महंगी न पड़े सौगात

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को महिलाओं के लिए एक बड़ी योजना का ऐलान कर सबको चौंका दिया। जल्द ही दिल्ली मेट्रो और डीटीसी की सभी बसों में महिलाओं को मुफ्त यात्रा की सुविधा मिलेगी।

केजरीवाल का कहना है कि इस योजना पर आनेवाला प्रतिवर्ष करीब 1200 करोड़ रुपये का खर्च दिल्ली सरकार वहन करेगी। चूंकि राज्य सरकार का खजाना सरप्लस में है इसलिए उस पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि इस योजना के लिए दिल्ली सरकार को केंद्र सरकार से बात करने की जरूरत नहीं है क्योंकि सब्सिडी दी जा रही है, किराये में कोई फेरबदल नहीं की जा रही। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि जो महिलाएं टिकट खरीदने में सक्षम हैं, वे इस सब्सिडी को छोड़ दें ताकि जरूरतमंदों को मदद मिल सके। केजरीवाल का दावा है कि इस योजना से महिलाएं सुरक्षित यात्रा कर सकेंगी। अभी दिल्ली की बसों और मेट्रो के कुल यात्रियों में 33 फीसदी महिलाएं होती हैं। इस योजना के पीछे उनकी सुरक्षा का तर्क उतना दमदार नहीं है लेकिन महिलाओं को इतनी बड़ी सहूलियत देने की इच्छा वाकई मायने रखती है।
वैसे इस योजना के सामने आते ही कई तकनीकी प्रश्न भी उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि मेट्रो में स्मार्ट कार्ड या टोकन के जरिए मुफ्त सफर का प्रावधान किया जाता है तो उसके लिए किराया वसूलने के तरीकों में परिवर्तन करने पड़ेंगे। ऐसे बदलावों के लिए केंद्र सरकार की मंजूरी की आवश्यकता पड़ सकती है। फिर यह भी मुद्दा है कि दिल्ली सरकार मेट्रो को किस तरह भुगतान करेगी? भारी कर्जे पर खड़ी दिल्ली मेट्रो क्या भुगतान में किसी देरी या चूक को बर्दाश्त करने की हालत में है? दिल्ली विधानसभा का चुनाव नजदीक है इसलिए राज्य के विपक्षी दलों ने इसे चुनाव से जोड़कर देखा है और वोट खरीदने की कोशिश बताया है। उनका कहना है कि राज्य सरकार के पास पैसे हैं तो विकास कार्यों में लगाती। सच कहें तो काफी समय बाद शुल्क में माफी देने या नि:शुल्क सार्वजनिक सेवाएं उपलब्ध कराने की नीतियां हमारी व्यवस्था में वापस आ रही हैं। नब्बे के दशक के पहले बिजली और कुछ अन्य सेवाओं में माफी दी गई थी जिसकी कुल भूमिका विनाशकारी सिद्ध हुई। नई आर्थिक नीति लागू होने के बाद सरकारों ने ऐसी नीतियां छोड़ दी थीं। लेकिन पिछले दिनों केंद्र सरकार ने किसानों को नगद पैसे दिए, कई राज्य सरकारों ने किसानों के कर्ज माफ किए और गरीबों को मुफ्त चावल बांटा। चुनाव के दौरान कांग्रेस ने भी सालाना 72 हजार की योजना पेश की। ऐसी नीतियों से हर समुदाय का रुझान बदल रहा है और आने वाले दिनों में सरकारों पर उनका दबाव बढ़ सकता है। आशंका है कि कहीं चुनावों में विभिन्न दलों के बीच ऐसे वादे करने की होड़ न लग जाए। देखें, केजरीवाल की यह पेशकश दिल्ली और देश के लिए क्या मायने लेकर आती है।

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