कोरोना वायरस : सन्नाटे में साँस-3

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप

आज हम सब अपने-अपने घरों में कैद हैं और टेलीविजन व अन्य माध्यमों से अपने वर्तमान को परख रहे हैं। मोबाईल व इंटरनेट जैसी सुविधाओं की यदि खोज न हुई होती तो शायद यह पता ही नहीं चल पाता कि कौन अपने घर में है, कौन हास्पिटल में और कौन कब्रिस्तान में। हम अपनी चिंताओं व दुश्चिंताओं के मध्य कभी समय के एक किनारे से टकराते हेैं तो कभी दूसरे।

मो० तौसीफ़ हमारे परिवार के वे सदस्य हैं जिनसे हम सब बेपनाह प्यार करते हैं। उनके बारे में हम सब एकमत हैं कि जिस साँचे में वे ढाले गये हैं, ईश्वर उस साँचे को कभी-कभी ही इस्तेमाल करता है। वे हमारे लीगल प्रिपरेशन विभाग के प्रमुख एवं ICN उत्तर प्रदेश के डिप्टी ब्यूरो चीफ हैं और उनकी सदाबहार मुस्कान में ईश्वर मुस्कराता है। वे उस बिंदु पर अडिग खड़े हैं जहाँ पर कोई भी व्यक्ति हिंदू या मुसलमान न रहकर मात्र इंसान बन जाता है। हमें उन पर गर्व है। इस वैश्विक त्रासदी पर वे कहते हैं,- “कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी को विश्व में फैलते हुए देखने पर लगा कि मानो मानव जीवन समाप्त हो रहा है, जीवन की रफ़्तार धीमी पड़ती जा रही है और हम सभी अपने घरों में कैद हो गए हैं परंतु यह बड़ा सच है कि जीवन कभी ठहरता नहीं है। ऐसी भयावह स्थिति में भी मनुष्य को ज़िंदगी के सफ़र में नैतिक एवं मानवीय उद्देश्यों के प्रति मन में अटूट विश्वास होना ज़रूरी है। कहा जाता है- आदमी नहीं चलता, उसका विश्वास चलता है। सकारात्म सोच ही हमारी सबसे प्रबल शक्ति है जो कोरोना से लड़ने में हमारे लिए कारगर साबित हो सकती है। लॉक डाउन के आरंभ होने के बाद प्रकृति पर पड़े प्रभाव का असर साफ़ देखा जा सकता है। नदियों का पानी साफ़ होने लगा है, काला आसमान अब नीला दिखाई पड़ने लगा है और तारों की चमक के साथ-साथ चाँद की चांदनी मानो बढ़ सी गयी है। सकारात्मक रह के बड़े से बड़ा युद्ध जीता जा सकता है। लॉक डाउन जैसी स्थिति में जब हम अपने घरों में बंद हैं, इसका उपयोग भी सही जगह करिये। अगर आपमें कोई बुरी लत है तो उसे इस अवधि में अवश्य छोड़ा जा सकता है। परिवार के साथ रहें, खुश रहें, गेम खेलें, राइटिंग करें और अपने अंदर छिपे हुए गुणों को खुद को पहचानने का मौका दें। ‘गेटे’ की प्रसिद्ध उक्ति है कि जब कोई आदमी सही काम करता है तो उसे पता तक नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है।”

तुमने बिल्कुल सही कहा प्रिय तौसीफ़ कि सकारात्मक रह कर दुनिया का बड़े से बड़ा युद्ध जीता जा सकता हेै। भारत भले ही अल्पविकसित व निर्धन देश हो किंतु राम, कृष्ण, गौतम व गाँधी सरीखे महापुरुषों की इस पावन धरती से जब-जब ज्ञान की बयार बही, सारा विश्व उस केसर में लहलहा उठा। तभी तो अल्लामा इकबाल ने कहा था – “सारे जहाँ से अच्छा, हिंदोस्ताँ हमारा।”

प्रिय अब्दुल वली अंसारी हमारे लीगल प्रिपरेशन विभाग के एक अन्य वरिष्ठ सदस्य हैं और ईश्वर ने मेहनत और अनुशासन तो इनमें कूट-कूट के भरा है। कितनी गति है उनके कार्य में, मैं तो प्रायः अचंभित हो जाता हूँ। शांति प्रिय वली बहुत कम बोलते हैं किंतु जब बोलते हैं तो कुछ अनूठा ही बोलते हैं। ज़रा देखें तो, भला आज वे इस आपदा को‌ किस रूप में देख रहे हैं, -“जब हम अपनी सोसाईटी में रहते हैं तो हमें अपने बारे में सोचने का मौका कम मिलता है और हम प्राय: दूसरों के विषय में ही सोचते रह जाते हैं। इस बीच में जो लाक डाउन हुआ, इसमें बहुत सी चीज़ें ऐसी हैं जो हमें अपने बारे में विश्लेषण करने का अवसर देती हैं। उम्मीद है कि यह लॉक डाउन जल्दी खुलेगा क्योंकि वक़्त हमेशा एक सा नहीं रहता और वक्त़ की सबसे बड़ी खूबी यह है की वक़्त गुज़र जाता है चाहे वो अच्छा हो या बुरा। इन सबके बीच कोरोना का सकारात्मक पहलू यह है कि वह प्रदूषण जिसने पूरे देश का पर्यावरण ही बिगाड़ रखा था, अब शून्य पर आ गया है। हमें वे तरीके ढूँढने पड़ेंगे कि प्रदूषण कैसे कम हो। अगर लोग विश्लेषण करके किसी तरह नतीजे पर पहुंचे और काफ़ी हद तक हम पहुंचे भी हैं, और उन नतीजों के अनुसार जहाँ तक हमसे होगा कि जो चीजें प्रदूषण बढ़ाती हैं, हम उन्हें कम से कम करेंगे।”

तुम्हारा आँकलन बिल्कुल सही है प्रिय वली। हमने कभी नहीं सोचा था कि हमारे आस-पास कभी इतनी स्वतंत्रता से गाती हुई रंग-बिरंगी चिड़ियाँ हमें देखने का सौभाग्य मिलेगा, कभी हम जान सकेंगे कि आकाश का रंग अभी भी नीला है और हमारे इर्द-गिर्द हरियाली ही हरियाली है। शायद समय ने हम सबको अनायास ही किसी मासूम बच्चे के खूबसूरत कल्पना लोक में पहुँचा दिया है।

राहुल सोनकर हमारे एक्सीक्यूशन विभाग के सदस्य हैं। युवा ऊर्जा से परिपूरित व पूरी तरह चुस्त व मुस्तैद। कोरोना संकट के प्रति पूरी तरह सजग, सतर्क व सावधान। कहते हैं, “प्यारे देशवासियों, इस समय हमारे प्यारे देश की स्थिति ठीक नहीं है। यह समय सरकारी आदेशों का अक्षरश: पालन करने का है। यदि हम सुरक्षित रहेंगे तो देश सुरक्षित रहेगा।”

सही कहा प्रिय राहुल! हम घर में रह कर भी सीमा के जवानों की तरह इस अदृश्य दुश्मन से जंग लड़ेंगे और जीतेंगे।

अंत में मैं आपका परिचय हमारे समस्त विभागों के मुख्य को-आर्डीनेटर व जनरल मैनेजर कपिल श्रीवास्तव से करवाता हूँ। हम सब इन्हें सम्मान से ‘कपिल सर’ कहते हैं। ये वाह्य व आंतरिक कार्य प्रबंधन में बेजोड़ हैं और कार्य निपुणता व अपूर्व उत्साह से परिपूर्ण कपिल सर की आर्थिक दृष्टि भी रेखांकित किये जाने योग्य है। आइये, इस वैश्विक त्रासदी में भारतवर्ष के परिपेक्ष्य में उनके विचारों से अवगत होते हैं, – “आज हमारा देश कोरोना वायरस की समस्या से जूझ रहा है। कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए पहले ‘जनता कर्फ्यू’ और दो दिनों के बाद ‘इक्कीस दिनों के लाक डाउन’ की घोषणा कर दी गयी। इक्कीस दिनों के लाक डाउन से ही देश की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गयी है। अब द्वितीय चरण में दो सप्ताह का दूसरा लाक डाउन और होने जा रहा है लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स से भारतीय अर्थ व्यवस्था कराह उठी है। घोषित लाक डाउन में ज़रूरी सेवाओं के अलावा अन्य सभी प्रकार की सेवाएं बंद कर दी गयी हैं। कारोबार थम गया है। कोरोना वायरस के चलते पैदा हुए विचित्र हालात ने मानो अर्थ व्यवस्था का पहिया जाम कर दिया है। सभी लोग अपने-अपने घरों में बंद हैं और दुकानों व कार्यालयों में ताले लगे हुए हैं। घरेलू कम्पनियों व संस्थानों में आय व लाभ दोनों पर इस तेज गिरावट का असर होने से  देश की आर्थिक वृद्धि व रोजगार पर भी इसका असर पड़ेगा। एक तरफ सरकार राहत पैकेजेस की घोषणा कर रही है और दूसरी ओर उसकी कमाई बंद है। इस वायरस से सरकार की कमाई के सभी क्षेत्र प्रभावित हैं और सरकार के साथ-साथ देश के प्रत्येक नागरिक की आय भी प्रभावित हुई है। वर्तमान वित्तीय वर्ष की कमाई के लक्ष्य को बढ़ाने के लिए देश की प्रत्येक संस्था ने अपने कई प्लान बनाये लेकिन कोरोना वायरस ने सब तहस नहस कर दिया। यह कौन नहीं जानता कि जब लाक डाउन से लोग घर में बैठेंगे तो इससे कंपनियों और कार्यालयों में काम नहीं होगा और जब काम ही नहीं होगा तो व्यापार कैसे होगा। परिणामस्वरूप अर्थ व्यवस्था प्रभावित होगी। कोरोना का असर कम होने के बाद सभी संस्थाओं को अपनी आर्थिक नीति पुनः तय करनी होगी और आय की कमी को ध्यान में रखते हुए खर्चों पर भी विचार करना होगा। भविष्य में भयावह आर्थिक स्थिति उत्पन्न न हो, इसके लिए सरकार को चाहिए कि देश के वे क्षेत्र जो इस संक्रमण से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हैं या न के बराबर प्रभावित हैं, वहाँ कुछ शर्तों के साथ लॉक डाउन खोल देना चाहिए तथा उत्पादन को संभव सीमा तक प्रारंभ कर देना चाहिये ताकि असंगठित क्षेत्र के कामगारों को रोज़ी रोटी मिल सके और भविष्य में आपराधिक गतिविधियां जन्म न लें।”

मुझे ऐसा लगता है कि प्रकृति ने हमें कुछ देर थम कर स्वयं से बातें करने का सुअवसर दिया है और हमने भी पूरी तरह बिंदास होकर अपने आप से इतनी बातें कीं जितनी शायद हम अपने पूरे जीवन में नहीं कर पाते। हमारी तो स्वयं से गहरी मित्रता हो गयी है। हमें पहली बार लगा कि हम सब केवल पैसा कमाने की मशीनें भर नहीं है बल्कि हमारे अंदर भी एक अदद दिल धड़कता है जिसके एक कोने में हमारा परिवार, हमारे मित्र व हमारे संबंधी रहते हैं और एक हिस्से में हमारा देश रहता है। आज सन्नाटे में गूँजती हमारी साँसें महकती भी हैं और मुस्कराती भी हैं। हमने आज सामूहिक रूप से जाना कि ईश्वर, गॉड या अल्लाह किसी मंदिर, चर्च या मस्जिद में नहीं, मात्र हमारे अपने दिल में रहता है क्योंकि हमने अपने हाथों से बनाये उसके हर घर को ताला लगा दिया लेकिन वह फिर भी हम सबके पास है।

जिनके विषय में कुछ कहे बिना इस पूरे आलेख का कोई अर्थ नहीं रहता, वे हैं हमारे संरक्षक सरीखे हमारे वरिष्ठ और हमारे अपने आदरणीय भाई सुहैल काकोरवी। हमारा यह छोटा सा परिवार उनकी जान है और हम सबको भी उनके बिना कहाँ चैन मिलता है। सुहैल भाई कई भाषाओं के विशेषज्ञ व सारी दुनिया में लोकप्रिय साहित्यकार व शायर हैं और उनके कई साहित्यिक कारनामे देशी व विदेशी धरती पर रिकॉर्ड्स बना चुके हैं। यद्यपि वे पाँच वक़्त की नमाज़ के पाबंद हैं किंतु फिर भी हमें उनमें गंगा और हिमालय एक साथ दिखाई देता है क्योंकि उन्होंने अपनी हर दुआ में अपने मुल्क भारत की खुशयाली व तरक़्की ही माँगी है। आज भी जब हम सब अपने-अपने घरों में कैद हैं, वे हर एक की न केवल ख़ैरियत पूछते हैं बल्कि हमें देशभक्ति की भावनाओं से हर बार लबालब भर देते हैं। वे कहते हैं कि हम यह लड़ाई सिर्फ़ अपने लिये नहीं, पूरी मनुष्यता के लिये लड़ रहे हैं और हम इसे जीतेंगे भी। जीत के उस उत्सव में हम हों न हों लेकिन मनुष्यता एक बार फिर अवश्य मुस्करायेगी।

आमीन्।

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