तरुण प्रकाश श्रीवास्तव, सीनियर एग्जीक्यूटिव एडीटर-ICN ग्रुप
कल का बीता हुआ जीवन पराजित जीवन है। यदि हमने बीते कल में कोई उपलब्धि प्राप्त भी कर ली है तो आज का जीवन उसमें कुछ और जोड़ सकता है। हम वर्तमान की खिड़की से भविष्य के नए रास्ते निकाल सकते हैं।
मैं और मेरी बेटी प्रतिदिन के प्रारंभ में एक दूसरे से कहते हैं “हैप्पी बर्थडे।” यदि कोई तीसरा व्यक्ति (मेरे परिवार के अतिरिक्त) इस वार्तालाप को सुनता है तो प्रायः चौंक पड़ता है – कभी कभी उपहास के भाव भी उभरते हैं उसके चेहरे पर लेकिन हमें कोई अंतर नहीं पड़ता है क्योंकि हम उस सच को जान चुके हैं जिस सत्य से वह अछूता है।
यह हमारा विश्वास है कि जो मानसिक रूप से जितना शक्तिशाली होता है, बाहर की नकारात्मक शक्तियां उस पर उतना ही कम असर डाल सकती हैं। हम जानते हैं कि हमारे अगले पल की कोई गारंटी नहीं है। हमारे जीवन में अगला दिन आएगा या नहीं, यह कोई नहीं जानता। इसे सिर्फ और सिर्फ ईश्वर ही जानता है। हमें नहीं मालूम कि रात को सोने के बाद प्रातः आँख खुलेगी भी या नहीं, क्योंकि विश्व में प्रतिदिन ऐसे हजारों व्यक्ति होते हैं जो रात में सोते तो हैं किंतु उनकी कोई सुबह नहीं होती। ऐसे में प्रातःकाल हमारी आंख का खुलना और ईश्वर की बनाई इस खूबसूरत दुनिया को निहारने का, भविष्य की क्षितिज पर छलांग लगाने का अवसर प्राप्त करना और एक बार फिर स्वयं के अस्तित्व को महसूस करना क्या एक नया जन्म नहीं है? यह ईश्वर का स्पष्ट संकेत है- लो, तुझे एक जीवन और दिया। कल तो बीत चुका है और वह तुम्हारे सामर्थ्य के बाहर हो गया है। वह स्मृति का अंग है। स्मृति अटल,अचल और अमर है। स्मृति के चित्र में कोई सुधार संभव नहीं है लेकिन आज का जीवन फिर तुम्हारी पकड़ में है। तुम चाहो तो नया चित्र गढ़ सकते हो।
इसलिए हमारा आज हमारा नया जीवन है। ये नये निर्माण-नये प्रतिमान गढ़ने का अवसर है। ऐसे अनूठे अवसर का स्वागत अगर हम “हैप्पी बर्थडे” कह कर करते हैं, तो क्या गलत करते हैं?
कल का बीता हुआ जीवन पराजित जीवन है। यदि हमने बीते कल में कोई उपलब्धि प्राप्त भी कर ली है तो आज का जीवन उसमें कुछ और जोड़ सकता है। हम वर्तमान की खिड़की से भविष्य के नए रास्ते निकाल सकते हैं।
बहुत रहस्यमय है यह समय, यह सृष्टि, और यह संसार। ‘बीता हुआ कल’ कहाँ चला गया? ‘आज का समय’ कैसे हमारे समक्ष उपस्थित हो गया और ‘आने वाला कल’ आज कहां सुरक्षित छिपा है और कल कहाँ से दस्तक देगा, ये प्रश्न अत्यंत गूढ़ हैं। समय व्यतीत हो रहा है या समय के शाश्वत राजपथ पर हम व्यतीत हो रहे हैं-यह भी रहस्यमय है लेकिन दो तत्व तो बिल्कुल स्पष्ट हैं – ‘समय’ है और ‘हम’ हैं। कुछ लोगों का समय समाप्त हो गया था इसलिए वे समय के अतीत अंग के साथ सदैव के लिए लुप्त हो गये लेकिन आज के रूप में ईश्वर में हमें एक जन्म और दे दिया। यह सर्वथा स्वागत योग्य है और जब हम इसका गर्मजोशी से स्वागत करते हैं तो समय के वर्तमान पल की सार्थकता और स्पष्ट हो जाती है और हम स्वयं के और करीब आ जाते हैं इसलिए कल सुबह (यदि ईश्वर ने एक नया जन्म और दिया) जब मैं आपसे मिलूंगा और बिना यह जाने कि आप वास्तव में कल की तिथि में ही कुछ वर्ष पूर्व जन्मे थे या नहीं और आपसे कहूँगा, “हैप्पी बर्थडे टू यू” तो क्या आप मुझ पर हँसेंगे या मुस्कराकर कहेंगे,”हैप्पी बर्थडे टू यू टू।”
समय बहुत महत्वपूर्ण है। किसी भी वस्तु का मूल्य समय ही निश्चित करता है। जो वस्तु कल सस्ती थी – आज महंगी क्यों है? क्योंकि ‘कल’ और ‘आज’ के बिंदुओं के बीच समय उपस्थित है।
प्रायः हम सब अपने अतीत से जुड़े रह जाते हैं और समय आगे निकल जाता है। आप ही सोचिये – सौ मील की निर्धारित यात्रा में यदि हम बीसवें मील को पकड़कर बैठ जायें तो क्या शेष अस्सी मील की यात्रा संभव है? नहीं, कदापि नहीं। जब हम समय से तेज नहीं चल सकते तो कम से कम हमें समय के साथ तो चलना ही चाहिए वरना हम किसी ड्राइंग रूम की सुन्दर दीवार पर देदीप्यमान जीवित एलसीडी स्क्रीन के समक्ष एक पुराने बदरंग चित्र भर बनकर रह जायेंगे। समय कभी इसकी परवाह नहीं करता कि आप उसके साथ चल रहे हैं या नहीं। विश्व का अधिकांश जनसमुदाय समय के साथ प्रतियोगिता में पिछड़ा हुआ है और अभावग्रस्त एवं तनावपूर्ण जीवन जीने को विवश है। जो समय के साथ चल रहे हैं, वे औसत दर्जे के मध्यमवर्गीय लोग हैं और जो थोड़े से लोग समय से आगे चल रहे हैं, वे सफल लोग दुनिया के शीर्ष पर स्थापित हैं।
सफलता कई पैमानों से नापी जा सकती हैं और उनमें एक महत्वपूर्ण मापक यह भी है कि आप अपने समय से कितना आगे हैं अर्थात आप आने वाले समय का कितना सटीक अनुमान लगा सकते हैं।
समय को समान रूप से तीन भागों में विभाजित किया जाता है- अतीत, वर्तमान व भविष्य। हम अतीत में अपना जीवन जी चुके होते हैं, वर्तमान में जी रहे होते हैं और भविष्य में जीवन जीना शेष होता है। हम में से अधिकांश लोग अतीत में जो चुके जीवन को वर्तमान में जीते रहते हैं और कलेजे से लगाये रहते हैं। इसका सीधा अर्थ है – हम वर्तमान को नष्ट कर रहे हैं और भविष्य का विनाश आगे खड़ा हमारी प्रतीक्षा कर रहा है। किसी ने सच ही कहा है – अतीत चाहे जितना सुन्दर हो अथवा चाहे जितना बदसूरत हो, वह सदैव हमारे वर्तमान को दुखी करता है। यदि हम अतीत में बहुत सुखी थी किन्तु आज सुखी नहीं है तो भी यह दुख का कारण है और यदि हम अतीत में अभावग्रस्त व समस्यापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे थे किन्तु आज सुखमय जीवन बिता रहे हैं तो भी उस प्रतिकूल समय को याद करना दुःख का कारण है। सत्यता यह है कि अतीत एक अच्छा मार्गदर्शक हो सकता है किन्तु एक अच्छा सहयात्री कभी नहीं। इस सत्य को हम जितनी शीघ्रता से स्वीकार कर लेंगे, अतीत के कंटीले विषमय मायाजाल से मुक्त होकर नई ऊर्जा के साथ वर्तमान को साकार करते हुए सुनहरे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
क्या लाभ है बार बार अतीत की गलियों के चक्कर लगाने का और निरंतर अतीत की छाया से चिपके रहने का जबकि हम उस खो चुके जीवन को पुनः प्राप्त नहीं कर सकते। अतीत हमारी स्मृति का अंग है और इस स्मृति के चित्र में कोई सुधार संभव नहीं है। बात को अच्छी तरह से समझाने के लिए एक उदाहरण दे रहा हूँ — कई बार ऐसा होता है कि अपने पिता के स्थानांतरण के कारण अथवा किसी अन्य कारण से हमें बचपन में अपना स्थान छोड़कर कहीं और जाना होता है अथवा बचपन का कोई मित्र ऐसे ही किसी कारण से हमसे बिछड़ जाता है। बचपन पीछे छूट जाता है और आप युवा हो जाते हैं, प्रौढ़ हो जाते हैं और फिर वृद्धावस्था की ओर बढ़ने लगते हैं। याद कीजिए अपने उस बिछड़े मित्र को – कौन सा चेहरा आपके सामने आया? वही – उसके बचपन का चेहरा जबकि आप स्वयं युवा, प्रौढ़ अथवा वृद्ध हो गये हैं। इन बीते हुए वर्षों का प्रभाव उस स्मृति में कैद चेहरे पर क्यों नहीं पड़ा? उत्तर स्पष्ट है – अतीत ठहरा हुआ समय है और वह समय के साथ कभी नहीं चलता। यदि हम अतीत को अपने पाँवों में बांध लेते हैं तो वह हमारी भी गति को रोक देता है, हमें जड़ कर देता है। हमारा शरीर तो व्यतीत होता जाता है, तारीख, महीने और वर्ष तो बदलते रहते हैं लेकिन हम अतीत के किसी चौराहे पर निरंतर खड़े रह जाते हैं। यह जीवन नहीं है बल्कि यह जीवित रहते हुए मृत हो जाने सरीखा है। किसी ने सही कहा है – #अधिकांश लोग मर बहुत पहले जाते हैं लेकिन उन्हें दफनाया बहुत बाद में जाता है।’ एक बार आप अपने आप को टटोलिए – क्या आप में छिपा ‘आप’ निरंतर यात्रा में है अथवा पीछे कहीं ठहर गया है? क्या आप में छिपा ‘आप’ अभी तक जीवित है अथवा उसकी मृत्य हो चुकी है?
यह समय अतीत की बेड़ियां तोड़ कर धमाके के साथ पूरी तरह ऊर्जावान होकर भागती हुई समय पट्टिका पर एक धावक के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का है।
महान मनोवैज्ञानिक व प्रखर लेखक डॉक्टर जोसेफ मर्सी की पुस्तक “द पावर ऑफ अनकांशस माइंड” का अध्ययन करते हुए उनके द्वारा दिये गए एक उद्धरण ने मुझे बहुत प्रभावित किया और मेरी सोच के कोण को सकारात्मक ध्रुव पर स्थापित करने के लिए उनकी उक्त पुस्तक व उसमें दिया गया वह उद्धरण बहुत ज़िम्मेदार है। वह किस्सा कुछ इस प्रकार है- अमेरिका में एक प्रांत में कारखाने में कार्य करने वाला एक फोरमैनअपनी पत्नी के साथ रहा करता था। एक दिन जब वह वापस घर लौटा तो उसने अपनी पत्नी को किसी अन्य व्यक्ति के साथ अत्यंत आपत्तिजनक स्थिति में देखा। यह देख कर वह क्रोध से पागल हो गया और उसने क्रोध के अतिरेक वआवेश में उसने अपनी पिस्तौल से उस व्यक्ति की हत्या कर दी और परिणामस्वरूप उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और उस पर मुकदमा चला लेकिन ‘सडन प्रोवोकेशन’ का केस पाते हुए एवं उस व्यक्ति के पूर्व इतिहास में उसकी बेदाग छवि के कारण न्यायालय ने उसे मात्र तीन वर्ष की सजा दी। सज़ा के दौरान भी उसका व्यवहार अत्यंत सभ्य व शालीन था इसलिए उसे उसकी सजा में नरमी बरतते हुए पहले ही रिहा कर दिया गया। कैद से बाहर आकर उसने अपनी बेवफा पत्नी से तलाक लिया और अपने वर्तमान स्थान को छोड़ कर दूर किसी अन्य प्रांत में जाकर रहने लगा जहां उसने विवाह किया और उनकी संताने भी उत्पन्न हुईं। वहीं पर उसने कारखाने में फोरमैन के पद पर पुनः कार्य किया तथा अपनी शालीनता, सभ्यता दयालुता व प्रत्येक की सदैव सहायता को तत्पर रहने के व्यवहार ने उसे अत्यंत लोकप्रिय बनाया किन्तु जिस समय वह सभी लोगों के लिए बहुत दयावान था, वह अपने शरीर के प्रति वह अत्यंत ही निर्दयी था। वह किसी भी त्रुटि के लिए अपने आप को कभी क्षमा नहीं करता था तथा स्वयं के साथ अत्यंत क्रूरता के साथ पेश आता था। उसके प्रशंसक उसके इस विचित्र व्यवहार से अत्यंत दुखी थे। ये विचित्र केस डॉक्टर जोसेफ मर्सी जो एक विद्वान मनोचिकित्सक थे, के पास पहुंचा। डॉक्टर मर्फी ने उस व्यक्ति की केस हिस्ट्री को समझने के लिए उसके साथ अनेक बैठकें की किंतु वें उस व्यक्ति की मनोग्रंथि तक नहीं पहुंच पा रहे थे। एक बैठक के दौरान डॉक्टर मर्फी प्रश्न करते-करते उस व्यक्ति के हत्यारे होने के इतिहास तक पहुंच गये तथा वे सारे तथ्य उस व्यक्ति ने उनके सामने उद्घाटित किए। विशेषण के दौरान उस मनोग्रंथि का सूत्र डॉक्टर मर्फी के हाथ आ लगा। वास्तव में उस व्यक्ति को उस घटना के प्रति न्यायालय वह समाज ने तो दोष मुक्त कर दिया था किन्तु स्वयं उसने अपने आप को क्षमा नहीं किया था और वह अपने शरीर को आज भी हत्या का दोषी मानता था और उसकी छोटी छोटी गलतियों पर बड़ी बड़ी सजायें दिया करता था । डॉक्टर मर्फी ने कहा – ‘क्या तुम्हें पता है, यह मानव शरीर अनगिनत कोशिकाओं का बना है और एक कोशिका का जीवन काल मात्र तीन माह ही होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि तुम्हारे जिस शरीर ने हत्या की थी, वह तो बहुत पहले ही मर चुका है और उसके बाद न जाने कितनी बार तुम्हें नया शरीर मिला है। तुम्हारा नया शरीर तो पूर्णतया पवित्र व दोषमुक्त है। उसे तुम किस अपराध का दंड दे रहे हो?” उस व्यक्ति की मनोग्रंथि अचानक खुल गई और उसने अपना शेष जीवन पूर्ण ऊर्जा व पवित्रता के अहसास से परिपूर्ण होकर बिताया। इस घटना का उल्लेख कर मैं आपको एक स्पष्ट विचार, एक स्पष्ट संकेत देना चाहता हूँ- बीता हुअा कल तो बीत गया। उसमें जो अच्छा था, वह भी चला गया और जो बुरा था, वह भी नष्ट हो गया। आज का दिन फिर आपके नए जन्म के रूप में आपके समक्ष है। जैसे कोई नवजात शिशु पूर्णतया पवित्र होता है, उसी प्रकार फिर एक पवित्र दिन आपके सामने है। ईश्वर ने फिर एक नया कैनवास प्रस्तुत किया है और उसने आपके ऊपर छोड़ दिया है कि आप उस पर एक सुन्दर चित्र बनाकर उसे अविस्मरणीय कर देते हैं अथवा उस कैनवास को ही नष्ट कर देते हैं।
अब एक और महत्वपूर्ण सूत्र में आपको सौंप रहा हूँ – साक्षीभाव। एक अद्भुत भाव है- सर्वथा चमत्कारिक सूत्र। साक्षी भाव का अर्थ है – स्वयं का साक्षी होना। हमारे अंदर एक ‘मैं’ होता है जो हम से सर्वथा अलग है. हमारी अज्ञानता तब प्रारंभ होती है जब हम ‘मैं’ को स्वयं में विलीन मानते हैं और जिस दिन हम उस ‘मैं’ को अपने से अलग स्वीकार कर लेते हैं, वह ‘मैं’ साक्षी भाव से हमें परखना प्रारंभ कर देता है। यह सतत् परख जीवनपर्यंत चलती है क्योंकि वह तो हमारे अंदर से ही हमारी परख है।
क्रमशः ….