गीत-गीता : 12

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

(श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद)

द्वितीय अध्याय (सांख्य योग)

(छंद 43-49)

 

श्रीकृष्ण : ( श्लोक 11-53)

 

स्पष्ट तत्व है इसका,

फिर भी ‌भ्रम डोला करता।

कोई कोई सब सुनकर,

संशय ही खोला करता।। (43)

 

आत्मा अवध्य हे भारत,

हर प्राणी की होती है।

है कहाँ शोक फिर इसमें,

दुनिया नाहक रोती है।।(44)

 

तू धर्म समझ तो अपना,

क्षत्रिय कुल जो धरना है।

हो एक बिंदु पर केंद्रित,

बस धर्मयुद्ध करना है।। (45)

 

खुद स्वर्ग द्वार खुलते हों,

ऐसे अवसर कब आते।

बस भाग्यवान क्षत्रिय ही,

ऐसा सुअवसर पाते।। (46)

 

यदि यह अवसर छोड़ेगा,

तो कीर्ति भ्रष्ट ही होगी।

मर्यादा कुल की अर्जुन,

समवेत नष्ट ही होगी।(47)

 

कहलायेगा तू पापी,

आने वाली संतति में।

अपकीर्ति कहाँ छोड़ेगी,

तुझको तेरी सद्गति में।।(48)

 

जिनमें है तू सम्मानित,

तुझको कब तक मानेंगे।

भय से यह युद्ध तजा है,

वे केवल यह जानेंगे।।(49)

 

क्रमशः

 

-तरुण प्रकाश श्रीवास्तव

 

विशेषगीत-गीता, श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद है तथा इसमें महान् ग्रंथ गीता के समस्त अट्ठारह अध्यायों के 700 श्लोकों का काव्यमय भावानुवाद अलग-अलग प्रकार के छंदों में  कुल 700 हिंदी के छंदों में किया गया है। संपूर्ण गीता के काव्यमय भावानुवाद को धारावाहिक के रूप में अपने पाठकों के लिये प्रकाशित करते हुये आई.सी.एन. को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

 

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