43 सालों से चुनावी मुद्दा बनता रहा है दुर्गावती जलाशय परियोजना

राणा अवधूत कुमार, ICN

देश में सरकारी योजनाओं का जरूरी या गैरजरूरी कारणों से दो-चार साल विलंबित होना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन कोई योजना पिछले 43 सालों बाद भी पूरी होती नजर ना आये तो वैसी योजनाओं का फायदा किसे?
महज 25.30 करोड़ की प्राक्कलित राशि से सुरसा की तरह बढ़ कर आज हजारों करोड़ों में पहुंचने के बाद भी नतीजा सकारात्मक नहीं हो तो आखिर दोषी कौन है? उसमें भी तब जबकि महंगाई, राजनैतिक और विभागीय झंझावतों से निकाल योजना को पूरा कराने में सरकार के करोड़ों रूपये बेवजह साल-दर-साल खर्च हो रहे हों। करोड़ों की राशि खर्च होने के बावजूद प्रोजेक्ट लक्ष्य को पूरा करती नहीं दिख रही हो। अधिकारियों की अफसरशाही और ठेकेदारों के लूटपाट की केंद्र रही यह योजना पिछले पांच दशकों से यहां के जनप्रतिनिधियों के लिए भी ‘गोल्डेन इशू’ बनी रही, जिसका नाम है दुर्गावती जलाशय परियोजना। कैमूर और रोहतास दोनों जिलों के लिए जीवनदायिनी बनने के लिए यह प्रोजेक्ट कई दशकों से लाखों लोगों के लिए बहु-प्रतिक्षित सुखमय भविष्य के सपनों की केंद्र बिंदु बनी हुई है कि कभी ना कभी तो यह पूरा होगी। जगजीवन राम से लेकर महावीर पासवान, छेदी पासवान से लेकर मीरा कुमार, मुन्नीलाल से लेकर ललन पासवान, इन सभी नेताओं के लिए लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव, दुर्गावती जलाशय परियोजना को लेकर वादे जरूर किए जाते हैं, यह और बात है कि पिछले 43 सालों के बावजूद इस परियोजना को अभी तक मुक्कमल रूप नहीं दिया जा सका है।
दुर्गावती जलाशय परियोजना के बारे में जानने के लिए थोड़ा फ्लैश-बैक में जाना जरूरी है। रोहतास-कैमूर के संगम स्थल पर कैमूर पहाड़ी की तलहटी में दुर्गावती नदी के कोनों को बांध कर नहरों के माध्यम से सिंचाई की योजना ही दुर्गावती जलाशय परियोजना है। 1970 के आसपास सिंचाई की व्यवस्था बनाने के लिए रोहतास और कैमूर जिले के सर्वे के दौरान दुर्गावती नदी पर बांध बनाने और इससे दस प्रखंडों की भूमि सिंचित करने की योजना बनी। इस क्षेत्र के बंजर इलाके को सिंचित बनाने की योजना पर तत्कालीन कृषि मंत्री आर.ए. किदवई और सिंचाई मंत्री के.ऐल. राव ने काफी काम किया था। हालांकि इसके विधिवत उद्घाटन में सालों लग गये। साल 1976 में स्थानीय सांसद सह-सिंचाई मंत्री जगजीवन राम इस परियोजना का शिलान्यास करने के साथ अपने राजनैतिक जीवन के अंतिम दिनों तक इसे ढ़ोते रहे। बाद में लोकसभा अध्यक्षा रही मीरा कुमार से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री मुन्नीलाल और मौजूदा सांसद छेदी पासवान, सभी सांसदों ने दुर्गावती का इस्तेमाल अपने नफे-नुकसान के आधार पर चुनाव में तो किया लेकिन धरातल पर इसकी निगरानी करना जरूरी नहीं समझा। जल-संसाधन और वन-विभाग के भूमि अधिग्रहण में विभागीय पेंच और कुछ मामलों में कानूनी अड़चन आने से यह प्रोजेक्ट लगातार लंबी होती गयी, कई सालों तक दुर्गावती का मामला कागजों के हस्तानांतरण में बीत गया।
1977 में ही बांध स्थल के चयन और वन-विभाग से एनओसी ना मिलने की स्थिति में चयनित स्थल ही विवादों के घेरे में आ गया। दो करोड़ की राशि से तब कार्यस्थल पर प्रारंभिक कार्य होने लगे थे, लेकिन उच्चस्तरीय कमिटी गठित न होने और अधिकारियों की लापरवाही से काम बंद होता गया। साल 1978 में बिहार के तत्कालीन सिंचाई मंत्री सच्चिदानंद सिंह ने एकसाथ 13 करोड़ राशि आवंटित करने के साथ बांध स्थल के सभी विवादों को खत्म कराकर 1980 तक नहरों में पानी पहुंचाने की घोषणा कर दी, लेकिन नतीजा एक बार फिर वही ढ़ाक के तीन पात। 1985 तक बांध स्थल रोहतास के करमचट और कैमूर के भीतरी इलाके में बांध बांधने के लिए आवश्यक उपकरणों और अधिकारियों की बढ़ती आवाजाही के बीच एक बार फिर से 1991 में नहरों में पानी देने का सपना पूरा नहीं हो सका। 1990 में केंद्र और बिहार दोनों जगह सरकारें क्या बदली, देश की सियासत ही बदल गयी, उस दौर में तो बिहार में तो कार्य-संस्कृति लगभग मृत हो गयी थी। कानूनी अड़चनें खत्म होने के बावजूद योजना पूरी होने से दूर ही रही, जबकि इस पर सरकार के करोड़ों रूपये प्रति साल अनावश्यक रूप से खर्च हो रहे हैं। संभवत दुर्गावती देश की पहली ऐसी परियोजना है, जिससे कई गांवों की तीन-तीन पीढ़ियों का सपना जुड़ा हो।
जिले के तीन प्रखंडों चेनारी, शिवसागर व सासाराम और कैमूर जिले पांच प्रखंडों भगवानपुर, रामपुर, कुदरा, दुर्गावती और मोहनियां प्रखंडों की करीब 20000 हेक्टेयर बंजर-बेकार भूमि को उर्वर बनाने और कुल मिला कर 35000 हेक्टेयर भूमि को सिंचने का सपना इस परियोजना से जुड़ा हुआ है। इन प्रखंडों से जुड़ने और इस परियोजना से सीधे तौर पर लाभान्वित होने वाले 384 गांवों के लाखों लोगों का भविष्य भी इससे जुड़ा है, फिर भी काम की गति बेहद धीमी और व्यवस्था ऐसी भ्रष्ट कि अधिकारी से ले चपरासी तक सभी अपनी सुविधानुसार इसे कमाई का साधन बनाते रहे। तभी तो 26 करोड़ की योजना हर दो-तीन साल पर बढ़ती चली गयी, 1980 में 31 करोड़, 1991 में 101 करोड़ 2001 में 181 करोड़ और 2011 में 690 करोड़ से 2017 में 1064 करोड़ के आंकड़ों को पार कर रही है, फिर भी किसानों की आस पूरी नहीं हुई। चेनारी प्रखंड के सदोखर गांव निवासी दया सिंह कहते हैं कि बचपन से दुर्गावती परियोजना के बारे में सुनता रहा हूं कि इस साल खेतों में पानी मिलने लगेगा, लेकिन उनके पिताजी जयनाथ सिंह के मरने के कई सालों बाद उनका नाती यानी लड़के का बेटा भी दुर्गावती की पानी के बारे में थोड़ा-बहुत समझने लगा है कि नहर में पानी दुर्गावती से मिलेगी तो घर की हालत कुछ ठीक हो जायेगी।
सिंचाई विभाग की एक परियोजना, पानी को रोक कर खेतों तक पहुंचाने की सुनियोजित व्यवस्था, जिसमें मुख्य रूप से तीन नहर प्रणालियों के सहारे यह परियोजना संचालित होनी है। दायें किनारे के मुख्य नहर से रोहतास जिला और बांये नहर से कैमूर जिला को पानी देने की योजना है। एक और बड़ी कुदरा वीयर भी कैमूर जिला को सिंचित करती है। दुर्गावती नदी की पानी को बांधकर कैमूर और रोहतास दोनों जिलों के 35000 हेक्टेयर असिंचित यानी बंजर खेतों की सींचने की दूरगामी योजना की पहल है, दुर्गावती जलाशय परियोजना जिसकी परिकल्पना जगजीवन राम जैसी शख्सियत ने की थी। 10 जून 1976 को शिलान्यास होने के साथ ही यह योजना उपरोक्त दोनों जिलों के सात प्रखंडों के करीब 384 गांवों के लाखों किसानों की एक जीवनदायिनी के रूप में मानी जानी लगी। कई स्तरों के सर्वें और इस एरिया पर हुए स्टडी में यह बातें प्रमुखता से उठी कि डैम बनने से इलाके के लोगों को भरपूर पानी तो मिलेगा ही, डैम में मौजूद पानी से बिजली और इससे सटे कैमूर पहाड़ी की तलहटी, शेरगढ़ का किला और ऐतिहासिक स्थल गुप्तेश्वरनाथ के प्राकृतिक सौंदर्यं को जोड़कर एक विस्तृत पर्यटन जोन भी डेवलप किया जा सकता है। लेकिन सोने के अंडे देने वाली मुर्गी के समान यह योजना विभागीय अधिकारियों के लिए पसंदीदा साइट रहा है, नेताओं और स्थानीय जनप्रतिनिधियों के लिए तो दुर्गावती चुनावी वैतरणी पार कराने का चुनावी स्टंट ही रही है। 17वीं लोकसभा के चुनाव में भी विभिन्न दलों द्वारा दुर्गावती को लेकर दावों का दौर जारी है।
राजनेताओं के लिए तो यह योजना पिछले चार दशकों से फल देनेवाली ऐसी योजना के रूप में रही जो कम से कम रोहतास-कैमूर के हर स्तर के चुनावों में सभी दलों के एजेंडे में रही। कुछ जनप्रतिनिधियों यथा जगजीवन राम, मीरा कुमार, जवाहर पासवान, ललन पासवान सरीखे नेताओं ने प्रोजेक्ट में गति लाने के लिए कुछ प्रयास किया है, लेकिन प्रयासों का सकारात्मक पक्ष अभी दिख नहीं रहा है। कारण कि मौजूदा दौर में सालाना 67 करोड़ रूपये इस योजना में केवल विभिन्न स्तरों पर सरकारी कर्मचारियों के वेतन-भत्ते आदि में खर्च होते हैं, जो कि जल-संसाधन विभाग बिना काम कराये भी देने को बाध्य है, जबकि इस संबंध में आरटीआई पिछले तीन महीनों से विभागीय टेबलों पर घूम रहा है कि क्या यह योजना के बजट को नहीं बढ़ायेगी। यहां ठेकेदारों की कमाई अलग से है, और अधिकारियों के साथ मिलकर योजना के मानकों में छेड़छाड़ कर भ्रष्टाचार की सभी संभावनाओं पर काम कराना तो सरकारी कार्यों में अब आम बात हो गयी है। लूटतंत्र का जीवंत उदाहरण बन चुकी दुर्गावती प्रोजेक्ट दशकों से इंजीनियरों-अधिकारियों की पसंदीदा पोस्टिंग बनती रही है, जिसमें नेताओं को पूरा सहयोग रहा है।
कितनी हैरत की बात है कि सरकार की सारी कोशिशों और योजना में पर्याप्त राशि होने के बावजूद मौजूदा समय में कार्य की गति बेहद धीमी है। अभी हाल में ही मुख्यमंत्री के साथ विभागीय सचिव अरूण कुमार द्वारा ना सिर्फ कार्य प्रणाली पर नाराजगी व्यक्त की गयी बल्कि ग्लोबल टेंडर के बाद निर्माण कार्यों के लिए अधिकृत एजेंसी बाबा हंसराज लिमिटेड की कार्यशैली में सुधार लाने और तेजी से कार्य पूरा करने का निर्देश कड़े शब्दों में दिया है। इसे अधिकारियों की लापरवाही कहे या सरकारी राशि के लूट की एक सुनियोजित साजिश, बेहद आश्चर्य की बात है कि दुर्गावती जलाशय परियोजना पिछले 41 वर्षों से पूरा होने-कराने में करोड़ों रूपये खर्च होने के बावजूद परिणाम सही दिशा में नहीं प्राप्त हो रहे, क्योंकि यह प्रोजेक्ट तात्कालिक प्राक्कलित राशि महज 25.30 करोड़ से सुरसा के मुंह की तरह बढ़ते हुए अब तक 1064.28 करोड़ लील गयी है, मगर नतीजा सिफर ही रहा है अब तक। फरवरी में डैम का जायजा लेने पहुंचे सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने प्रोजेक्ट को पूरा होने में पैसों को आड़े नहीं देने की बात कह अफसरशाही की लगाम कस कर तो गये हैं, लेकिन देखने वाली बात होगी कि इसका असर कितना और कब तक धरातल पर दिखता है। हालांकि इस विशाल परियोजना के निर्माण की गति शुरू से ही संदिग्धता के घेरे में रही है।
परियोजना के कच्छप चाल की वास्तविक स्थिति है कि इस वित्तीय साल  में 33 करोड़ की राशि आवंटित होने के बावजूद अभी तक मात्र 30 लाख रूपए ही खर्च किये जा सके हैं। वह भी तब जबकि पिछले एक साल में सूबे के मुख्यमंत्री तीन बार जिले में आये और दुर्गावती की प्रगति रिपोर्ट देखी और हर बार अधिकारियों की फटकार लगायी। बावजूद इसके मौजूदा हाल है कि डैम के डूब क्षेत्र में पर्याप्त मात्रा में पानी मौजूद नहीं है, किसानों के खेतों तक समुचित पानी आज भी दूर की कौड़ी बनी हुई है, जो पानी है भी वह देखरेख के अभाव में बेकार हो रही है। डैम से निकलने वाली नहरें, माइनर एवं वितरणियों और संपर्क पथों की हालत भी अच्छी नहीं हैं। अभी 102 किलोमीटर लंबी माइनरों का निर्माण होना बाकी है, हालांकि आधे-अधूरे दुर्गावती परियोजना का उद्घाटन 15 अक्टूबर 2014 को ही तात्कालिक मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कर दिया था, इस अधूरी परियोजना का श्रेय लेने के लिए सभी दलों के नेताओं में आपाधापी मची हुई थी। कहना मुश्किल नहीं है कि लाख प्रयासों के बावजूद अधिकारियों की लूट-खसोट और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से ही चार सालों का प्रोजेक्ट पिछले 41 सालों से आधा-अधूरा पड़ा हुआ है, जिसकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। आखिर इस विलंब का कारण क्या है सिवाय भ्रष्टाचार के, हालांकि चुनावों में यह हर बार ज्वलन्त मुद्दा बनता रहा है।
रोहतास-कैमूर जिलों के खेतों की सिंचाई के लिए महती इस डैम से जुड़ी नहरों, वितरणियों के निर्माण में अनावश्यक विलंब पर जल-संसाधन विभाग एक पखवाड़े पूर्व स्थानीय अधिकारियों से गंभीरता से कैफियत मांगते हुए साप्ताहिक प्रगति रिपोर्ट की तलब की है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी हालिया दौरे में पैसों की कमी ना आने देने के साथ ही कार्य में तेजी लाने और इस साल के खरीफ फसल से पूर्व किसानों की खेतों में सुव्यवस्थित रूप से पानी पहुंचाने का निर्दोष दिया। लेकिन अहम सवाल कि विभागों के झंझट खत्म हुए भी लगभग बारह साल गुजर गये लेकिन ना जाने यह कौन सा अद्वितीय डैम बन रहा है जहां का निर्माण कार्य पूरा ही नहीं हो पा रहा है। सरकारी तंत्र इसे पूरा कराना ही नहीं चाह रही है? चार दशकों की यात्रा पूरी कर पिछले साल जलाशय से पानी देने का काम शुरू हुआ पर नहरों और माइनरों की खस्ताहाल रहने की वजह से पटवन का सदुपयोग नहीं हो सका। पिछले साल इस परियोजना को प्रधानमंत्री ग्रामीण सिंचाई योजना अंतर्गत ले लिया गया है, अब उसी के तहत 33 करोड़ की राशि से विभिन्न नहरो, माइनरों व वितरणियों के लंबित निर्माण कार्य को किया जाना है, जिसका श्रेय लेने के लिए भाजपा-कांग्रेस दोनों आतुर दिखाई दे रहे हैं।
वर्तमान विभागीय आदेशों के आलोक में कार्य तो तेजी से जारी है परंतु देखने वाली बात होगी यदि 31 जुलाई से पहले रिवर क्लोजर यानी मुख्य नहरों का कार्य पूरा हो गया तो इस साल सासाराम और कुदरा, भभुआ और मोहनियों के सैकड़ों गांवों के लाखों लोगों का दशकों पुराना ख्वाब पूरा होता नजर आयेगा। पिछले साल नहरों में पानी तो गया लेकिन निकटवर्ती गांवों को ही इसका लाभ मिल सका था, कई गांवों में तो पानी को लेकर विवाद भी उत्पन्न हो गये थे। इस संबंध में अधीक्षण अभियंता सुनील कुमार ने बताया कि दुर्गावती परियोजना का कार्य तेजी गति से नॉनस्टाप चल रहा है, दो-दो शिफ्ट में काम हो रहे हैं, बीच में नक्सलियों और स्थानीय व्यवधान आने से कार्य प्रभावित हुआ था लेकिन अब कोई समस्या नहीं है, युद्ध स्तर पर नहरों का निर्माण कार्य चल रहा है। हालांकि इसमें भी विभाग के अधिकारी लोगों की आंखों में धूल झोंक रहे हैं, कारण कि माइनरों के निर्माण के लिए अधिकृत कंपनी को जल-संसाधन विभाग ने छह माह पहले ही ब्लैकलिस्टेड कर दिया है, जिसे लेकर विधानमंडल में भी हंगामा हुआ था।
राजनैतिक आश्वासन और कार्य की गति को देख कर लगता है कि 43 सालों बाद ही सही लेकिन लोगों की उम्मीदें कायम हैं, शिवसागर, सासाराम के दक्षिणी क्षेत्रों चेनारी, रामपुर, भगवानपुर प्रखंडों के हजारों हेक्टेयर बंजर जमीन वाले गांवों के किसानों के सपना पूरा होने का समय आ गया है। जल-संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता राम पुकार रंजन ने भी प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य एजेंसी को 31 जुलाई का डेडलाइन देते हुए कार्य पूरा करने की हिदायत दी है। वहीं लोकसभा चुनाव में सासाराम संसदीय क्षेत्र के दोनों उम्मीदवार मीरा कुमार व छेदी पासवान इसे चुनाव में अपनी उपलब्धि बताकर लोगों के मत को अपनी ओर खींचने की जुगत में लग गए हैं। हालांकि दुर्गावती जलाशय परियोजना से जुड़े गांवों के लोग इस बार इसे मुद्दा बनाते हुए मतदान का बहिष्कार करने का मन भी बना रहे हैं।
दुर्गावती जलाशय परियोजना से जुड़े कुछ तथ्य
कैमूर (लाभान्वित जिला); भगवानपुर, रामपुर, कुदरा, दुर्गावती एवं मोहनियां (प्रखंड); 21772 हेक्टेयर (कृषि कमांड क्षेत्र)
रोहतास (लाभान्वित जिला); चेनारी, शिवसागर, सासाराम (प्रखंड); 11695 हेक्टेयर (कृषि कमांड क्षेत्र)
दुर्गावती डैम में मुख्य रूप से तीन नहर प्रणाली से नहरों में पानी देने की व्यवस्था है।
बांया मुख्य नहर से कैमूर जिले को पानी मिलता है।
दायां मुख्य नहर से रोहतास जिला को पानी मिलता है।
तीसरा एक कुदरा वीयर है जिससे कुदरा व मोहनियां को पानी मिलेगा, कुदरा वीयर से जुड़े गांवों की सर्वाधिक 16200 हेक्टेयर भूमि इस योजना में सिंचित होगी।
रोहतास के मुकाबले कैमूर में दोगुने असिंचित इलाकों को सिंचित करेगा।
दायें मुख्य नहर की लंबाई – 34.08 किलोमीटर
बायें मुख्य नहर की लंबाई – 22.6 किलोमीटर
साल-दर-साल योजना का बढ़ता बजट
1976 में 25.30 करोड़ से योजना की शुरुआत
1977 में 2 करोड़ की राशि से कार्य प्रारंभ
1978 में 13 करोड़ की राशि स्वीकृत
1980 में ही बढ़ कर 31 करोड़ की योजना
1981 में बढ़ कर 36 करोड़
1991 में बढ़ कर 101 करोड़
2001 में बढ़ कर 181 करोड़
2011 में बढ़ कर 690 करोड़
2017 में बढ़ कर 1064 करोड़

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