हाँ…. मै लड़की हूँ !!!!!

अर्चना किशोर (छपरा सारण) बिहार

हाँ, मै लड़की हूँ !!! पढ़ने में शायद थोड़ा अजीब लग रहा होगा कि इसमें बताने वाली क्या बात है लेकिन ये ख़्याल आज दिल में बार-बार आ रहा है ।

हाँ, मै लड़की हूँ !!! क्या हुआ जो “मै कौन हूँ” और “आज मै क्या हूँ” ये सवाल खुद से नहीं कर रही या सवाल कर भी रही तो जवाब में ख़ामोशी है ।

हाँ, मै लड़की हूँ, मुझे क्या हुआ जो हमें बचपन में ही शर्माना, बोलने, चलने और बैठने का तरीका सिखाया जाता ।

हाँ, मै लड़की हूँ, क्या हुआ जो मुझे किसी अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढाने के बजाए लड़कियों के सरकारी स्कूल में पढ़ाया जाता ।

हाँ, मै लड़की हूँ, क्या हुआ जो घर से निकलते वक़्त सड़क पर कोई और मुझे कुछ न बोले या बोले भी तो मै उसका जवाब न दूँ, जैसी बातें नहीं समझाई जाती ।

हाँ, मै लड़की हूँ, क्या हुआ जो कहीं बाहर जाते वक़्त किडनेपिंग , रेप , एसिड अटैक , सेक्सुअल हर्रासमेन्ट , मोलेस्टेशन जैसी घटनाओं से सुरक्षित नहीं होती ।

हाँ, मै लड़की हूँ, क्या हुआ जो किसी दूसरे शहर घूमने या कुछ सिखने जाने की बात पर मुझे मना कर दिया जाता और देर रात घर से बाहर रहने पर सवाल उठाए जाते ।

हाँ, मै लड़की हूँ, क्या हुआ जो मेरे साथ ग़लत होने पर मुझे , मेरी आज़ादी या मेरे कपड़ो को दोष दिया जाता ।

हाँ , मै लड़की हूँ, पढ़ाई कर के जॉब कर के इंडिपेंडेंट होना चाहती लेकिन क्या हुआ जो मेरी पढ़ाई के पैसे मेरे दहेज़ के लिए बचाए जाते । और मेरी ज़िंदगी के अहम फैसलों में से एक शादी का फैसला बिना मेरी मर्ज़ी के किया जाता ।

हाँ , मै लड़की हूँ, क्या हुआ जो मुझे बुढ़ापे का सहारा नहीं समझा जाता और पराया धन मानकर रुपए-पैसों से तौलकर किसी अनजाने घर भेजा जाता ।

हाँ , मै लड़की हूँ , क्या हुआ जो शादी के बाद एक नई ज़िंदगी की शुरुआत होती लेकिन पुरानी खत्म हो जाती ।

हाँ , मै लड़की हूँ , और एक ज़िंदगी को जन्म दे सकती हूँ लेकिन क्या हुआ जो इनफर्टिलिटी की वजह से मेरे पार्टनर की दूसरी शादी होती और मुझे तलाक़ दिया जाता ।

हाँ , मै लड़की हूँ , क्या हुआ जो मुझे जानकर बुरा लगता कि एक गर्भवती महिला को मिले आशीर्वाद ‘निमन चीज़ होखो’ में निमन का मतलब सिर्फ लड़के से होता है ।

हाँ…… मै लड़की हूँ !!!! और इस बात से मुुुझे कोई तक़लीफ़ नहीं है क्योंकि इन सब में मेरी कोई गलती नहीं है । तक़लीफ़ है तो इस समाज के उन लोगों से है जो एक लड़की की आवाज़ को दबाते हैं , उनके अधिकारों से उन्हें दूर रखते हैं , बेटियों को बेटा कहकर उन्हें एहसास दिलाते हैं कि बेटियाँ कमजोर होती और एक लड़की को ये सोचने पर मजबूर करते हैं, काश वो लड़का होती ।

 प्रेस फ़ॉर प्रोग्रेस

बदलाव के लिए जोर डाले

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