हेमन्त कुमार, विशेष संवाददाता-ICN & डॉ. रिपुदमन सिंह सहायक संपादक-ICN
नील हरित शैवाल क्या हैः-जैव उर्वरको में नील हरित काई एक महत्वपूर्ण है। नील हरित काई (सायनोबैक्टीरिया) एक जीवाणु फायलम होता है, जो प्रकाश संश्लेषण से ऊर्जा उत्पादन करते है। वायुमंडलीय नत्रजन योगिकीकरण कर, धान की फसल को आंशिक मात्रा में नत्रजन उपलब्ध कराता है। यह जौविक उर्वरक नत्रजनधारी रासायनिक उर्वरक का सस्ता एवं सुलभ विकल्प है यह धान की फसल को 25-30 कि0ग्रा0नत्रजन प्रति हेक्टेयर उपलब्ध कराता है।
नील हरित शैवाल के उपयोग जो सेन्द्रीय खाद के द्वारा मृदा की उर्वरता एवं फसल की गुणवत्ता में सुधार होता है। नील हरित शैवाल हेटरोसिष्ट के रूप में वायुमंडलीय नत्रजन का स्थिरीकरण करते है।आवश्यक पोषण तत्वः- नत्रजन, फास्फेट, मैग्नीशियम, कैल्शियम आदि प्रमुख रूप से मैग्नीज, आयरन, जिंक, कॉपर तथा मॉलीब्डेनम आदि आवश्यक पोषक तत्व की पूर्ति करता है नील हरित शैवाल को वृद्वि करने के लिए पी0एच0 6.5-8.0 तक तथा तापमान 30-35 डिग्री सेंटीग्रेड तक आवश्यक होता है।
नील हरित काई के उत्पादन की विधियॉः-इस जैव उर्वरक को तैयार करने में कुछ विशेष बातों पर ध्यान देना आवश्यक है।
छाया से दूर, खुला स्थान
मातृ कल्चर
सिंगल सुपर फास्फेट
कीटनाशक दवा जैसे मैलाथियान
आवश्यकतानुसार चूना
पास ही पानी का खेत
नील हरित काई उत्पादन की प्रमुख विधियां मातृत्व कल्चर तथा मृदा आधारित मिश्रण है। नत्रजन का स्थिरीकृत करने वाली प्रजातियॉ आलीसोरिया टीलीप्रोक्रिम्स एनाविना नास्टांक तथा लेक्टोनेमा आदि प्रदान करती है।
टैंक विधिः- 5मी0 गुणा 8.3 मी0 के आकार का ईटों का टैंक तैयार किया जाता है। किसान भाईयों को यदि ज्यादा उत्पादन चाहिए तो किसान भाई टैंक का आकार कम या ज्यादा कर सकते है।इस टैंक में दोमट मिट्टी लगभग 1-15 कि.ग्राम को बारीक पीसकर अच्छे से चूर्ण बनाकर 1 मीटर की दर से टैंक में फैला देना चाहिए तथा किसान भाइयों को ध्यान देना चाहिए की मृदा अम्लीय है तो किसान भाईयो को चूना और अगर क्षारीय है तो जिप्सम का प्रयोग करना चाहिए। जिसमें नत्रजन एंव सूक्ष्म जीव की संख्या कम हे या खाली पड़ी मिट्टी (पड़ती) की मृदा का उपयोग करना चाहिए।
नील हरित शैवाल वाले टैंक में पानी को 4-6 इंच तक भरना चाहिए। जो कि स्थानीय स्थित एवं वाष्पीकरण की दर पर निर्भर करता है।टंकियों में 10-12 से.मी. पानी भर दें तथा 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट प्रति हे0 की दर से डाल दें और यदि टैंक के पानी का पी.एच. बड जाऐ तो जो 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट डालने से पानी के पी0एच0 में कोई ज्यादा कमी नहीं आती है।टंकी में 50 ग्राम कार्बोफयूरान 20-25 मि0 लीटर एन्डोसल्फान मिला दें ताकि मच्छर या अन्य कीडे मकोडे़ टंकी के पानी में प्रजनन न कर सके।
उपरोक्त सभी चीजों के पानी में ठीक से मिलने के बाद छोड़ दे ताकि मिट्टी पानी की टंकी के सतह पर बराबर बैठ जाये। इसके उपरान्त नील हरित शैवाल का प्रारम्भिक कल्चर 100 ग्राम प्रति स्कॉयर मीटर की दर से सावधानी पूर्वक पानी की सतह पर छिड़क दें।10 से 15 दिन के अंदर नील हरित शैवाल की मोटी परत पानी उग आयेगी। यदि इस दौरान टंकी में पानी की सतह 5 से0मी0 से कम होती है तो पुनः पानी आवश्यकतानुसार 5-7 से0मी0 तक भर दें।
10 से 15 दिन के बाद नील हरित शैवाल की मोटी परत बन जाने पर टंकी का पानी पाइप की सहायता से निकाल दें या पानी कम हो गया हो 2-3 से.मी. मात्र बचा हो तो धूप में ही छोड़ दें। 2-3 दिन में पानी खुद ही सूख जायेगा। पानी सूखने के बाद नील हरित शैवाल की मिट्टी के साथ पपड़ी बन जायेगी। इस पपड़ी को खुरचकर पॉलीथीन के थैलों में 1कि0ग्रा0 या 500 ग्रा0 के पैकेट बना लें।पुनः टंकी में 10-12 से.मी. पानी भरकर खाद, कीटनाशी एवं अन्य आवश्यक पदार्थ उपरोक्त वर्णित विधि के अनुसार डालकर 10-12 दिन में पुनः उत्पादित किया जा सकता है। हर साल में 20-25 बार नील हरित काई का उत्पादन किया जा सकता है। खरीफ सीजन में इन जैविक हरित खाद का प्रयोग धान की फसल में कर सकते हैं जिससे धान की फसल की उत्पादन एवं मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।
नील हरित शैवाल को बनाने में निम्नलिखित सावधानियॉः-
उत्पादन इकाई खुली धूप में बनानी चाहिए तथा अधिक समतल धरातल पर शैवाल की वृद्वि अच्छी होती है।
सिंगल सुपर फास्फेट को एक बार में डालने पर कभी-कभी पानी का पी.एच. कम हो जाता है।
नत्रजन खाद का प्रयोग भूलकर भी टंकियों, गड्ढ़ों तथा जैव उवर्रक बनाते समय नहीं करना चाहिए।
नत्रजन खाद के डालने से शैवालों की वृद्वि धीमी हो जाती है।
कीड़ो व मच्छर के प्रजनन को रोकने के लिए कीटनाशक का प्रयोग करना चाहिए अन्यथः नील हरित शैवाल की वृद्वि कम हो जाती है।
टंकी व गड्ढ़ों में अधिक पानी नहीं होनी चाहिए क्योंकि ज्यादा पानी होने से शैवाल की पपड़ी बनने में अधिक समय लगता है।
जब नील हरित शैवाल की मोटी तह बन जाये तब बचा पानी निकाल देना चाहिए और जैव उर्वरक को सुखा कर खुरच लेना चाहिए।