गीत-गीता : 1

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

(श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद)

प्रथम अध्याय (अर्जुन विषाद योग)

(छंद 1-7)

 

धृतराष्ट्र : (श्लोक 1)

व्यग्रता है जानने की जो घटा रणक्षेत्र में है ।

कल्पना का चित्र केवल दृष्टि वंचित नेत्र में है।।

युद्ध की उस धर्म-धरती पर सजी क्या हैं बिसातें।

युद्ध को तत्पर, जो न उत्साह से फूले समाते।। (1)

 

पुत्र मेरे श्रेष्ठ हैं कुरुवंश के उद्दाम योद्धा।

शीर्ष अनगिन सम्मिलित निज सैन्यदल में हैं पुरोधा।।

देखते जो दिव्य नयनों से, मुझे बतलाओ,संजय!

पाण्डु पुत्रों की दशा विस्तार से समझाओ,संजय!! (2)

 

संजय : (श्लोक 2)

आपके आदेश का पालन सुनिश्चित कर रहा हूँ।

दृष्टि को मैं शब्द चित्रों में सजा कर धर रहा हूँ।।

वज्र के है व्यूह में सेना सुसज्जित पांडवों की।

नापते हैं शक्ति दुर्योधन समेकित कौरवों की।। (3)

 

देखते हैं शत्रु के वे सैन्य का विन्यास राजन्।

भाल पर चिंतन सहेजे, नेत्र में विश्वास राजन्।।

और द्रोणाचार्य की वे ओर बढ़ते हैं निरंतर।

है सधा हर एक पग जो भूमि धरते हैं निरंतर।। (4)

 

दुर्योधन : (श्लोक 3-11)

श्रेष्ठ ब्राह्मण,देखिये आचार्य, पांडव सैन्य भारी।

व्यूह रचना वज्र की रण में द्रुपदसुत ने संवारी।।

हैं धनुर्धारी जगत के श्रेष्ठ सेना में समाहित।

भीम अर्जुन बांकुरों से है विशद् यह सैन्य रक्षित।।(5)

 

सात्यकी, पुरुजित, द्रुपद, व कुन्तिभोज, विराट जैसे।

धृष्टकेतू, शैव्य, चेकीतान, काशीराज वैसे।।

युधामान्यु, उत्तमौजा और अभिमन्यु सरीखे।

श्रेष्ठ योद्धा द्रौपदी के पुत्र दल के साथ दीखे।। (6)

 

ये सभी हैं वीर, इनका है पराक्रम जगमगाता।

कोई भी है मृत्यु के भय से न किंचित डगमगाता।।

हे महामन्, पाण्डु सेना का किया वर्णन सुनिश्चित।

डालते हैं निज सबल विस्तार पर भी दृष्टि किंचित।।(7)

 

(क्रमशः)

 

-तरुण प्रकाश श्रीवास्तव

 

विशेषगीत-गीता, श्रीमद्भागवत गीता का काव्यमय भावानुवाद है तथा इसमें महान् ग्रंथ गीता के समस्त अट्ठारह अध्यायों के 700 श्लोकों का काव्यमय भावानुवाद अलग-अलग प्रकार के छंदों में  कुल 700 हिंदी के छंदों में किया गया है। संपूर्ण गीता के काव्यमय भावानुवाद को धारावाहिक के रूप में अपने पाठकों के लिये प्रकाशित करते हुये आई.सी.एन. को अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

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