लोन पॉलिसी, कितनी राजनीतिक, कितनी व्यवहारिक

सुरेश ठाकुर
एक किसान की समृद्धि का अर्थ है उसके परिवार की, गाँव की, बैंक की तथा पूरे देश की अर्थव्यवस्था की समृद्धि | 
बरेली: आँख मूँद कर लोन बँटवाते जाना और समय समय पर उसे माफ़ करते रहना सरकारी नीति का एक स्थाई हिस्सा बन गया है | कम से कम किसानों के सन्दर्भ में तो ये अक्षरशः सत्य है | खैरात की तरह बाँटे जाने वाला लोन उनकी कृषि को कितनी वृद्धि दे पा रहा है उन्हें आर्थिक रुप से कितना आत्मनिर्भर बना पा रहा है इसके संज्ञान और सही आकलन की आवश्यकता किसी को नहीं है | कम से कम सरकार को तो नहीं | सरकार अथवा राजनैतिक दल तो इसे चुनाव में जीत की गारण्टी के तौर पर देखते हैं | जो राजनैतिक दल अथवा सरकार जितनी अधिक ऋण माफी की घोषणा कर देती है वो किसानों के उतने ही वोट पक्के कर लेने का विश्वास पाल लेती है | बड़ी राशि में किसानों की ऋण माफी की स्थाई और लगातार कवायद कम से कम ये तो सिद्ध कर ही रही है कि कृषि एक लाभपृद व्यवसाय का दर्जा खो चुका है | “उत्तम खेती मध्यम बान…..” वाली कहावत अब गुज़रे ज़माने की बात हो चली है | उन परिवारों में सम्पन्नता का नितांत अभाव है अथवा विपन्नता है जो केवल कृषि पर ही निर्भर हैं और ये अभाव उनकी सामान्य आवश्यकताओं तक के लिए उन्हें हाथ फैलाने को विवश करता है | बैंक से कृषि के नाम पर मिले ऋण का एक अल्प भाग ही उनके व्यवसाय की कार्यशील पूँजी का हिस्सा बन पाता है शेष तो उनकी सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति के काम ही आता है | सरकारें भी इस हक़ीक़त को भली भाँति समझती हैं | इधर अनेक प्राकृतिक जोख़िमों से घिरा किसान का ये व्यवसाय अपनी सीमित उपज का समुचित मूल्य न मिल पाने के कारण स्वतः ही घाटे में चला जाता है | बैंक्स तो निस्तारण के दिनांक से ही ऋण राशि पर ब्याज की गणना शुरू कर देती हैं जो कि स्वाभाविक है किंतु किसान अर्थाभाव में अपनी मूल पूँजी का भी उपभोग कर लेता है, परिणामस्वरूप वह ऋण भुगतान की स्थिति में नहीं रहता | चूँकि NPA के कंसैप्ट नें बैंक्स को भी आईने के सामने खड़ा कर दिया है अतः ऋण अदायगी के लिए उनका ऋणी अर्थात किसान पर दबाब स्वाभाविक है | ये स्थिति किसान के लिए अति चिंताजनक होती है जिसका लाभ राजनैतिक दल तथा सरकारें उठाती हैं और ऋण माफी की घोषणा कर उनका वोट आकर्षित करती हैं | किसान कब चाहता है कि ऋण माफी उसकी समस्या का स्थाई समाधान बनें | वो चाहता है कि कृषि को लेकर ऐसी सरकारी नीति बनें जो उसे एक लाभप्रद व्यवसाय का रुप दे सके | छै: माह से लेकर एक वर्ष तक कमर तोड़ मेहनत कराने के उपरांत भी वह उस उपज से उतना लाभ नहीं ले पाता जिसका कई गुना लाभ उसी उपज से थोड़े से ही समय में एक व्यापारी ले लेता है | इस अन्तर पर ध्यान देने की आवश्यकता है | किंतु ऋण माफी का स्वाद चख चुका किसान भी कृषि व्यवसाय की मूल समस्याओं के निवारण के लिए सरकार को बाध्य करने को लेकर उतना गम्भीर नहीं दिखाई देता | वो ऋण माफी से ही खुश है | उधर किसानों की आवाज़ बुलंद करने वाले संगठन यद्यपि अनेक हैं किंतु चूँकि वे भी किसी न किसी राजनैतिक दल का संरक्षण प्राप्त हैं अतः उनमें भी आपस में प्रतिस्पर्धा है और किसानों के हितों से अधिक उनका ध्यान दल विशेष के हितों के प्रति रहता है | किंतु मै सरकारों से अपील करना चाहुंगा कि यदि देश में कृषि और कृषक को ज़िंदा और खुशहाल रखना है तो इस ओर गम्भीरता से ध्यान देना होगा | मृदा परीक्षण से लेकर बीज, बुबाई, भू-परिष्करणीय क्रियाकलापों आदि में आधुनिक मशीनी पद्दतियों को सहज और सुलभ कराने की आवश्यकता है | सही फसलचक्र तथा पारम्परिक कृषि से व्यवसायिक कृषि की ओर जाने के लिए न केवल प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है बल्कि तकनीकी ज्ञान तथा आवश्यक साधन, परिस्थितियाँ उपलब्ध कराये जाने की आवश्यकता है | विकास खण्ड की ओर से ग्राम विकास अधिकारी और किसान मित्र निश्चित ही इस में महती भूमिका अदा कर सकते हैं | और अंत में कृषि उपज के लिए लाभप्रद मूल्य का सहज बाज़ार उपलब्ध कराये जाने की भी प्रमुख आवश्यकता है |

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