आलोक सिंह, एडिटर-आई.सी.एन.
मेरी विनम्र श्रद्धांजलि अटल जी को, एक बार अवसर प्राप्त हुआ था अटल जी से भेंट का,
बात उन दिनों की है जब हम लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे , उन दिनों हमारे भूगर्भ शास्त्र के विभाग में वहीं के छात्रों का एक सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन जिसका नाम “हैलीज़” था।
हैलीज़ उन दिनों काफी प्रतिष्ठित संस्था थी विश्वविद्यालय की और इसके द्वारा आयोजित त्रिदिवसीय छात्र पर्व आयोजन किया जाता था जिसका उस वक़्त के सभी महाविद्यालय जो कि लखनऊ या उसके बाहर के थे बढ़चढ़कर इसकी विभिन्न प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेते थे।
यह छात्र पर्व पूरी तरह से छात्रों के द्वारा ही संचालित किया जाता था। इसमें 2 दिन प्रतियोगिताएं विभाग में आयोजित होती थी तथा तीसरे दिन के कार्यक्रम लखनऊ के किसी बड़े प्रेक्षागृह में होते थे, इसी दिन शहर के प्रतिष्ठित व्यक्ति को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता था, इसी क्रम में तय किया गया कि अटल जी बुलाया जाए, कारण स्पष्ट था, अटल जी को युवाओं से विशेष स्नेह एवम अच्छे वक्ता होने साथ ही एक संजीदा कवि भी थे।
सो एक समिति का गठन हुआ और मुझे उसमें सम्मिलित किया गया, साथ ही न्योता देने की ज़िम्मेदारी भी। ये हमारे लिए किसी लॉटरी लग जाने जैसा था, हम तय वक़्त पर उनके लखनऊ आवास पर पहुंचे, उन्होंने थोड़ी देर में भीतर बुलाकर अपने पास वाले सोफे पर बिठाकर बड़ी उत्सुकता से हमारी बात सुनी, फिर कुछ अपनी कही, में उनके साथ वुसी सोफे पर दूसरे कोने में बैठा सिर्फ उन्हें देख रहा था और सोच रहा था कि इतने ऊंचे शिखर पर पहुंचने बाद भी कोई इतना सरल कैसे हो सकता है, लेकिन वो न सिर्फ सरल अपितु बेहद चुम्बकीय शख्सियत के मालिक थे।
अपने पहले से निर्धारित कार्यक्रम की वजह से वे आने में असमर्थ थे लेकिन उन्होंने ढेरों शुभकामनाएं दी और हमें जीवनभर का अविस्मरणीय अनुभव, जिसे काफी हद तक जीवन मे उत्तर भी है।
अटल जी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
