शराब का जहर

उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के एक सीमावर्ती गांव में किसी की मृत्यु पर तेरहवीं की रस्म के लिए इकट्ठा हुए आसपास के चार-पांच गांवों के लोग एक साथ जहरीली शराब के शिकार हो गए।
संयोग यह कि ऐसी ही घटना ठीक उसी दिन उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा के पास पडऩे वाले कस्बे कुशीनगर में भी दोहराई गई। अगले दिन हरिद्वार, सहारनपुर, कुशीनगर और मेरठ के अस्पतालों में एक के बाद एक होने वाली मौतों का जो सिलसिला शुरू हुआ, उससे मृतकों की संख्या 87 के पार चली गई, और जानकारों के मुताबिक कई और मरीजों की स्थिति भी गंभीर बनी हुई है।जैसा कि चलन रहा है, दोनों राज्यों की सरकारों ने हादसे के बाद इस मसले पर अपनी गंभीरता का सबूत संबंधित विभागों के कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के रूप में पेश करने का प्रयास किया है। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक कदम आगे बढ़ते हुए राज्य में पुलिस बल की एक खास टीम गठित कर दी, जिसने विभिन्न जिलों में अवैध शराब की बिक्री के खिलाफ अभियान भी शुरू कर दिया। कोई नहीं जानता कि इन जुड़वां हादसों के बाद शुरू किया गया यह अभियान कितने दिन चलेगा और शराब के गैरकानूनी धंधे पर इससे कितनी रोक लग पाएगी। अब तक का अनुभव बताता है कि सांप के गुजर जाने के बाद लकीर पीटने वाली ऐसी कवायदें तभी तक चलती हैं जब तक अस्पताल में दम तोड़ते मरीजों की तस्वीरों को मीडिया में जगह मिल पाती है। गरीबों की जान अपने देश में इतनी सस्ती है कि ऐसी घटनाएं सुर्खियों में आकर भी जन मानस में कोई हलचल नहीं पैदा कर पातीं और इनका खबर में रहना भी बमुश्किल एक-दो दिन की बात होती है। स्वाभाविक है कि सरकारें भी जहरीली शराब के तांडव पर ऐसी रस्मी कवायदों से आगे बढऩा जरूरी नहीं मानतीं। यह सचमुच विचित्र है कि पूरी दुनिया शराब को बाकी हजारों सामानों की तरह सिर्फ एक उत्पाद भर मानती है, लेकिन भारत में आम लोगों से कहीं ज्यादा राज्य सरकारें इसे नैतिकतावादी नजरिए से देखती हैं। गुजरात और बिहार जैसे राज्य मद्य निषेध के नाम पर पुलिसिया सख्ती से इसका प्रयोग पूरी तरह बंद कर देने की खुशफहमी में हैं, जबकि जिन राज्यों में इसे गैरकानूनी घोषित नहीं किया गया है, वहां अधिकाधिक टैक्स के जरिए इसे ज्यादा से ज्यादा महंगी करने का रुझान देखा जा रहा है।

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