नई दिल्ली। भारत में एचआईवी एवं एड्स के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस बीमारी ने कई लोगों को अपने जाल में लिया है। जिस कारण इस बीमारी से ग्रसित लोगों के साथ भेदभाव किया जाता है। लेकिन अब देश में एचआईवी एवं एड्स के मरीजों के साथ भेदभाव करना अपराध की श्रेणी में माना जाएगा।केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से एचआईवी/एड्स अधिनियम, 2017 की अधिसूचना जारी कर दी गई है। जिसमें कहा गया है कि अगर कोई एचआईवी एवं एड्स के मरीजों के साथ भेदभाव करता है तो उसे दो साल तक की जेल और एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। अधिसूचना में बताया गया है कि 10 सितंबर से इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया है। इस अधिनयिम के लागू हो जाने के बाद एचआईवी या एड्स पीडि़तों को संपत्ति में पूरा अधिकार और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी हर मुमकिन मदद मिल सकेगी।इस नए प्रावधान के तहत एचआईवी पीडि़त नाबालिग को परिवार के साथ रहने का अधिकार मिलता है और उनके खिलाफ भेदभाव करने और नफरत फैलाने से रोकता है।इसके साथ मरीज को एंटी-रेट्रोवाइरल थेरेपी का न्यायिक अधिकार मिल जाता है। इसके तहत हर मरीज को एचआईवी प्रिवेंशन, टेस्टिंग, ट्रीटमेंट और काउंसलिंग सर्विसेज का अधिकार मिलेगा। साथ ही इस एक्ट के तहत राज्य और केंद्र सरकार को ये जिम्मेदारी दी गई है कि मरीजों में इंफेक्शन रोकने और उचित उपचार देने में मदद करे। इस बिल में इन मरीजों के खिलाफ भेदभाव को भी परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि मरीजों को रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य प्रॉपर्टी, किराए पर मकान जैसी सुविधाओं को देने से इनकार करना या किसी तरह का अन्याय करना भेदभाव होगा। इसके साथ ही किसी को नौकरी, शिक्षा या स्वास्थ्य सुविधा देने से पहले एचआईवी टेस्ट करवाना भी भेदभाव होगा।यूएनएआईडीएस गैप रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 2015 तक 20 लाख के आस-पास लोग एचआईवी पीडि़त थे। अकेले 2015 में 68,000 से ज्यादा एड्स से संबंधित मौतें हुई थीं, वहीं 86,000 नए लोगों में एचआईवी इन्फेक्शन के लक्षण पाए गए थे। इसके साथ ही एचआईवी/एड्स पीडि़तों के साथ भेदभाव की समस्या अलग है ही इसलिए ये एक्ट काफी अहम है।
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