गीत-गीता : 13

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

(श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद)

द्वितीय अध्याय (सांख्य योग)

(छंद 50-56)

 

श्रीकृष्ण : ( श्लोक 11-53)

 

जो भी तेरे बैरी हैं,

अपशब्द तुझे बोलेंगे।

पीड़ा के द्वार हज़ारों,

वे नित तुझमें खोलेंगे।।(50)

 

यदि युद्ध तुझे लीलेगा,

तो स्वर्ग तुझे निश्चित है।

यदि विजय तुझे मिल पाई,

धन धान्य राज्य समुचित है।। (51)

 

जय और पराजय दोनों,

समभाव सहित स्वीकारे।

तू लाभ-हानि, दुख-सुख को,

तज कर आयुध निज धारे।।(52)

 

हे पार्थ! बुद्धि क्या केवल,

है ज्ञान योग की दासी।

जब तक न कर्म सुनिश्चित,

यह केवल धर्म प्रवासी।। (53)

 

हे पार्थ! कहा जो अब तक,

था ज्ञान योग का मंथन।

अब कर्म योग कहता हूँ,

कट सकें कर्म के बंधन ।।(54)

 

है कर्मयोग में अर्जुन,

आरंभ बीज अविनाशी।

फल दोष नहीं कुछ उसमें,

है कालचक्र का नाशी।।(55)

 

निश्चायक बुद्धि अटल है,

इस कर्म योग में अर्जुन ।

स्थिरता नहीं जहाँ भी,

उनके अनेक हैं चिंतन।।(56)

 

क्रमशः

 

-तरुण प्रकाश श्रीवास्तव

 

विशेष :गीत-गीता, श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद है तथा इसमें महान् ग्रंथ गीता के समस्त अट्ठारह अध्यायों के 700 श्लोकों का काव्यमय भावानुवाद अलग-अलग प्रकार के छंदों में  कुल 700 हिंदी के छंदों में किया गया है। संपूर्ण गीता के काव्यमय भावानुवाद को धारावाहिक के रूप में अपने पाठकों के लिये प्रकाशित करते हुये आई.सी.एन. को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

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