राष्ट्रीय नेतृत्व की जिम्मेदारी से लेकर यूपी का कमान दिये जाने पर चल रहा मंथन

लखनऊ। पीएम मोदी के मंत्रिमंडल गठन और विभागीय बंटवारे के बाद अब बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का सारा फोकस पार्टी के अध्यक्ष पद को लेकर है। मोदी कैबिनेट में नंबर दो की कुर्सी पर बतौर गृहमंत्री शाह के काबिज होने के साथ ही अब राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर जबरदस्त मंथन चल रहा है। पार्टी जानकारों की मानें तो जहां तक राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की बात है तो जेपी नड्डा और भूपेंद्र यादव का नाम सबसे ऊपर है। लेकिन इसी संदर्भ में यदि उत्तर प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष पर चर्चा करें तो इस रेस में कई नाम चल रहे हैं। पार्टी जानकारों की मानें तो इस फेहरिस्त में स्वतंत्र देव सिंह व मनोज सिन्हा से लेकर शिव प्रताप शुक्ल, विद्या सागर सोनकर व जेपीएस राठौर के नामों पर विचार चल रहा है। हां, इतना तय बताया जा रहा है कि अगर राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर भूपेंद्र यादव बैठे तो यूपी के पार्टी मुखिया की कमान ओबीसी के अलावा किसी अन्य वर्ग, समुदाय या फिर किसी खास इमेज वाले नेता को सौंपी जा सकती है।डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय के मोदी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनाये जाने के बाद अब उनका बेहतर विकल्प ढूंढा जा रहा है। जिस तरह से अबकी बार मोदी मंत्रिमंडल में यूपी से पार्टी नेताओं को जगह दी गई है, ऐसे में भाजपा की यही कोशिश रहेगी जातिगत समीकरण पर ध्यान रखते हुए संगठन के किसी कद्दावर लीडर को सूबे की कमान सौंपी जाये ताकि एक तीर से कई निशाना साधा जा सके। इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हेमेंद्र प्रताप तोमर का कहना है कि चाहे केंद्रीय अध्यक्ष की बात हो या फिर यूपी अध्यक्ष बनाये जाने की, भाजपा दोनों स्तर पर जातीय फैक्टर पर गौर करते हुए हिन्दुत्व के एजेंडे को धार देती रहेगी। साथ ही अध्यक्षों को चुनते समय वर्तमान मंत्रिमंडल, आगामी यूपी विधानसभा चुनाव और उससे संबंधित अन्य राजनीतिक गुणा-गणित और नफा-नुकसान के पहलुओं पर भी ध्यान देगी। यदि जातीय फैक्टर से इतर किसी जाने-पहचाने चेहरे की तलाश चल रही हो तो, इस इमेज में मनोज सिन्हा सबसे आगे हैं। सिन्हा ने पूर्वांचल में जिस तरह से रेलवे का विकास किया उससे मोदी सरकार की और अच्छी छवि बनी। हालांकि वो अबकी बार चुनाव हार गए और उनके दोबारा मंत्रिमंडल में शामिल होने की खबरों पर भी विराम लग गया, तो ऐसे में प्रदेश संगठन में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है। यूपी बीजेपी के कमान की दौड़ में सबसे आगे योगी सरकार के परिवहन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह का नाम चल रहा है। एक तो पहले से ही वो संगठन को संभालने में सिद्धहस्त नेता हैं और इस चुनाव में वो मध्य प्रदेश के चुनावी प्रभारी भी रहें। इसके अलावा बीते लोकसभा चुनाव के दौरान लखनऊ में आयोजित मोदी की रैली के प्रभारी का दायित्व भी उन्होंने बखूबी निभाया था, ऐसे में कहीं न कहीं वो शीर्ष नेतृत्व की नजर में हैं। प्रदेश में अगर बीजेपी आलाकमान ओबीसी कोटे को तरजीह देती है तो स्वतंत्र देव सिंह उर्फ कांग्रेस सिंह और धर्मपाल सिंह आगे की कतार में खड़े दिखायी दे रहें। अगर अनुसूचित जाति के प्रदेश अध्यक्ष पद पर बीजेपी ने दांव खेला तो महामंत्री विद्या सागर सोनकर के अलावा रामशंकर कठेरिया का नाम भी आ सकता है। ऐसी स्थिति में कठेरिया इसलिये कुछ अधिक फीट बैठ रहें क्योंकि उन्होंने पश्चिमी यूपी में यादवों के गढ़ क्षेत्र इटावा में अबकी बार कमल खिलाया है। इससे पहले वो बीते मोदी शासनकाल में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री के बाद एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष भी रहें। इसी कड़ी में अगर बीजेपी द्वारा सवर्ण लॉबी को लुभाने की बात आती है तो यहां के प्रदेश महामंत्री संगठन के खास माने जाने वाले जेपीएस राठौर और विजय बहादुर पाठक को भी चांस मिल सकता है। इसके अलावा एक और नाम इन दिनों दबे जुबां चर्चा में चल रहा है…मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में शामिल रहें वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ल का। हालांकि पार्टी जानकारों की मानें तो शुक्ल वर्तमान में राज्य सभा सदस्य हैं और पूर्वांचल में उनकी जमीनी पकड़ है, मगर यह चांस इसलिए नहीं बनता दिखता क्योंकि किसी समय गोरखपुर में योगी और उनके बीच चला राजनीतिक द्वंद्व जगजाहिर है। ऐसे में बदले हुए राजनीतिक वातावरण में पार्टी नेतृत्व किसी प्रकार का बखेड़ा नहीं चाहेगी।

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