डॉ अमेय त्रिपाठी
“वो बचपन वाले दिए ,फिरसे आज जलाते हैं
फिर से इंद्रधनुष सी खुशियां ,इस दिवाली लाते हैं
फिरसे अपने अंदर वो नवदीप जलाते हैं
फिर से सपनो की कोई कच्ची सेज सजाते हैं.
स्वप्नलोक के राजकुमार से अपने को बन जाने दे
सारी बातें भूलकर,खुशियों को अंदर आने दे.
आज पुरानी यादों के फिर से दिए जलाते हैं
फिर से इंद्रधनुष सी खुशियां ,इस दिवाली लाते हैं
जीवन के सारी गांठों को आज यहीं उतार दे.
अपने अबोध अबाध से मन को आज हास्य से तार दे .
आज नहीं कोई प्रवल कुनीति ,आज नहीं कोई स्वार्थ संचन
आज नहीं कोई छल जीवन में, आज नहीं कोई व्यर्थ प्रवंचन
आज न कपड़ो के रफू दिखे और न खाली जेबो की बात हो
आज मलंग साधु के जैसे निस्चल स्वंत्र उन्माद हो
आज निर्दोष शैशव सुख से फिर से आँख मिलाते हैं
फिर से इंद्रधनुष सी खुशियां ,इस दिवाली लाते हैं
आज किसी से बैर नहीं ,आज न तेरा मेरा हो
आज प्रेम का , आज दान का , मन में बसा सवेरा हो.
आज दया का स्वांग नहीं हो , आज न कोई गैर हो
आज किसी से द्वेष नहीं हो , न आज किसी से बैर हो
आज किसी बेचारे को फिर से ,हिम्मत दिलवाते हैं
फिर से इंद्रधनुष सी खुशियां ,इस दिवाली लाते हैं
आज न कोई भूखा सोये , न कोई आज उदास हो
आज न कोई छूप कर रोये ,न बुझी हुयी हर आस हो
आज न कोई छोटा हो, न कोई किसी से दीन हों
आज के दिन सब समान हो ,सभी दुखो से हीन हों
आज बच्चो की किलकारी से जीवन को सजाते हैं
जैसे बचपन में खुशियां बाटी थी, फिर से उसे दोहराते हैं
फिर से इंद्रधनुष सी खुशियां ,इस दिवाली लाते हैं “