ अब के धूप का ऐसा मिज़ाज बिगड़ा है, 

दरख़्त भी तो यहाँ साएबान माँगते हैं।”

हनीफ़ तरीन वर्ष 1951 में जन्मे दिल्ली शहर से वास्ता रखते हैं। उनके कई दीवान मंज़र-ए-आम‌ पर हैं जिनमें ‘अबाबीलें नहीं आईं’ काफ़ी चर्चित है। धूप पर एक शेर ऐसा भी –

 

“पानी ने जिसे धूप की मिट्टी से बनाया,

वो दाएरा-ए-रब्त बिगड़ने के लिए था।”

हसीब सोज़ वर्ष 1952 में बदायूँ में जन्मे। धूप की शिद्दत को अपने ही अंदाज़ में देखते हैं। उनका धूप पर एक शेर देखिये –

 

ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या है, 

ये लोग धूप में क्यूँ हैं शजर के होते हुए।” 

फ़रहत एहसास वर्ष 1952 में जन्मे और दिल्ली के बाशिंदे है। उत्तर आधुनिक शायरों में वे अग्रणी पंक्ति के शायर हैं। ‘मैं रोना चाहता हूँ’ और ‘शायरी नहीं है ये’ उनके चर्चित दीवान हैं। धूप से पुरानी वफ़ादारी का यह पहलू भी कुछ जुदा है। क्या खूब शेर कहा है –

 

धूप बोली कि मैं आबाई वतन हूँ तेरा, 

मैं ने फिर साया-ए-दीवार को ज़हमत नहीं दी।” 

 

‘आबाई वतन’ का अर्थ है – ख़ानदानी पहचान।

आबिद वदूद वर्ष 1953 में पाकिस्तान में जन्मे एक मशहूर शायर हैं। धूप पर उनके अशआर एक अलग ही रंगत लिये हैं। कभी यह हमारे वस्त्र बन जाती है तो कभी यह हम‌ पर जानलेवा हमला कर देती है। आइये, उनके कुछ शानदार अशआर का लुत्फ़ लेते हैं –

 

हम फ़क़ीरों का पैरहन है धूप,

और ये रात अपनी चादर है।

 

और एक यह शेर –

 

मैं बारिशों में बहुत भीगता रहा ‘आबिद’,

सुलगती धूप में इक छत बहुत ज़रूरी है।”

संजय मिश्र ‘शौक’ उर्दू शायरी में फ़िराक़ गोरखपुरी, चक़बस्त व कृष्ण बिहारी ‘नूर’ की तरह गैर मुस्लिम शायरों की परंपरा के शायर हैं। उस्ताद नसीम अख़्तर सिद्दिक़ी के सुयोग्य शिष्य ‘शौक’ एक ऐसे शायर हैं जिन्होंने एक गैर मुस्लिम होते हुये भी उर्दू शायरी को बहुत कुछ दिया है और उर्दू शायरी को जिन पर नाज़ है। उर्दू शायरी में ‘रुबाई’ एक अत्यंत कठिन विधा मानी जाती है क्योंकि इसमें मात्र चार पंक्तियों में ही अपनी पूरी बात कहनी होती है और संजय मिश्र ‘शौक’ को‌ इस विधा पर महारत हासिल है। सिर्फ़ रुबाई ही नहीं बल्कि ग़ज़ल गोई में भी ‘शौक’ साहब का कोई जवाब नहीं। आइये, धूप पर उनके कुछ शानदार अशआरों के हवाले से उनसे मुलाकात करते हैं – 

 

छांव की ज़द में जो आए तो सुकूं हासिल हो,                          

धूप ख़ुद धूप में जलती है शजर से पहले।”

 

यह शेर भी –

 

छांव में रह के मज़महिल था मैं, 

धूप ने रंग भर दिए मुझमें।”

 

यह भी –

 

जिंदगी भर का है यही हासिल।      

धूप ओढ़ी तो छांव मिल पाई।।”

 

एक और खूबसूरत शेर –

 

आज ख़ुश हूं कि इन पहाड़ों की।  

धूप ने दिन बना दिया अपना।।”

 

इस शेर का तो जवाब नहीं –

 

मैं तो बचपन में हो गया बूढ़ा।    

धूप ने खा लिया जवानी को।।”

 

और आख़िर में –

 

मेरी मेहनत मिरे पसीने से,   

धूप का रंग ज़ाफ़रानी है।”

अहमद ज़िया की एक किताब “ख्वाब मेरे धुआँ” मंज़र-ए-आम पर आयी है। धूप वहशी है और उसकी वहशत से सारी दुनिया वीरान है। अजब तसुव्वर की तस्वीर खींचता उनका धूप पर यह शेर –

 

“बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप ‘ज़िया’ 

चारों जानिब वीरानी है दिल का इक वीराना क्या ।”

बहराम तारिक़ का एक बहुत ही मशहूर शेर आप से शेयर कर रहा हूँ। धूप इतनी ज़ालिम है कि वह हर किसी का साया भी छीन‌ लेती है। धूप में हर कोई तनहा है, अकेला है। शेर देखिये –

 

धूप बढ़ते ही जुदा हो जाएगा, 

साया-ए-दीवार भी दीवार से।” 

असग़र मेहदी होश जौनपुर से ताल्लुक रखते हैं। वे बहुत संजीदा शायर हैं और उनके शेर दिल की गहराई से निकलते हैं। जैसे धूप पर उनका यह शेर –

 

दीवार उन के घर की मिरी धूप ले गई, 

ये बात भूलने में ज़माना लगा मुझे।” 

होश तिर्मिज़ी मशहूर शायर हैं। वफ़ा की धूप की तीव्रता जला देने वाली है। बहुत खूबसूरत शेर कहा है –

 

दश्त-ए-वफ़ा में जल के न रह जाएँ अपने दिल, 

वो धूप है कि रंग हैं काले पड़े हुए ।”

 

क्रमशः

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