तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
ख़ुशबू न जाने कितने रंगों, कितने अहसासों, जज़बातों, ख़यालों और यादों को बाँधे रहती है। कई बार तो ये ख़ुशबू हमारी जज़बाती जिस्म की आँख तक बन जाती है और एक अदद ख़ुशबू न जाने ख़यालों में हमें क्या-क्या दिखा जाती है।
बारिश की कच्ची मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू कभी हमें अपने बचपन के गाँव में पहुँचा देती है तो कभी चमेली और रातरानी की ख़ुशबू अपने पिया की नगरी में। गुलाब की ख़ुशबू नेहरू की शेरवानी में टँके फूल से सुहाग की सजी सेज तक यात्रा करती है। महकता हरसिंगार न जाने कितनी प्रेमकहानियों का गवाह है और महबूब की अपनी अलग ख़ुशबू ही उसकी आमद का पैग़ाम बन जाती है। फूल तो महज़ एक यात्रा है – मंज़िल तो ख़ुशबू ही है।
महबूब की यादों की एक विशेष ख़ुशबू है, बीते हुये बचपन की एक बिल्कुल अलग ख़ुशबू है और हर मौसम की अपनी ही ख़ुशबू है। उर्दू शायरी में ख़ुशबू कुछ इस तरह समायी है कि पूरी की पूरी उर्दू शायरी ही महक उठती है। शायद यह इस ख़ुशबू का ही कमाल है कि मन आपसे उर्दू के अपनी खुशबू चारों तरफ बिखेरते हुये कुछ शायरों के हवाले से ख़ुशबूदार बातें करने का मन है।
अख़्तर शीरानी वर्ष 1905 में जन्मे थे और 1948 में उनका इंतकाल हुआ। अपनी नज़्मों और ग़ज़लों की बदौलत वे आज भी जीवित हैं। महबूब की ख़ुशबू सिर्फ़ उसके जिस्म, उसकी बातों, उसके ख़यालों से ही नहीँ झाँकती है बल्कि यह ख़ुशबू उस हर चीज़ पर तारी रहती है जो उससे होकर गुज़री हो, चाहे वह कोई पुराना ख़त ही क्यों न हो –
“मिट चले मेरी उमीदों की तरह हर्फ़ मगर,
आज तक तेरे ख़तों से तिरी ख़ुशबू न गई।”
महशर बदायुनी कराची, पाकिस्तान के बाशिंदे थे और उनका जीवन वृत्त 1922 से 1994 तक है। वे ख़ुशबू के आशना थे और उनकी शायरी भी महकती हुई शायरी थी। उनका यह मशहूर शेर आपकी नज़र –
“फूल हैं कोई ख़ार नहीं हम, आओ हम में आ बैठो,
ख़ुशबू में आबाद रहोगे, ख़ुशबू ही कहलाओगे।”
भला कौन नहीं जानता है कृष्ण बिहारी नूर को जो उर्दू शायरी के एक ऐसे प्रकाश स्तंभ हैं जिसकी रोशनी बहुत दूर तक पहुँचती है। उर्दू शायरी में ख़ुशबू का ज़िक्र कई हवालों से होता है। कभी जंगलों की ख़ुशबू तो कभी शहरों की ख़ुशबू लेकिन हर बार ख़ुशबू का एक नया ही चेहरा सामने अाता है। उनका यह खूबसूरत शेर देखिये-
“तेज़ हो जाता है ख़ुशबू का सफ़र शाम के बाद।
फूल शहरों में भी खिलते हैं मगर शाम के बाद।।”
उर्दू शायरी के वर्तमान में जो थोड़े से शायर पहली पायदान पर खड़े हैं, ‘बशीर बद्र’ उनमें से एक हैं। ‘बशीर बद्र’ उर्दू शायरी में ग़ालिब के बाद दूसरे शायर हैं जिनके अशआर आम लोगों की ज़ुबान पर सबसे ज़्यादा चढ़े हैं। ख़ुशबू से बशीर बद्र की शायरी का एक ख़ास रिश्ता है –
“मोहब्बत एक ख़ुशबू है, हमेशा साथ चलती है,
कोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता।”
और एक शेर यह भी –
“ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में।
माँगा था जिसे हमने दिन-रात दुआओं में।।”
वसीम बरेलवी उस श्रेणी के शायर है जिनमें शायरी खुद ही घुल मिल जाती है। उन्होंने ख़ुशबू को जिस अंदाज़ में इस्तेमाल किया है, वह प्रयोग अनूठा ही है। ख़ुशबू को महसूस करने के लिये व्यक्ति में संवेदनाओं का जीवित रहना बहुत आवश्यक है। उनके इस खूबसूरत शेर को महसूस कीजिये –
“हमको महसूस किया जाए है ख़ुशबू की तरह,
हम कोई शोर नही हैं जो सुनाई देंगे ।”
डा० राहत इंदौरी आज के सबसे अधिक सुने व पढ़े जाने वाले शायरों में से एक हैं। वे देश के हालात से दुखी होते हैं और वे एक ख़ुशबू और मिठास से भरी फ़िज़ां के तलबगार हैं। तभी तो वे कहते हैं –
“फूलों की दूकानें खोलो, ख़ुश्बू का ब्योपार करो।
इश्क़ खता है,तो ये खता इक बार नहीं,सौ बार करो।”
सरदार सोज़ उर्दू के एक मशहूर शायर हैं जो वर्ष 1934 में जन्मे और वर्तमान में अमरीका में निवास कर रहे हैं। यादो़ं की अपनी अलग ही ख़ुशबू होती है। कितना खूबसूरत शेर है-
“ये उनकी याद की ख़ुशबू भी कैसी खुशबू है,
चली तो आती है, जाने में देर लगती है।”
वर्ष 1952 में पाकिस्तान के कराची शहर में जन्मी शायरा परवीन शाकिर एक अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि का नाम है। वर्ष 1994 में पाकिस्तान के इस्लामाबाद शहर में एक कार दुर्घटना ने उनकी जान ले ली किंतु समय के हिसाब से छोटी उम्र में भी उन्होंने एक बहुत बड़ी ज़िंदगी जी। उनके कई दीवान मंज़र-ए-आम पर हैं जिनमें से ‘इंकार’ व ‘ख़ुशबू’ बहुत मशहूर हैं। वे फ़रमाती हैं –
“वो तू ख़ुशबू है, हवाओं में बिखर जायेगा।
मसअला फूल का है, फूल किधर जायेगा।।”
जनाब राम अवतार गुप्ता ‘मुज़्तर’ एक बेहतरीन शायर हैं। वे वर्ष 1936 में नज़ीबाबाद में जन्मे और उन्होंने उर्दू साहित्य की बहुत खिदमत की। उनका एक शेर ख़ुशबू के हवाले से आपकी नज़र –
“साँसों में जब राह की चाप महकती है,
मन आँगन ख़ुशबू ख़ुशबू हो जाता है।”
सुहैल काकोरवी का नाम उर्दू शायरी में बड़ी बुलंदी पर है। शायरी इनके जिस्म में खून बनकर बहती है। उर्दू, हिंदी, अंग्रेज़ी और फ़ारसी पर समान पकड़ रखने वाले सुहैल काकोरवी अनेकों विधाओं में लिखते हैं। इनकी कई पुस्तकें जैसे ‘आमनामा’, ‘नीला चाँद’, ‘गुलनामा’, ‘ग़ालिब- एक उत्तरकथा’ आदि न केवल मशहूर ही हैं बल्कि इनमें से कुछ किताबें ‘लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स’ व ‘एशिया बुक ऑफ रिकार्ड्स’ में भी दर्ज हैं। आइये, उनसे मिलते हैं उनके ख़ुशबू पर इन अशआर के हवाले से –
“ये तू है या चमेली खिली है अलस सबाह,
खुशबू में वो सिफ़त कि थकन मिट गई मेरी।”
‘अलस सबाह’ का अर्थ है – भोर व ‘सिफ़त’ का अर्थ है- ‘खूबी’।
और एक यह शेर –
“खुशबू बदन से तारी, आँखों से रंग जारी,
लो आ गये वो मुझको, गुलज़ार करने वाले।”
और एक शेर यह भी –
“ख़ुशबू में बस के आज वो निकले हैं इस तरह,
जैसे बहार खेल रही हो बहार से।”
नवाज़ देवबंदी उर्दू शायरी का एक बड़ा नाम है। वर्ष 1956 में जन्मे नवाज़ देवबंदी की शायरी आम अादमी की शायरी है और हर दिल के करीब है। उनके कुछ कलाम कुछ आलातरीन फ़नकारों ने मुहसिकी से सजा कर भी बड़ी खूबसूरती से पेश किये हैं। ‘पहला आसमान’ उनकी एक चर्चित पुस्तक है। ख़ुशबू पर उनका यह शेर तो हर ख़ास-ओ-आम की पसंद है –
“तेरे आने की जब ख़बर महके।
तेरी ख़ुशबू से सारा घर महके।।”
अंजुम लुधियानवी उर्दू शायरी की दुनिया का एक जाना-पहचाना नाम है। ख़ुशबू पर एक निराला ही प्रयोग देखने को मिलता है उनके इस खूबसूरत शेर में जो उनके कद की दास्ताँ खुद कहता है –
“सुनते हैं इक हवा का झोंका,
इक ख़ुशबू को ले भागा है।”
संजय मिश्र ‘शौक’ ने वर्तमान में एक गैरमुस्लिम शायर के तौर पर उर्दू शायरी की जितनी नोक-पलक सँवारी है और इसे जितना और खूबसूरत बनाया है, वह उन्हें इस युग का एक विशिष्ट शायर बना देता है। अपनी मेहनत व प्रतिभा के बल पर वे आज किसी उस्ताद शायर से कम नहीं हैं। वे जो कुछ कहते हैं, ग़ज़ब का ही कहते हैं-
“न जाने कौन सी मंज़िल प जाके दम लेगी।
मिरे कमाल की तेरे जमाल की ख़ुशबू।।
सिमट गई हैं हर इक सम्त मछलियां सारी।
नदी में आई मछेरे के जाल की ख़ुशबू।।”
तश्ना आज़मी उर्दू शायरी में मंचों के हवाले से भी जाने जाते हैं और अपनी किताबों के माध्यम से भी। तरन्नुम और तसुव्वर, दोनों के ही धनी हैं तश्ना आज़मी। ‘चाँद की गवाही’ उनका चर्चित दीवान है। ख़ुशबू उनके लिये भी ख़ास है। आइये, मिलते हैं इस शानदार शायर से –
“दौर ए हाज़िर का ये कैसा? गुलसितां है बोलिये!
फूल तो हर सम्त हैं ख़ुशबू कहाँ है बोलिये!”
और यह शेर –
“जिसने हयात काट दी ख़ुशबू की आस में,
तुर्बत पे उसके फूल महकता है आजकल।”
‘तुर्बत’ का अर्थ है – कब्र।
और एक शेर यह भी –
“बिखेरेंगे वही ख़ुशबू, महकना जिनकी फ़ितरत है,
हर इक पौधा बड़ा होने से सन्दल हो नहीं सकता।”
जनाब मनीष शुक्ला ‘पेशे’ से एक प्रशासनिक अधिकारी हैं लेकिन ‘पैशन’ से एक बेहद संजीदा शायर। मनीष शुक्ला की कलम में वह हुनर है जो लोगों को देर तक बाँधे रहता है। वे ख़ुशबू को अलग-अलग अंदाज़ में परखते हैं। आइये, देखते हैं कि आखिर ख़ुशबू उनके लिये क्या है –
“न जाने कह दिया है क्या हवा ने,
कली ख़ुश्बू से बचती फिर रही है।”
यह शेर भी कितना खूबसूरत है –
“सुनते हैं हम तुमको छूकर ख़ुश्बू आने लगती है,
काश हमारे शाने लगते हम भी संदल हो जाते।”
और यह शेर भी –
“मुसलसल हाफ़िज़े पर वक़्त की चोटें पड़ीं लेकिन,
तिरी ख़ुश्बू सलामत है तिरी बातें सलामत हैं।”
‘मुसलसल’ का अर्थ है – लगातार, ‘हाफिज़ा’ का अर्थ है – स्मृति।
एक शेर यह भी बहुत खूबसूरत है –
“ग़ुुन्चा लाख बचाये दामन,
ख़ुश्बू रुसवा कर जाती है।”
और इसका तो जवाब ही नहीं –
“सारी ख़ुश्बू थी पराई ख़ुश्बू,
हमको रखता था मुअत्तर कोई।”
‘मुअत्तर’ का अर्थ है – सुगंधित ।
मोहम्मद अली साहिल लखनऊ की सरज़मीं के शायर हैं। उच्च पुलिस अधिकारी के ह्रदय में शायरी धड़कती है और उसकी ख़ुशबू दूर तक जाती है। वे सादगी और सफ़ाई से अपनी बात कहते हैं जो निहायत असरदार होती है। ख़ुशबू हर शय का सकारात्मक चेहरा है। वे कहते हैं –
“वो न समझा उसूल की खुशबू।
उसका अंदाज़ ताजिराना था।।”
और,
“वो कभी खुशबू पसीने की समझ सकता नहीं।
अपने कपड़ों पर हमेशा इत्र जो मलता रहा।।”
क्रमशः