सत्येन्द्र कुमार सिंह, एग्जीक्यूटिव एडिटर-ICN ग्रुप
हुआ यूँ कि इस दिवाली जब मै दिए खरीदने गया तो फ़िज़ा में कुछ अलग ही रंग बिखरा हुआ था| या यूँ कहें कि रंग तो कुछ सदाबहार सा ही था पर शायद इस बार कुछ दूजे से चश्में से देखने की इच्छा थी मेरी|
इस बार देश में २०१९ के चुनाव के मद्देनज़र त्यौहार पर ध्रुवीकरण की राजनैतिक उठापटक से परे इस चीनी झालर पर कोई विशेष ट्रोल नही हुआ| हाँ, इस बार लोगों ने पटाखे ख़रीदे भी और जलाये भी पर एक जागरूकता अवश्य दिखाई दी लोगों के व्यवहार में| कम आवाज़ वाले एवं कम प्रदूषण वाले पटाखों का प्रयोग करते हुए लोगों को देखा तो एहसास हुआ कि मेरे साथ लालमन मियां और उनके घर में पाले हुए जानवर भी चैन की साँस ले रहे होंगे| आखिर प्रदूषण से होने वाली समस्या कोई धर्म या जाति देखकर तो नहीं होती है न| यूँ तो प्रदूषण रोज़ होता है किन्तु एक रात में ही कई गुना बढ़ने वाले प्रदूषण से किसका भला होगा, पता नहीं|
लालमन मियां, हमारे निकट के बाज़ार में दिए बेचने आए हुए थे| और मुझे एहसास हुआ कि दिवाली किसी धर्म या पन्थ का नही बल्कि एक संस्कृति है, एक चलन है, लोगों में मेल-भाव बढ़ने का| घरों में लाए हुए नए बर्तन, बनाए हुए रंगोली, दीयों की रोशनी आदि मन को एक अलग ही दुनिया में ले जाते हैं और कुछ पल के लिए ही सही, हम वर्चुअल दुनिया से हटकर, एक परिवार बन कर इस त्यौहार को मनाते है| दिए, बर्तन, फूल, मूर्तियाँ, मिठाईयाँ आदि सब बिक रहे थे और हर कमाई के साथ दिवाली के मायने या यूँ कहे कि त्यौहार का सामाजिक एवं आर्थिक मतलब समझ में आ रहा था|
दिन भर की भाग-दौड़ एवं खरीदारी के बाद जो चंद मिनटों का पॉवर-नैप लिया तो एक विचार कौंधा कि अगर आज माँ लक्ष्मी वास्तव में लोक-भ्रमण पर निकलेंगी तो क्या हमारे घर में आएँगी? शांति प्रिय एवं स्वच्छ वातावरण में रहने वाली यह देवी, इस शोर-शराबे से कितने दूर होती जाएंगी, पता नहीं|
खैर, बहुत दिनों बाद आज सपरिवार हम एक त्यौहार मना रहे थे| फिर याद आया कि देश की सरहद पर मेरे देश के शेर खड़े है और मन ही मन उनके लिए प्रार्थना करते हुए पूजा पर बैठने ही जा रहा था कि बाहर घंटी बजी तो देखा कि एक कूरियर वाला डिलीवरी बॉय खड़ा था| दिल्ली से मौसी के यहाँ से मिठाई का पैकेट आया था| उस डिलीवरी बॉय को आज के दिन भी काम करना पड़ रहा था, उन बहुत से प्राइवेट एवं आवश्यक सेवाओं में तत्परता से लगे हुए कर्मचारियों की तरह, जिनका परिवार मन मार कर त्योहार की तैयारियों में लगा हुआ होगा| आखिर कर्म तो पूजा है न!
जब पूजा हेतु हम सब बैठ गये| दिवाली की कथा सुनने का समय आया और उसमे इंगित एक बात अब भी याद है कि पुण्य करो और सौहार्द से रहो तो लक्ष्मी ज़रूर आपके मन और परिवार के साथ निवास करेंगी| सामाजिक पुण्य हेतु वृक्ष का लगाना, कुँए और पोखर खुदवाना, गरीब की सेवा करना आदि तो आवश्यक धार्मिक कार्य बताए गए है| जब तक ये सब सोचता तब तक कथा समाप्त हो गई थी और प्रसाद का समय हो गया था| प्रसाद में मिठाई को देख कर मिलावट वाला समाचार फिर नज़रों के सामने से गुज़र गया और याद आ गया बचपन में घर में बनायी जाने वाली मिठाइयाँ| जाने कहाँ गए वो दिन….?
पता नही कहाँ पुरानी बातों में खोता जा रहा था| तभी वापस लालमन चचा की याद आ गई| कितने प्यार से वो दिये बेच रहे थे| कुछ दिन पूर्व ही मैंने अपने परिचित बलबीर सिंह जी के एन.जी.ओ. ‘उम्मीद’ के बहुत से दिये ख़रीदे थे इसलिए ज्यादा दीयों की ज़रूरत तो नही थी पर लालमन मियां की आवाज़ में कुछ अलग ही जादू था| लोगों को बाबूजी जैसे शब्दों से सम्बोधन करने वाले लालमन चचा मुझे बेटा कह कर बुला रहे थे| “१० रूपये के १० दिए है, बेटा! ले लो”|
दो दर्जन दिए पैक करने के बाद उन्होंने ०२ दिए और पैक कर दिए| “बेटा! आपके घर में सदा बरकत रहे, यही दुआ है; ये दिए मेरी तरफ से आपके लिए छोटा सा तोहफा है”, लालमन चचा बोलते गए, और मैं उनकी आँखों तथा हिलती हुई दाढ़ी में से निकलते हुए भावों में खोता जा रहा था|
चलते-चलते लालमन चचा के वे शब्द अब भी कानों में गूंज रहे हैं कि हम शायद अगली बार इस देशी त्यौहार में “हैप्पी दीवाली” की जगह “शुभ दीवाली” बोल कर एक दूसरे का अभिवादन करें| और एक दूसरे के साथ जुड़ने के लिए कुछ नया करें; कुछ वैसा ही जैसे व्हाट्सएप्प ने स्टीकर को लांच कर के किया है| जुड़े रहने के लिए नित नए प्रयोग करने पड़ते है और बाज़ार में टिकने के लिए भी| तभी तो इस बार दीवाली में नई सोच वाले बहुत से विज्ञापन दिखाई दिए|
एक और अर्थशास्त्र की परिभाषा गढ़ने हेतु पटाखों से निकले हुए लोहे और ताम्बे की छड़ों को बटोरने के लिए कबाडियों की रात्रि कालीन सेवा शुरू हो गई थी| इसी बीच हम सबने २.५ माइक्रोन से कम के प्रदूषित कण अपने फेफड़ों में जमा कर लिया है जो कि आजीवन हमारे साथ रहेगा; फेफड़ों को कमजोर करने वाले इन कणों का जोड़ किन्तु बहुत मज़बूत है| हमारे लिए एक छोटी सी उपलब्धि यह कि देर रात सोने के बाद हम सुबह देर से जागेंगे और एवं बीमार करने वाली सुबह की हवा से एक दिन के लिए बच जायेंगे| विश्व में प्रदूषण रेटिंग में अपने देश के अनेक शहर है और इसमें अपना नवाबी शहर लखनऊ बहुत ऊपर है| इस बार अनेक जागरूकता अभियान की वजह से बहुतों ने ग्रीन दीवाली मनाई किन्तु कम ही सही, प्रदूषण तो है|
खैर, अब लोगों से मिलने का समय हो गया था और मोहल्ले में लोगों से मिलने निकला तो देखा कि लोग पटाखे जला रहे है और रुक-रुक कर सेल्फी ले रहे है| आखिर सोशल मीडिया हेतु अपडेट रहना भी है और खुद के स्टेटस को अपडेट करना भी है| इनकी भी हालत उस त्योहारी अख़बार की तरह ही है जहाँ विचार कम किन्तु विज्ञापन ज्यादा होते हैं| चलो, दो दिन अख़बार नही आएगा और देश में एक अजब सी शांति होगी| शायद अगले अख़बार में दीवाली मिलन समारोह की खबरें आएं और उन्हें कुछ ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाए| आखिर, सियासी परिवेश के पोषण के लिए बहुत कुछ पैदा किया जाता है न!
एक हफ्ते के इस त्योहर में लक्ष्मी की पूजा की तयारी खूब हुई; समय और मुहूर्त के हिसाब से अर्चना और आरती भी हुई किन्तु जैसे ही लक्ष्मी आशीर्वाद देने वाली थी कि कुछ मित्रों के घर में जुए की एक बिसात बैठ गई और इंसानी फितरत का एक राज़ पुन: उजागर हुआ कि किसी भी वस्तु की कीमत मात्र उसके उपलब्धता पर निर्भर करती है| जैसे ही लक्ष्मी मिली तो दारु की चुस्कियां लेते हुए उसको दाँव पर लगा दिया|
चलिए इन अनेकों विचारों और सियासी आबो-हवा के बीच, स्वादिष्ट भोजन का आनंद लेते हुए, उस शेर को दोहरा लेते है जिसमे किसी ने बहुत खूब कहा है-
“लकीरें खीच रखी है चंद मतलबी लोगों ने थाली में,
वरना फर्क ही कहाँ है मेरी ईद और तेरी दिवाली में”
अगली बार इससे भी अच्छी और स्वस्थ मानसिकता वाली दीवाली की कामना करते हुए आपको सबको शुभ दीवाली की मंगल कामनाएं!