कांग्रेस के गढ़ में 1989 के बाद भाजपा होती गयी मजबूत

राणा अवधूत कुमार
(हाल-ए-सासाराम)
जगजीवन राम आजीवन सासाराम से रहे सांसद, बेटी मीरा कुमार सांसद और स्पीकर बनी
1989 के जनता लहर में छेदी पहली बार गैर कांग्रेसी सांसद बने, मुन्नीलाल तीन बार जीते
1952 में शाहाबाद दक्षिणी सीट 1957 में सासाराम क्षेत्र बनने के बाद आज तक है सुरक्षित
1952 से 2014 के लोकसभा चुनाव में सासाराम से अबतक चुनकर गए हैं मात्र पांच सासंद
सासाराम। सासाराम में भाजपा के निर्वतमान सांसद छेदी पासवान और लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार के बीच सीधी टक्कर है. 1989 के चुनाव से मीरा कुमार और छेदी पासवान में इस सीट पर लड़ाई होती रही है. कभी कांग्रेस का गढ़ या यूं कहे कि परंपरागत सीट रही सासाराम संसदीय क्षेत्र पर पूर्व प्रधानमंत्री जगजीवन राम का आजीवन कब्ज़ा रहा. 1989 के बाद इस क्षेत्र पर जनता दल और भाजपा का कब्जा हो गया. बीच में 2004 में मीरा कुमार ने कांग्रेस की वापसी करायी थी. देश की दोनों प्रमुख पार्टियां कांग्रेस व भाजपा सासाराम सीट पर मजबूती से चुनाव लड़ती रही है. यहां राजद, जदयू, लोजपा, समता, रालोसपा जैसी क्षेत्रीय दलों का कोई प्रभाव नहीं रहा है। 1996 के बाद आइएएस से नेता बने भाजपा के मुन्नीलाल राम यहां से जीत की हैट्रिक लगायी थी. इस सीट पर 1989 के जनता दल लहर में सांसद बने छेदी पासवान 2014 में तीसरी बार सांसद बने. छेदी पासवान कई दलों के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ चुके हैं. दोनों प्रमुख दल भाजपा-कांग्रेस सासाराम की सियासी इतिहास को बरकरार रखे हुए हैं. शेरशाह की नगरी के रूप में स्थापित इस शहर की अंतर्राष्ट्रीय पहचान शेरशाह के ऐतिहासिक मकबरे से ही हैं. इस बार भी एनडीए गठबंधन की ओर से छेदी पासवान तो महागठबंधन की ओर से कांग्रेस की वरीय नेता मीरा कुमार प्रत्याशी हैं.
वाराणसी से सटी है सासाराम सीट 
प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र वाराणसी से सटी सासाराम संसदीय सीट पर इस बार लोकसभा का रण काफी रोचक होने वाला है. कारण कि जातिगत समीकरण को देखकर दोनों प्रत्याशी अपनी-अपनी गोटी सेट करने में जुटे हुए हैं. सासाराम संसदीय क्षेत्र सुरक्षित होने के बाद भी देश की राजनीति में अपनी एक विशेष पहचान रखता है. चूंकि इतिहास के पन्नों में सासाराम शहर अफगान शासक शेरशाह सूरी की नगरी है, जिसने अपने पांच साल के शासनकाल में दिल्ली का तख़्त पलटते हुए कई ऐतिहासिक काम भी किया था. जिसकी मिसालें आज भी दी जाती हैं. मसलन जीटी रोड, धर्मशाला, मुद्राओं का चलन एवं पत्र भेजने जैसी नायाब व्यवस्था भारत को शेरशाह सूरी ने ही दी थी. इस सीट पर जहां छेदी पासवान जीत की चौकड़ी लगाने के लिए लगे है वहीं मीरा कुमार भी जीत की हैट्रिक लगाने के लये हरसंभव कोशिश कर रही हैं. सासाराम सीट से मीरा कुमार को इस बार राजद, हम, रालोसपा, वीआईपी और लोजद का समर्थन हैं. वहीं छेदी पासवान भाजपा के आधार वोटों के साथ जदयू और अति पिछड़े वोटों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना चाह रहे हैं पिछले चुनाव में एनडीए का हिस्सा रहे बदलते दौर अब महागठबंधन के घटक बन गए हैं.  
 
जगजीवन बाबू सर्वाधिक बार जीते 
वर्ष 1952 से 1984 तक जगजीवन बाबू आजीवन इस सीट पर काबिज रहे. वर्ष 1952 से 1971 तक कांग्रेस के टिकट पर, वर्ष 1977 व 1980 में जनता पार्टी और 1984 में कांग्रेस (जे) के टिकट पर चुनाव जीते। इस दौरान उन्होंने देश के कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेवारी संभाली। जनता पार्टी की सरकार में उप प्रधानमंत्री तक बने. इनके बाद वर्ष 1989 में जनता लहर व 1991 के चुनाव में छेदी पासवान जीते। वर्ष 1996, 1998 व 1999 में संपन्न चुनाव में भाजपा के मुन्नीलाल ने जीत दर्ज की। जबकि वर्ष 2004 व 2009 में हुए चुनाव में बाबूजी की बिटिया मीरा कुमार ने कांग्रेस से जीत दर्ज कर विरासत पर दोबारा कब्ज़ा जमाया। सासाराम संसदीय क्षेत्र के इतिहास में इस क्षेत्र का सबसे ज्यादा वर्षों तक जगजीवन बाबू ने ही प्रतिनिधित्व किया है। मीरा के लिए चुनौती विरासत को बचाने की तो छेदी के सामने मोदी लहर का भरोसा है. अगले हफ्ते में प्रधानमंत्री की सभा भी सासाराम में होने वाली है.
दुर्गावती जलाशय बनती रही है वैतरणी 
रोहतास और कैमूर जिले में तीन-तीन विधानसभा को समेटे सासाराम संसदीय क्षेत्र में कई समस्याएं हैं., रोजगार के कोई बड़े साधन नहीं हैं. पुराने उद्योग-धंधें लगभग बंद हो चुके हैं. रोहतास में इसके विधानसभा सासाराम, चेनारी और करगहर हैं तो कैमूर जिले में भभुआ, मोहनियां और चैनपुर विधानसभा हैं. दोनों जिलों को सिचाई से जोड़ने वाली दुर्गावती जलाशय परियोजना पिछले चार दशकों से यहां के सांसदी के उम्मीदवारों के लिए संजीवनी बनती रही है. 1976 में जगजीवन राम ने इस परियोजना को शुरू करने की घोषणा की थी. काम भी शुरू हुए लेकिन पिछले 43 वर्षों से कैसा काम चल रहा है आप स्वयं समझ लीजिये। कैमूर जिले में एक भी अंगीभूत महिला कॉलेज नहीं है. इससे शिक्षा के स्तर को समझा जा सकता है. हालांकि रोहतास में शैक्षणिक संस्थान हैं. लेकिन 100 किलोमीटर के दायरे में कोई यूनिवर्सिटी नहीं हैं. यहां के हज़ारों बच्चों को पढ़ने के लिए लंबी दूरी तय कर बनारस, आरा या गया जैसे अन्य दूसरे शहरों में जाना पड़ता है.
लोगों को साल रहा पंडुका पुल का दर्द
रोहतास जिले के पंडुका गांव की सोन नदी पर पुल निर्माण नहीं होने का दर्द क्षेत्र के लोगों को साल रहा है. हाल तक इस पुल के निर्माण के लिए प्रधानमंत्री कोष से राशी के आवंटन की सूचना थी. लेकिन अचानक उस राशि को भागलपुर के विक्रमशिला पुल के लिए स्थानांतरित कर दिया गया. इसे यहां के स्थानीय लोग सांसद की असफलता मानते हैं. चुनाव से पहले सरकार ने 1337 मीटर लंबा पुल का निर्माण इंटर स्टेट कॉरिडोर प्रोजेक्ट के माध्यम से कराने का निर्णय लिया था. लेकिन मामला खटाई में पड़ गया है। इस पुल के बनने से झारखंड, यूपी, छत्तीसगढ़ व बिहार का आवागमन आसान हो जाएगा। इस पुल के उस पार गढ़वा जिले के कांडी प्रखंड का श्रीनगर गांव जुड़ेगा तो छत्तीसगढ़ की दूरी करीब 70 किमी. कम हो जाएगी। इस पुल से यूपी का सोनभद्र जिला भी जुड़ जाएगा। यह पुल छार राज्यों को जोड़नेवाली पुल है.
वर्तमान सांसद : छेदी पासवान
1985 में पहली बार चेनारी से विधायक चुने गए
वर्तमान सांसद छेदी पासवान 1985 में पहली बार चेनारी से विधायक चुने गए. वर्ष 2000 से 2004 तक कृषि राज्य मंत्री, 2005 में विधायक, वर्ष 2008 से 2014 तक विधायक, भवन निर्माण व आवास मंत्री रहे. इससे पहले वर्ष 1989 व 1991 में जद के टिकट पर लोस चुनाव जीते थे. इनकी खासियत कहे या कुछ और, छेदी पासवान सत्ता की धमक दूर से देख-सूंघ लेते हैं. 34 साल के राजनैतिक जीवन में कांग्रेस छोड़ कर सभी पार्टियों में रह चुके हैं. पांच दलों के टिकट पर तो लोकसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. प्रतिद्वंदी मीरा कुमार तीन राज्यों से जीतने वाली एकमात्र नेता हैं. सासाराम के अलावे मीरा कुमार 1985 में बिजनौर, यूपी से और 1996-1998 के चुनाव में दिल्ली के करोलबाग़ सीट से सांसद रही हैं.

कौन जीते कौन हारे
2014              जीते: छेदी पासवान, बीजेपी,     366087
हारे: मीरा कुमार, कांग्रेस,     302760

2009
जीते: मीरा कुमार, कांग्रेस,     192213
हारे: मुनि लाल, बीजेपी,    149259

कुल मतदाता 1771935
पुरुष मतदाता 928122
महिला मतदाता 843776
थर्ड जेंडर 37
19 मई को चुनाव सातवें चरण में 

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