मनुष्य के भीतर आत्मविश्वास कहां से आता है?

मनुष्य के भीतर आत्मविश्वास कहां से आता है, यह मनोवैज्ञानिकों की जिज्ञासा का विषय रहा है। पिछले दिनों हुए एक शोध में पाया गया कि इसका संबंध हमारी सामाजिक हैसियत से है। संपन्न तबके से आने वालों के भीतर आत्मविश्वास ज्यादा होता है और कमजोर पृष्ठभूमि वाले लोगों के भीतर कम।

वर्जिनिया विश्वविद्यालय द्वारा की गई यह स्टडी ‘जर्नल ऑफ पर्सनैलिटी एंड सोशल सायकॉलजी’ में प्रकाशित हुई है। यह अध्ययन चार चरणों में संपन्न हुआ।पहले चरण में मेक्सिको के 1,50,949 छोटे कारोबारियों को शामिल किया गया जिन्होंने लोन के लिए आवेदन किए थे। उनसे कई प्रश्नों के उत्तर देने को कहा गया। फिर उनसे पूछा गया कि उन्होंने कैसा परफॉर्म किया है, यानी कितने उत्तर सही होने की संभावना है? उन व्यापारियों में जो ज्यादा संपन्न थे, वे अपने प्रदर्शन को लेकर आश्वस्त थे, जबकि कम संपन्न व्यापारियों को लग रहा था कि उन्होंने कई गलतियां की हैं। उत्तरों की जांच में दोनों की हकीकत अलग पाई गई। दूसरे चरण में 433 लोगों के बीच एक ऑनलाइन सर्वे किया गया, जिसमें पूछा गया कि वे अपने और अपने सामाजिक समूह के भविष्य को लेकर कितने आशावादी हैं। जो ज्यादा संपन्न थे, वे ज्यादा आशावादी निकले। उन्हें उम्मीद थी कि वे अपने से और ऊंचे वर्ग में जा सकते हैं। तीसरे चरण में 1400 लोगों को सामान्य ज्ञान से जुड़ा एक खेल खेलने को कहा गया। इसमें भी संपन्न तबके ने ज्यादा आत्मविश्वास दिखाया। चौथे चरण में 279 लोगों का एक मॉक जॉब इंटरव्यू लिया गया। एक बार फिर समृद्ध वर्ग से आने वाले लोगों को लगा कि उन्होंने ज्यादा बेहतर जवाब दिए हैं। मुख्य शोधकर्ता पीटर बेल्मी के अनुसार समाज में ऊंची हैसियत रखने वाले व्यक्तियों के भीतर यह भाव रहता है कि उनकी स्थिति हमेशा ज्यादातर लोगों से ऊपर ही रहेगी। उन्हें शुरू से इस तरह से तैयार किया जाता है कि वे औरों से अलग और उनसे बेहतर हैं। लिहाजा वे गलत होते हुए भी खुद को सही मानते हैं। यह धारणा उन्हें औरों से ज्यादा आत्मविश्वासी बनाती है। जबकि कमजोर तबके के बच्चों को शुरू से यही सिखाया जाता है कि वे जमीन पर रहें और अपनी गलतियों पर सख्ती से नजर रखें। इसीलिए कमजोर पृष्ठभूमि वाले लोग सही-गलत को लेकर बहुत सचेत रहते हैं और जवाब देते समय उनमें आत्मविश्वास की कमी नजर आती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस मनोवृत्ति के चलते इंटरव्यू के दौरान समृद्ध पृष्ठभूमि वाले लोगों को अक्सर उनकी क्षमता से अधिक सुयोग्य मान लिए जाने की संभावना रहती है, जबकि कमजोर पृष्ठभूमि के कहीं बेहतर दावेदार मौका चूक जाते हैं। तात्पर्य यह कि किसी खास भूमिका के लिए काबिल इंसान की पहचान करने में उसके आत्मविश्वास को ज्यादा तवज्जो देना हमें गलत चयन की ओर ले जा सकता है।

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