“इंद्रियो पर नियंत्रण करने का अभ्यास” अथवा “इंद्रियो पर विजय पाने का अस्त्र” है “रोज़ा”

एज़ाज़ क़मर, एसोसिएट एडिटर-ICN
नई दिल्ली: रोज़ा का मतलब सिर्फ खाना पीना छोड़ देना नही है, बल्कि वचन और कर्म से हिंसा करना, असत्य बोलना, अभद्र भाषा और अश्लील शब्दो का उपयोग करना, फालतू बहस करना भी वर्जित है, घमंड, ईर्ष्या, क्रोध और वासना पर नियंत्रण करना अति आवश्यक है।
(सहल बिन साद ने सुनाया, कि पैगंबर साहब ने कहा, “जो कोई भी मुझे जांगो के बीच (उसके निजी अंगो) और जबड़े के बीच (उसकी जीभ) की परहेज़गारी (पवित्रता) की ज़मानत (गारंटी) देता है, मै (उसको) स्वर्ग की ज़मानत (गारंटी) देता हूं”।
(साही बुखारी नंबर 6807)}
पैगंबर साहब ने यह मूलमंत्र बार-बार दोहराया है, कि अपने ‘ज़बान और शर्मगाहो पर संयम रखो’, अधिकतर अपराध इन दोनो अंगो के कारण ही होते है, जिस तरह पेट सारी बीमारियो की जड़ है, उसी तरह झूठ सारी बुराइयो की जड़ है और झूठ ज़बान से ही बोला जाता है।
{अबू हुरैरा ने सुनाया, कि पैगंबर साहब ने कहा; “यदि कोई व्यक्ति झूठ बोलना बंद नही करता है और झूठ पर अमल करना नही छोड़ता है, तो अल्लाह को (उसे) खाने और पीने से रोकने की कोई हाजत (ज़रूरत) नही है”।
(बुखारी, किताब अल-सूम, संख्या 1903)}
[“….झूठ तो बस वही लोग घड़ते है, जो अल्लाह की आयतो को मानते नही और वही है, जो झूठे है”।
(कुरान 16:105)]
[“….अल्लाह उसे मार्ग नही दिखाता, जो झूठा और बड़ा अकृतज्ञ हो”।
(कुरान 39:3)]
[“….फिर मिलकर प्रार्थना करे और झूठो पर अल्लाह की लानत भेजे”।
(कुरान 3:61)]
[“….. यदि वह झूठा हो तो उस पर अल्लाह की फिटकार (लानत) हो”।
(कुरान 24:7)]
झूठ के बाद इस्लाम मे ज़बान से किये जाने वाला सबसे नीच कर्म “निंदा’ (ग़ीबत) करना और आरोप (बोहतान) लगाना है।
[“ऐ ईमान लाने वालो! बहुत से गुमानो से बचो, क्योकि कतिपय गुमान गुनाह होते है। और न टोह मे पड़ो और न तुममे से कोई किसी की पीठ पीछे निन्दा करे, क्या तुममे से कोई इसको पसन्द करेगा कि वह मरे हुये भाई का मांस खाए?
वह तो तुम्हे अप्रिय होगा ही।और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह तौबा क़बूल करने वाला, अत्यन्त दयावान है”।
(कुरान 49:12)]
इस्लाम मे झूठ के बाद ग़ीबत (निंदा) आचरण मे दूसरा बड़ा दोष माना गया है, ग़ीबत (निंदा) मे दूसरे व्यक्ति की आलोचना करने के अतिरिक्त, इशारो से उसका मजाक उड़ाना, उपनाम से उसका मजाक बनाना, गपशप करना, चुगलखोरी करना, अभद्र-अश्लील भाषा का उपयोग करना और चोरी-छिपे किसी की बात सुनकर तथा सुगंध-दुर्गंध सूंघकर उसके रहस्यो को समाज के सामने उजागर करना (जासूसी करके राज़ फाश करना) भी शामिल है।
[“….जो लोग चाहते है कि उन लोगो मे जो ईमान लाए है, अश्लीलता फैले, उनके लिए दुनिया और आख़िरत (लोक-परलोक) मे दुखद यातना हैऔर (जो) अल्लाह जानता है और (वह) तुम नही जानते”।
(कुरान 24:19)]
{अल-बहाकी ने लिखा, कि सूफियान इब्ने उय्यना ने बताया था, कि पैगंबर साहब ने कहा; “अल्लाह के लिये ग़ीबत (निंदा) नशा करने और शराब पीने से भी बदतर है, क्योकि नशा करना और शराब पीना तुम्हारे और तुम्हारे रब के बीच एक गुनाह है, यदि आप उससे पश्चाताप करते है, तो अल्लाह आपके पश्चाताप को स्वीकार करेगा।ग़ीबत (निंदा) तब तक माफ नही की जाती है,जब तक कि पीड़ित आपको माफ  नही करता”।
(शुऐब अल-इमान 6229)}
{अबू हुरैरा ने बताया, कि पैगंबर साहब ने कहा; “क्या आप जानते है कि ग़ीबत (निंदा) क्या है?”
हमने कहा, “अल्लाह और उसके पैगंबर बेहतर जानते है”, पैगंबर साहब ने कहा, “अपने भाई का ज़िक्र (उल्लेख) इस तरह से करना जो उसे नापसंद हो”, उनसे यह कहा गया, कि “आप क्या सोचते है, अगर मैने उसके बारे मे जो कहा है वह सच है?”
पैगंबर साहब ने कहा; “यदि आप उसके बारे मे जो कहते है और वह सच है, तो ही यह ग़ीबत (निंदा) है, अगर यह सच नही है, तो यह बोहतान (आरोप) है”।
(सही मुस्लिम संख्या 2589)}
{क़ैस ने बताया, कि अमर इब्ने अल आस ने सुनाया, कि हम पैगंबर साहब के साथ एक मरे हुये गधे के सामने से गुज़रे तो पैगंबर साहब ने कहा; “यदि तुम मे से कोई खाना चाहे, तो इस गधे का मांस पेट भर कर खा सकता है,क्योकि यह अपने भाई का मांस खाने से बेहतर है” (निंदा करना, मनुष्य का मांस खाने के बराबर है)।
(मुसन्नफ इब्ने अबी शैबा संख्या 24950)}
[{एक बार जब एक महिला बीवी आयशा से मिलने उनके घर आई और जब वह जाने के लिए उठी, तो उसकी सूचना पैगंबर साहब को देने और उसकी पहचान  बताने के लिये बीबी आयशा ने ‘हाथ से इशारा किया’, कि ‘नाटे कद वाली (छोटे कद वाली) औरत’।
पैगंबर साहब ने बीवी आयशा को उनकी गलती का एहसास कराते हुये कहा; कि “तुमने ग़ीबत (निंदा) करी!”
एक अन्य हदीस के अनुसार पैगंबर साहब ने इस घटना पर कहा; “आपने एक (इतनीे ग़लत) बात करी है, कि अगर उसे समुद्र के पानी साथ मिलाया जाये, तो इससे उसका (समुद्र) रंग बदल जायेगा” (अर्थात यह बुराई पूरे समाज को खराब कर सकती है)।}
{तफ़्सीर अल-कुरआन अल-अज़ीम मे इब्ने ज़रीर द्वारा उल्लेख किया गया, खंड 4, पृष्ठ 328 (30) और सुनन अबू दाऊद (3/4857)}]
इस्लाम के अनुसार मनगढ़ंत बात करना, अफवाह फैलाना, आरोप लगाना, आलोचना करना या किसी भी तरीके से दूसरे व्यक्ति का अपमान करना अपराध तथा पाप है।
[“….और जिस चीज़ का तुम्हे ज्ञान न हो उसके पीछे न लगो। निस्संदेह कान और आँख और दिल इनमे से प्रत्येक के विषय मे पूछा जाएगा”।
(कुरान 17:36)
इसका भावार्थ है, कि “मनगढ़ंत बात” नही करना चाहिये]
[“….और जब वे व्यर्थ बात सुनते है, तो यह कहते हुए उससे किनारा खींच लेते है, कि हमारे लिए हमारे कर्म है और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म है। तुमको सलाम है! जाहिलो को हम नही चाहते”।
(कुरान 28:55)
इसका भावार्थ है, कि फालतू बात (Gossip) करना और सुनना नही चाहिये।ऐसे स्थान जहां फालतू बात हो रही है, वहां से तुरंत हट जाना चाहिये अथवा चर्चा से अपने आपको अलग कर लेना चाहिये]
[ऐसा क्यो न हुआ कि जब तुम लोगो ने उसे सुना था, तब पुरुष और स्त्रिया अपने आपसे अच्छा गुमान करते और कहते कि “यह तो खुली तोहमत है?”
(कुरान 24:12)]
[“सोचो, जब तुम एक-दूसरे से उस (झूठ) को अपनी ज़बानो पर लेते जा रहे थे और तुम अपने मुँह से वह कुछ कहे जा रहे थे, जिसके विषय मे तुम्हे कोई ज्ञान न था और तुम उसे एक साधारण बात समझ रहे थे; हालाँकि अल्लाह के निकट वह एक भारी बात थी”।
(कुरान 24:15)]
[ “ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो!
यदि कोई अवज्ञाकारी तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आए तो उसकी छानबीन कर लिया करो।कहीं ऐसा न हो कि तुम किसी गिरोह को अनजाने मे तकलीफ़ और नुक़सान पहुँचा बैठो, फिर अपने किये पर पछताओ”।
(कुरान 49:6)
कुरान का फरमान है कि अफवाहो, पर बिल्कुल ध्यान ना दे]
[“तबाही है हर कचोके लगाने वाले (उच्छृंखल), ऐब निकालने वाले के लिए”।
(कुरान 104:1)]
इस्लाम के अनुसार आरोप लगाना, निंदा करना या किसी भी तरीके से चरित्र हनन करना पाप है]
हजरत मोहम्मद साहब (ﷺ) ने फरमाया; कि “गपशप करने वाला कभी जन्नत (स्वर्ग) मे दाखिल (प्रवेश) नही हो सकता है”।
(सही बुखारी संख्या 8/82, सही मुस्लिम संख्या 1/187 और मुसनद अहमद बिन हम्बल)}
ज़बान सामाजिक जीवन मे खलनायक की भूमिका अदा करती है,क्योंकि झूठ, ग़ीबत, आलोचना, आरोप-प्रत्यारोप, गाली-गलौज, अश्लीलता जैसी बुराइयां ज़बान के कारण ही पैदा होती है,
रोज़ा मे सबसे बड़ी परीक्षा ज़बान की ही होती है।एक तरफ तो उसे भोजन के स्वाद से वंचित रहना होता है,दूसरी तरफ उसे शब्दो पर नियंत्रण करना होता है,इसलिये एक रोज़दार की सफलता इस बात पर अधिक निर्भर करती है,कि वह कितनी देर तक मौन धारण कर सकता है।
{अब्दुल्ला इब्ने अम्र ने बताया; पैगंबर साहब ने कहा; “जो ख़ामोश है, वह बच गया है।”
(सुनन अल-तिर्मिदी संख्या 2501)}
{हज़रत मुहम्मद साहब (ﷺ) ने कहा; कि “जब आदमी प्रत्येक दिन सुबह उठता है, तो शरीर के सभी हिस्से जीभ को चेतावनी देते हुये कहते है, अल्लाह से डरो, क्योकि हम तुम्हारी दया पर है, यदि तुम सही (ईमानदार साबित) हुई, तो हम सही (ईमानदार साबित) होगे और अगर तुम कुटिल (साबित) हुई, हम भी कुटिल (साबित) हो जायेगे”।
(सुनन तिर्मिज़ी संख्या 2408)}
{पैगंबर साहब से पूछा गया, कि सबसे अच्छा मुस्लिम कौन है?
पैगंबर साहब ने कहा; “वह है! जिनकी ज़बान और हाथो की शैतानियत (बुराई) से लोग सुरक्षित रहे”।
(सुनन नसई संख्या 11726)}
{अब्दुल्ला इब्ने अम्र ने बताया, मैने पैगंबर साहब के सामने एक व्यक्ति का उल्लेख किया, कि “यदि उसे खिलाया जाता है, तो ही वह खाता है!जब उसे हिलाया जाता है, तो वह हिलता (आगे बढ़ता) है!”
“पैगंबर साहब ने कहा; “तुमने ग़ीबत करी है”।
मैने कहा, “मैने उसके बारे मे सिर्फ़ सच कहा है”।
पैगंबर साहब ने कहा; “अपने भाई के बारे मे सिर्फ़ ग़लत (बुरी) बात का उल्लेख करना ही पाप करने के लिये काफी है”।
एक अन्य कथन मे पैगंबर साहब ने कहा; “अगर आपने उसके बारे मे जो कहा वह सच नही था, तो  आपने बोहतान किया अर्थात आरोप लगाया”।
(मसनद अब्दुल्लाह इब्ने अल-मुबारक 2)}
घृणा, ईर्ष्या, क्रोध, घमंड, अहंकार जैसे विकार रावण जैसे विद्वान और बलवान व्यक्ति का भी विनाश कर सकते है,इसलिये रमज़ान मे रोज़ा के माध्यम से इन विकारो पर सफलता से विजय पाई जाती है.रोज़ा खराब ना हो जाये?इस डर से रोज़दार किसी भी तरह के संघर्ष, ईर्ष्या और घृणा से बचता है,क्योकि उसे पता है कि राई के दाने के बराबर भी घमंड होगा तो वह स्वर्ग मे नही जा सकता,इसलिये वह क्रोध, घमंड और अहंकार को त्याग देता है।
{अबू हुरैरा द्वारा वर्णित, एक व्यक्ति ने पैगंबर साहब से कहा, मुझे सलाह दीजिये!
पैगंबर साहब ने कहा; “क्रोधित और उग्र मत बनो”,उस आदमी ने (एक ही बात) बार-बार यही पूछा और पैगंबर साहब ने हर बार यही बार कहा; “क्रोधित और उग्र मत बनो”।
(सही बुखारी पुस्तक 73, संख्या 137)}
{अबू हुरैरा ने बताया, कि पैगंबर साहब ने कहा; “मज़बूत आदमी वह नही होता जो अच्छी तरह से कुश्ती लड़ता है, लेकिन मज़बूत आदमी वह है, जो गुस्से मे भी खुद को नियंत्रित रखता है”।
(सही मुस्लिम पुस्तक 32, संख्या 6313)}
{अबूज़र द्वारा वर्णित; पैगंबर साहब ने कहा; “जब आप मे से कोई एक क्रोधित हो और खड़ा हुआ हो, तो उसे बैठ जाना चाहिये।अगर गुस्सा (क्रोध) उसे छोड़कर चला जाये तो बहुत अच्छा है और वरना उसे लेट जाना चाहिये”।
(अबू दाउद संख्या 4764)}
[“और याद करो जब हमने फ़रिश्तो से कहा कि ‘आदम को सजदा करो’ तो, उन्होने सजदा किया सिवाय इबलीस के; उसने इनकार कर दिया और लगा बड़ा बनने और ….”।
(कुरान 2:34)]
{हसन ने बताया, अबु दर्दा ने सुनाया था, कि पैगंबर साहब ने कहा; “जो दूसरो को देखकर हर मामले मे अहंकार करता है, उसका ग़म बढ़ता जायेगा और उसका गुस्सा कभी ठीक नही होगा”।
(अल मुदाराह अल नास 27)}
{अबू हुरैरा ने बताया; पैगंबर साहब ने कहा; “हसद” (ईर्ष्या) से सावधान रहो, क्योकि यह अच्छे कार्यो को भस्म करता है, जैसे आग लकड़ी या घास को जलाकर भस्म करती है”।
(सुनन अबू दाऊद 4903)}
{जुबैर इब्ने अल-अवाम ने बताया; कि पैगंबर साहब ने कहा; “तुमसे पहली वाली कौमो (राष्ट्रो) पर भी यह बीमारी आई है, ईर्ष्या और घृणा।यह सफाया कर देने वाली (हज्जाम) है,मैं यह नही कहता कि यह बालो को साफ करती है, लेकिन यह ईमान को साफ कर देती है (नष्ट कर देती है)”।
(जामी-तिर्मिदी संख्या 2434)}
{अब्दुल्ला इब्ने अब्बास ने सूचना दी, कि पैगंबर साहब ने कहा; “जो कोई भी चोरी छुपे उन लोगो की बाते सुनता है, जो लोग उससे बचते है या उसे नापसंद करते है, कयामत के दिन उसके कान मे पिघला हुआ सीसा डाला जायेगा”।
(सही बुखारी संख्या 7042)}
{अनस बिन मलिक ने बताया, पैगंबर साहब ने कहा; “नफरत, हसद (ईर्ष्या) और दुश्मनी मत पालो, आपस मे साथी (दोस्त) बन कर रहो।यह मुस्लिमो के लिये जायज़ (वैध) नही है, कि वह तीन दिनो से ज़्यादा अपने भाईयो के साथ अपने ताल्लुक़ातो (संबंधो) को बरतारफ़ (विच्छेद) रखे”।
(साही मुस्लिम नंबर 6205)}
{हजरत मोहम्मद साहब (ﷺ) ने कहा; ‘कि वह कोई भी जहन्नम (आग) मे दाखिल नही होगा, जिसके दिल मे सरसो के बीज के बराबर ईमान है और वह कोई भी जन्नत मे दाखिल नही होगा, जिसके दिल मे सरसो के बीज के बराबर तकव्वुर (घमंड) है”।
(सही मुस्लिम पुस्तक 01, संख्या 0165)}
इस्लाम मे सन्यास की अवधारणा नही है.इसलिये मुसलमानो को गृहस्थ जीवन मे रहते हुये ही साधु-संतो जैसा जीवन जीना होता है,किंतु काम, क्रोध, मोह, माया, अहंकार आदि विकारो मे फंसकर मनुष्य आचार संहिता का उल्लंघन करता रहता है,इसलिये इस्लाम वर्ष मे एक महीना (रमज़ान) उसे सूफी-संतो जैसा जीवन जीने का अभ्यास करवाता है।
एज़ाज़ क़मर (रक्षा, विदेश और राजनीतिक विश्लेषक)

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