कोरोना वायरस : त्रासदी में शगुन-3

तरुण प्रकाश श्रीवास्तव , सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप 

विश्व आज भयानक त्रासदी की ओर फिसल रहा है। हम सब संभव-अंसभव के मध्य खिंची महीन रेखा पर बार बार असंतुलित होते संतुलन को बनाये रखने के अथक प्रयास में जी जान से लगे हैं।

सामाजिक दायित्व निर्वहन

हम सभी यह ‘जानते’ हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है किंतु अब यह निर्विवादित रूप से ‘मान’ लेने का भी समय आ गया है। यह समय ‘मुसीबत आयेगी तो सिर्फ़ पड़ोसी पर आयेगी’ की सोच से उबरने का व अपने अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन का भी समय है। जब हमें सुरक्षित रखने के लिये हज़ारों लोग अपने परिवारों से दूर मृत्यु से पंजा लड़ा रहे हैं, जब सरकारी तंत्र बिना किसी भेद भाव के देश की एक-एक जान बचाने के लिये जूझ रहा हेै तब हम मात्र अपनी ही चिंता में ही व्यस्त रहें, यह सोच हमारी संकीर्णता व नीचता की ही प्रतीक है। हमें अपने सुरक्षा के दायरे में होते हुये भी समाज के प्रति व्यापक दृष्टि रखनी है और प्रत्येक वह कार्य करना है जो आज मनुष्य होने के आधार पर हमसे अपेक्षित है।

इंटरनेट : समस्या बनाम अवसर

प्रायः कहा जाता है – “हर समस्या अपने साथ अवसर भी लाती है।” हम सबको याद है कि अभी कुछ वर्ष पूर्व तक हमारे देश में डिजिटल सेवायें उपलब्ध होने के बावजूद भी अत्यंत सीमित संख्या में ही भारतवासी उन सेवाओं का प्रयोग कर रहे थे किंतु एक बार आर्थिक सुधारीकरण की प्रक्रिया में ‘नोटबंदी’ से देश का परिचय क्या हुआ, पूरा देश ‘डिजिटल मार्केटिंग’ स्वयं सीख गया और आज सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से पिछड़े से पिछड़ा व्यक्ति भी न केवल‌ सफलता पूर्वक इसका प्रयोग ही कर रहा हेै बल्कि अपने समय व शक्ति, दोनों का सफलता पूर्वक संरक्षण कर रहा है। आज प्रत्येक व्यक्ति की मुट्ठी में उसके स्मार्ट मोबाइल फोन के रूप में उसकी पूरी दुनिया मौजूद है। आज आपका फोन मात्र आपके अपनों से वार्तालाप का उपकरण ही नहीं है बल्कि वह आपका बैंक, आपका पर्सनल सेक्रेटरी, आपका सिनेमाघर, आपका टेलीविजन, आपका स्टेडियम, आपका भोजन, वस्तुओं व सेवाओं का मार्केटिंग एजेंट भी है। व्हाट्स ऐप, स्काईप, ज़ूम व कई अन्य ऐप आपको सुदूर बसने वाले आपके परिवार व मित्रों को आपकी इच्छानुसार आपके पास ले आने में समर्थ हैं। आज आप गूगल मैप व ओला व उबर जैसे ऐप्स की वजह से किसी भी स्थान का बैठे बैठे  न केवल परिचय ही प्राप्त कर पाते हैं बल्कि यात्रा में भी सक्षम हैं। करोना वायरस नामक समस्या के सामने आते ही जनमानस डिजिटल रूप से और भी संवेदनशील हो गया और आज की ‘अनिवार्य सोशल डिस्टेंसिंग’ की आवश्यकता के चलते बच्चों के क्लासेस आज आज शिक्षकों द्धारा ‘ऑन लाइन’ हो रहे हैं और अधिकारी, कर्मचारी व व्यवसायीगण अपना अपना कार्यालय अपने सहयोगियों के सहयोग से अपने अपने घर से ही ऑन‌लाइन संचालित कर रहे हैं। हमने स्थान व समय की समयसारिणी के पुरातन समीकरण को एक ही झटके में तोड़ दिया है़। हम एक ही समय मे़ परिवार के साथ रहते हुये अपना कार्य निभा सकते हैं और अपना कार्य करते हुये अपने परिवार के साथ रह सकते हैं। यह कोरोना नामक समस्या के पैकेज में छिपे अद्भुत अवसर नहीं हैं तो क्या है।

ईश्वरीय आस्था का वैश्विक धरातल

आज हम सब भली भाँति समझ चुके हैं कि हिंदू, इस्लसम, क्रिश्चियन, पारसी, बौद्ध, जैन व सिख धर्म नहीं, मात्र हमारी विशिष्ट पूजा पद्धतियां है और हमारे मंदिर, मस्जिद, चर्च व गुरुद्धारे हमारे धार्मिक स्थल न होकर मात्र हमारे पूजन स्थल हैं। धर्म इनसे कहीं ऊँचा है और ईश्वर न कभी इन पद्धतियों में समाया और न ही इन चहारदिवारी के मध्य कैद हुआ। ईश्वर तो सर्वथा मुक्त है और यही कारण है कि सोशल डिस्टेंसिंग के चलते विश्व के लगभग सभी इन तथाकथित धर्मस्थलों में मज़बूत तालाबंदी के बावजूद विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को यह अटल विश्वास है कि ईश्वर उसके साथ है और उसकी रक्षा करेगा। आज हमारी आस्था का धरातल‌ वैयक्तिक न होकर वैश्विक हो गया है और हमारी प्रार्थनाओं के स्वर भी अपनी अपनी विशिष्ट भाषा व शैली को त्याग कर समवेत रूप‌ में उपस्थित है। निश्चय ही, मात्र ‘वैश्विक मंगल’ ही हमारा महान व एकमात्र धर्म है।

निश्चित ही, यह फेहरिस्त अंतहीन है और दुनिया का प्रत्येक विषय व व्यक्ति इसमें समाया हुआ है। कुछ मुझसे छूट गया है तो इसमें कुछ आप जोड़ेंगे भी – यह मुझे भलीभांति पता‌ भी  है और यह मेरा अटल विश्वास भी हेर। 

माना, कोरोना वायरस एक बड़ी समस्या है किंतु हम सब संयुक्त रूप से इससे लड़ कर इसे अवश्य ही पराजित करेंगे क्योंकि अभी‌ मनुष्यता को लाखों अरबों वर्ष जीवित रहना है और हम इसे अकाल मृत्यु नहीं मरने देंगे। लेकिन इस त्रासदी में हज़ारों शगुन भी छिपे हैं, उन्हें भी तो ज़रा जी भर कर निहारिये और आनन्द से निहाल हो जाइये क्योंकि यह ठहरा हुआ समय इसके लिये सबसे उपयुक्त है।

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