आलोक सिंह, न्यूज़ एडिटर, आई.सी.एन. ग्रुप
सुबह सुबह की बारिश
उस पर ये मौसम की साजिश
बूंद बूंद भीगती मिट्टी की सौंधी सी खुशबू
रफ्ता रफ्ता कम होती ये सीने की तपिश
सुबह सुबह…
सरकती ज़मीन और खामोश सरकते पहाड़
यूँ लम्हा लम्हा पड़ता रहा ज़मीं को फालीज़
सुबह सुबह…
टूटते दरख्त और टूटती सब उम्मीदें
अब ना गुले खुशबू और न कशिश
सुबह सुबह…
अबके बहार में मिल जाए क़ुर्बत-ऐ-मंज़िल
ख़ामोशी से धुल जाए कुदरत की ख़लिश
सुबह सुबह की…