माँ की सूचना।

By: C.P. Singh, Literary Editor-ICN Group

मेरे- आंसू, दूर देश में, जब गिरे धरती- माँ पर ।

बिन- चिट्ठी, दुःख- सूचित-माँ का, घर में भीगा- आँचल ।

माँ, मेरी-जननी- बनि, दुख- सहती- जीवन- भर ।

संतति को खुशियाँ मिलें, जप- करती- जीवन- भर ।
निज- उसका, कुछ भी नहीं,सब- निर्भर- जातक- पर ।
बच्चे का –मन- मुदित देखकर, खुश रहती ममता भर ।

मेरे- आंसू, दूर देश में, जब गिरे धरती- माँ पर ।

धरती- माँ, धरती हमें, निज- अंकन- जीवन- भर ।
हम कुछ भी उस पर करें, सब सहती दुःख तज कर ।
हम, जीवन के हर वांछित हित, निर्भर-धरती- माँ पर ।
सब- वांछित- पूरण करती-नित, जीवन- दायी बन कर ।

मेरे- आंसू, दूर देश में, जब गिरे धरती- माँ पर ।

जननी- माँ, पल- पल रटती है, संन्तति के सुख- हित कर ।

कारणवश, संतति यदि बिछुड़े, सुधि-रखती- निसि- दिन- भर ।
तार- रहित, संन्चार विदित है, माँ – सुत के मध्यांन्तर ।
वह तो बस, संतति- सुख चाहे, पल छिन बाट जोह- कर ।

मेरे- आंसू, दूर देश में, जब गिरे धरती माँ पर ।

दोनो हैं, देवकी- यसोदा, जननी- धरनी- मिलकर ।
जननी है देवकी माँ जग की, धरनि- यसोदा बनकर ।
मम- आंसू, धरनी पर गिर कर, सम्वेदन सूचित कर ।
जननी- जुड़ि- सूचित रहती है, मम- दुःख दर्द को पढकर ।
मेरे- आंसू, दूर देश में, जब गिरे धरती माँ पर ।

बिन- चिट्ठी, दुःख- सूचित-माँ का, घर में भीगा- आँचल ।

क्रमशः

 

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