कोरोना त्रासदी में घर वापसी

सत्येन्द्र कुमार सिंह, संपादक-ICN U.P.

यूँ तो पूरा विश्व इस वक्त कोरोनो महामारी से ग्रस्त है और लगभग हर जगह त्राहिमाम वाली स्थिति है किन्तु इन सब के बीच में घर वापसी का एक नया दौर और नई परिभाषा भी सामने आई है.देश भर से पलायन किये हुए मज़दूर बन्धु इस वक्त येन केन प्रकारेन अपने गृह प्रदेश व जिले में वापस जा रहे हैं. इसका वृहद् असर तो कोरोना की समाप्ति के बाद ही मिलेगा किन्तु इसका असर भविष्य में देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ना अवश्यंभावी है.जहाँ भी सम्भव हुआ वहाँ वर्क-फ्रॉम-होम का अनुपालन हुआ. इससे बेहतर क्या हो सकता है कि घर की चाय हो और ऑफिस का कार्य भी अपनी सहूलियत से हो!और फिर सबसे बड़ी उपलब्धि तो प्रकृति की घर वापसी की हुई. सोशल मीडिया पर वायरल होती तस्वीरों को देखें तो कहीं बाघ सड़क पर चहलकदमी कर रहे हैं तो कहीं पड़ोस के पार्क में चिड़ियों का बसेरा. जाने कितने अरसो बाद तो गौरेया की आवाज़ों से नींद खुलना शुरू हुआ है.दूर पहाड़ों की चोटिओं के दर्शन भी घर पर बैठ कर लोग दो सौ किलोमीटर से कर पा रहे हैं. और जो चमक ध्रुव तारे की अब दिख रही है वह तो उस बालक के चेहरे के तेज की तरह है जो गर्मी की छुट्टियों में दादी के पास वापस गाँव आया हो.पेड़ो की हरीतिमा भी बढ़ी है. और गंगा यमुना भी अपनी पुरानी रवानी में हैं. जीव जन्तु भी इंसानी अतिक्रमण से मुक्त हो अपने पुराने जगह पर विचरण कर पा रहे हैं.ग्रामीण स्तर पर स्वरोज़गार की स्थिति भी तो घर वापसी का ही द्योतक ही तो है. कोरोना वीरों का जो सम्मान आम जनमानस के भावों से दिख रहा है वही तो असली भारत की बुलंद तस्वीर है न. देश के संकट के समय जो एका दिख रही है वह भी कुछ समय के लिए कहीं छिपी हुई सी प्रतीत हो रही थी. आज फिर वह सबके समक्ष प्रस्तुत है.बच्चों को पापा का समय अधिक मिल रहा है. पुराने धरावाहिक जो भारतीय संस्कृति को दिखाते थे आज फिर सबके समक्ष है.न जाने कितने दिनों बाद किसानों के ताज़ा सब्जियों का स्वाद वापस मिला है वह भी कम दामों पर. फ़िलहाल तो बहुत से बकरे व मुर्गे भी खैर मना पा रहे हैं. उनकी स्थिति भी ओज़ोन लेयर जैसी हो गई है जो अपने दर्द को कुछ समय के लिए पाटने में सफल हो गई है.कुल मिला कर संकटकाल में घरवापसी का नूतन परिदृश्य दिल को सुकून देने वाला है. अब देखना है कि यह फुर्सत के रात दिन कब तक बने रहते हैं. भौतिकवाद की अंधी दौर को फ़िलहाल तो अल्प विराम मिला ही है. सम्भवत: भविष्य में सुकून और भौतिकता के बीच में एक उचित समन्वयव बनेगा इसकी उम्मीद होनी चाहिए.
फ़िलहाल तो इस घरवापसी के मज़े तो चाय की चुस्कियों के साथ एन्जॉय कीजिए.

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