चितौड़गढ में दो घरानों की लड़ाई में सुशील सिंह लगाएंगे जीत की चौकड़ी? (हाल-ए-लोकसभा, औरंगाबाद)

राणा अवधूत कुमार
1989 के जनता लहर में राम नरेश सिंह उर्फ़ लूटन सिंह कांग्रेस को हरा पहली बार बने सांसद 
कांग्रेस का जादू हुआ खत्म, निखिल कुमार को टिकट नहीं मिलने से चुनाव लोगों में नाराज़गी
हम के खाते में सीट जाने से भाजपा की स्थिति मजबूत तो, माय समीकरण का भी रहेगा प्रभाव  
पिछले 72 वर्षों से कभी कांग्रेस का गढ़ रहे औरंगाबाद क्षेत्र पर 1989 के बाद जनता दल, समता, जदयू और अब दो बार से भाजपा की सीट बन चुकी है. हालांकि बीच में कांग्रेस दो बार यहां जीती है. राजपूत बहुल क्षेत्र होने के कारण यहां किसी अन्य जाति को प्रतिनिधत्व करने का मौका नहीं मिल सका. यहां आज़ादी से लेकर अब तक सभी सांसद राजपूत ही बनें। कभी राज्य के मुख्यमंत्री रहे सत्येंद्र नारायण सिंह यहां से आजीवन सांसद रहे. मुख्यमंत्री भी बने तो सांसदी पद से इस्तीफा देकर, राज्य सरकार में मंत्री भी बने तो सांसदी से इस्तीफा देकर, 1950 से 1989 के बीच में कुछ वर्षों को छोड़ दिया जाए तो लगभग 34 वर्षो तक सत्येंद्र नारायण सिंह उर्फ़ छोटे साहब औरंगाबाद सीट का प्रतिनिधित्व किये। 1989 के जनता दल के लहर में राम नरेश सिंह छोटे साहब की बहू श्यामा सिंह को हरा कर पहली बार सांसद बने. दूसरी बार उन्होंने सत्येंद्र नारायण सिंह के अभेद्य किले को तोड़ते हुए उन्हें भी हरा दिया। दुर्भाग्य देखिए कि 1996 में वीरेंद्र सिंह ने भी सत्येंद्र नारायण सिंह को हरा दिया। 1998 में मौजूदा सांसद सुशील सिंह ने वीरेंद्र सिंह को हरा कर औरंगाबाद की लड़ाई को दो परिवारों की विरासत को बचाने की लड़ाई हो गयी. 1999 में श्यामा सिंह ने सुशील सिंह को हरा दिया तो 2004 में आईपीएस की नौकरी से सेवानिवृत होने के बाद राजनीती में आये निखिल कुमार ने दोबारा सुशील सिंह को हरा दिया। 2009 में वापसी के बाद सुशील सिंह का इस सीट पर कब्ज़ा है. 17 वीं लोकसभा चुनाव के पहले चरण में ही औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र के लिए चुनाव होना है. 11 अप्रैल यानि गुरूवार को है. मुकाबला भाजपा के सुशील सिंह और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा यानि हम पार्टी के उपेंद्र प्रसाद है. सुशिल सिंह जहां जीत की चौकड़ी मारने की तैयारी में हैं तो वहीं राजद, रालोसपा के साझा उम्मीदवार पहली बार यहां से भाग्य आजमा रहे हैं.
इस क्षेत्र में समाजवादियों का कब्जा 1989 से शुरू हो गया था जिसका नतीजा है कि सुशील सिंह 1998 से लगातार यहां से मैदान में रहते हैं. क्षेत्र में समय भी देते रहे हैं. मोदी सरकार की योजनाओं के साथ सांसद रूप में सुशील सिंह का प्रदर्शन बढ़िया रहा है. औरंगाबाद सीट राजपूत बहुल होने के साथ सामाजिक समीकरण को भी ध्यान में लाता हैं. 18 प्रतिशत राजपूत हैं तो 10 प्रतिशत यादव, 8 प्रतिशत मुस्लिम और 19 प्रतिशत एससी-एसटी वोटर्स हैं, तभी तो यहां जदयू, समता व हम जैसी पार्टियों के उम्मीदवार सामाजिक समीकरण को ध्यान में रखते हैं. 1991 के बाद भाजपा ने तो औरंगाबाद में कभी अपने प्रत्याशी ही नहीं उतारे। भाजपा इसके बाद हर चुनाव में यह सीट अपने सहयोगी जदयू, समता को देती रही. 2014 में सुशील सिंह भाजपा की टिकट पर सांसद बने है तो अब 2019 में भी दम-ख़म के साथ मैदान में हैं. उधर उपेंद्र प्रसाद यादव, मुस्लिम, दलित और कुशवाहा के वोट पर तैयारी में पीछे नहीं हैं.
बिहार केशरी अनुग्रह नारायण सिंह के पुत्र सत्येंद्र नारायण सिंह की कर्मस्थली रहे इस क्षेत्र में आज भी कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में रही है. निखिल कुमार को टिकट नहीं मिलने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं को काफी मलाल है. उनके समर्थन में सदाकत आश्रम तक धरना प्रदर्शन हुए. निखिल कुमार के टिकट नहीं मिलने से औरंगाबाद की लड़ाई कुछ नीरस दिख रही है. कांग्रेस की यह परंपरागत सीट रही है. लेकिन इस सीट पर 1989 के जनता दल के लहर के बाद कांग्रेस कुछ पीछे जाती रही. इसमें सुशील सिंह हर लड़ाई में एक तरफ से तैनात दिखे। इस बार भी एनडीए गठबंधन की ओर से सुशील सिंह अपने कार्यों और सांसद के रूप में उपलब्धियों को लेकर जनता का समर्थन मांग रहे हैं.
बिहार केशरी अनुग्रह नारायण सिंह के पुत्र सत्येंद्र नारायण सिंह की कर्मस्थली रहे इस क्षेत्र में आज भी कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में रही है. निखिल कुमार को टिकट नहीं मिलने से कांग्रेस कार्यकर्ताओं को काफी मलाल है. उनके समर्थन में सदाकत आश्रम तक धरना प्रदर्शन हुए. निखिल कुमार के टिकट नहीं मिलने से औरंगाबाद की लड़ाई कुछ नीरस दिख रही है. कांग्रेस की यह परंपरागत सीट रही है. लेकिन इस सीट पर 1989 के जनता दल के लहर के बाद कांग्रेस कुछ पीछे जाती रही. इसमें सुशील सिंह हर लड़ाई में एक तरफ से तैनात दिखे। इस बार भी एनडीए गठबंधन की ओर से सुशील सिंह अपने कार्यों और सांसद के रूप में उपलब्धियों को लेकर जनता का समर्थन मांग रहे हैं.
1950 से 1984 तक कांग्रेस इस सीट पर रही थी हावी
1950, 1952 और 1957 में औरंगाबाद क्षेत्र से सत्येंद्र नारायण सिंह लगातार सांसद बने. 1961 में सत्येंद्र नारायण सिंह के मंत्री बनने के बाद रमेश प्रसाद सिंह यहां से सांसद बने. 1962 में रामगढ़ के राजा कामाख्या नारायण सिंह की बहू महारानी ललिता राज्य लक्ष्मी सांसद बनी. 1987 में कांग्रेस पहली बार यहाँ राम नरेश सिंह से हारी। इस बीच में 1971 से 1984 तक सत्येंद्र नारायण सिंह चार बार सांसद बने। 1989-91 में जनता दल के लहर में राम नरेश सिंह लगातार यहां से दो बार सांसद बने रहे। इसके बाद हर चुनाव में यहां से सुशील सिंह और छोटे साहब के परिवार के सदस्यों के बीच जंग होती रही. अलग-अलग दलों के प्रत्याशी यहां सांसद बनने के लिए प्रयास करते रहे। लेकिन मौका इन्हीं दो परिवारों की बीच की लड़ाई बन कर रह गयी है.
इस बार भाजपा हम में है सीधा मुकाबला
17 वीं लोकसभा चुनाव में एनडीए की ओर से भाजपा प्रत्याशी सुशील सिंह व महागठबंधन की ओर हम प्रत्याशी उपेंद्र प्रसाद के बीच सीधी टक्कर है। दोनों गठबंधनों की ओर से जातीय समीकरण को ध्यान में रख प्रत्याशियों का चयन किया गया है। लेकिन बसपा द्वारा भी इस सीट पर स्थानीय उम्मीदवार नरेश यादव के उतरने से मुकाबला रोचक होने की पूरी संभावना है। हम जहां यादव, मुस्लिम व कुशवाहा वोट के सहारे ही चुनावी जीत के मंसूबे पाले हुए है। वहीं भाजपा सवर्ण वोटरों के अलावे अति पिछड़े वोटों की सियासत कर चुनावी जीत हासिल करना चाह रही है। इस बीच बसपा अपने कैडर दलित वोटरों के साथ यादव मतों पर नजर बनाए हुए है। जिससे औरंगाबाद संसदीय क्षेत्र का मुकाबला रोचक होने की संभावना भी है।
औरंगाबाद सीट की भौगोलिक संरचना
औरंगाबाद लोकसभा सीट औरंगाबाद और गया जिलों के बीच का संसदीय क्षेत्र है। जिसमें कुल छह विधानसभा क्षेत्र शामिल किए गए हैं। इस सीट में औरंगाबाद जिला के कुटुम्बा, औरंगाबाद और रफीगंज विधानसभा सीटें शामिल हैं। वही गया जिला के गुरुआ, इमामगंज और टेकारी विधानसभा सीट शामिल है. यहां लोकसभा चुनाव के पहले ही चरण चरण में 11 अप्रैल को एक साथ सभी मतदान केंद्रों पर मतदान कराएं जाएंगे। लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 1737821 जिसमे महिला मतदाताओं की संख्या 821793 है तो पुरूष मतदाताओं की संख्या 915930 है।
वर्तमान सांसद – सुशील सिंह (तीन बार सांसद रहने का अनुभव)
औरंगाबाद संसदीय सीट से 2014 के आम चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार सुशील सिंह लोकसभा सांसद बने। मोदी लहर के साथ पूर्व के अनुभवों के साथ सुशील सिंह मतदाताओं के लिए विकास और देश की सुरक्षा जैसे मुद्दों को लेकर सामने हैं. मूल रूप इसी जिला के निवासी सुशील सिंह की क्षेत्र में अच्छी पकड़ है. उधर उपेंद्र प्रसाद भी लड़ाई में बने हुए हैं. देखने वाली बात होगी कि दो बार से चुनाव जीतने वाले सुशील सिंह हैट्रिक लगाते हैं या नहीं।

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