केविवि में मीडिया कार्यशाला सम्पन्न, भारी संख्या में जुटे सहभागी, पत्रकारों ने मीडिया विशेषज्ञों से साझा किए अनुभव
वर्धा-महाराष्ट्र। महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय मीडिया कार्यशाला बुधवार को सम्पन्न हो गया। इस कार्यशाला में बिहार के पत्रकारों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और देश के जाने-माने मीडिया संस्थानों से आए विशेषज्ञों की बात सुनी और अपना अनुभव साझा किया। ‘21वीं सदी में मीडिया: उभरते परिदृश्य’ विषय पर आयोजित इस कार्यशाला के अंतिम दिन महात्मा गाँधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा-महाराष्ट्र के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. अनिल कुमार राय ने अपने संबोधन में उपस्थित पत्रकारों, विद्यार्थियों और अध्यापकों को पत्रकारिता दिवस की बधाई देते हुए पत्रकारिता को सामाजिक विसंगतियों को दूर करने वाला हथियार बताया। उन्होंने कहा कि समय के साथ ही पत्रकारिता में भी परिवर्तन हो रहे हैं।
भारत में जब पत्रकारिता की शुरुआत हुई थी तब देश गुलाम था। पत्रकारों के सामने देश को आजाद कराना लक्ष्य था जिसके लिए उन्होंने जी-जान से कोशिश की। तब के पत्रकार अपनी पत्रकारिता के लिए अपने घर का बर्तन और पत्नी के गहने बेचने के लिए तैयार थे। आज स्थिति बदल गई है। आज मीडिया मिशन से प्रोफेशन और प्रोफेशन से संशेसन के दौर से भी आगे गुजर गया है। हम पत्रकारों को अपने अंदर झांकने की जरूरत है ताकि पत्रकारिता से जीवन यापन भी हो और सामाजिक विसंगतियां भी दूर हों। निश्चिततौर पर पत्रकारिता एक सम्मानजनक और जिम्मेदारी भरा पेशा है लेकिन कोई पत्रकार किसी व्यक्तिविशेष या समाज को भय दिखाकर सम्मान नहीं हासिल कर सकता। सम्मान अपने काम की बदौलत ही मिल सकता है। हर ख़बर जो समाज की बेहतरी के उद्देश्य से लिखी गयी है सम्मान के काबिल है। सनसनीखेज ख़बरों से एकबार पाठकों या दर्शकों की नज़र में तो आया जा सकता है लेकिन सदैव नज़र में बने रहने के लिए तथ्यपूर्ण ख़बर ही एकमात्र सहारा है।
सनसनीखेज ख़बरों से हमेशा पाठक या दर्शक आपसे जुड़े नहीं रहेंगे। इस बात को आज की मीडिया समझ चुकी है उसीका नतीजा है कि कुछ मीडिया संस्थान ‘नो निगेटिव न्यूज़’ कैप्शन के साथ ख़बरों को प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि आज हर तरह से अन्य पेशों में गिरावट आई है, पत्रकारिता भी उससे अछूता नहीं है। इसके बावजूद पत्रकारिता की तरफ नज़र रखने वाले लोगों को निराश होने की जरूरत नहीं है। मीडिया के विरूद्ध उत्पन्न हुए अविश्वास के बाद भी संभावना है। भले ही बड़े शहरों में मीडिया का कारपोरेटाइजेशन हो गया है लेकिन अंचल के पत्रकार आज भी कम वेतन और सीमित सुविधाओं में मेहनत और ईमानदारी से पत्रकारिता कर रहे हैं। हमें उनकी तरफ भी देखने की जरूरत है। उन्होंने मीडिया के दूसरे पहलू की तरफ इशारा करते हुए कहा कि संपादकों की भी अपनी मजबूरी है। किस ख़बर को छापना है और किस ख़बर को हटा लेना है यह तय करने में उसे भी माथापच्ची करनी पड़ती है। आज का संपादक दबाव में रहने लगा है। शायद इसीलिए ब्रांड मैनेजर का चलन आ गया है।
आज जिस पत्रकार की पहुंच उद्यागपति, नेता और मंत्री से जितनी ज्यादा है उसके ब्रांड मैनेजर बनने की संभावना उतनी अधिक है। सबकुछ के बावजूद पत्रकारिता में संभावना बाकी है। सूचना एवं तकनीकि क्रांति के दौर में आज हर नागरिक विशेषकर युवा आज पहल कर सकता है। एक चैनल को चलाने के लिए कम से कम 100 करोड़ रुपये की लागत है, रेडियो चैनल या अख़बार शुरू करने के लिए भी पूंजी की जरूरत है लेकिन इसी दौर में इंटरनेट नाम का एक ऐसा सस्ता और सर्वसुलभ साधन है जिसकी सहायता से नगण्य खर्च में हम अपना संदेश बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचा सकते हैं। संदेश में दम होना चाहिए, संदेश तथ्यपूर्ण, खोजपूर्ण और सत्य होनी चाहिए। उन्होंने हवाई जहाज में यात्री के साथ अभद्रता जैसी घटनाओं का उदाहरण देते हुए बताया कि आज तमाम न्यूज चैनलों के ब्रेकिंग न्यूज चैनल के कैमरे से नहीं बल्कि मोबाइल से रिकॉर्ड हो रहे हैं। उन्होंने अपनी बात को दोहराते हुए कहा कि पत्रकारिता से निराश होने की जरूरत नहीं है।
सामाजिक विसंगतियों के विरुद्ध काम करने का जज्बा बनाए रखने की जरूरत है। तकनीकि के दौर में पैसा और यश दोनों की पत्रकारिता के क्षेत्र में मुश्किल नहीं है। कार्यशाला में बतौर वक्ता अपने संबोधन में हिन्दुस्तान टाइम्स के असिस्टेंट एडिटर अरूण कुमार ने सीधे पत्रकारों से मुखातिब होते हुए कहा कि अगर आपको अपनी शाख बचानी है तो आपको वास्तविकता का सहारा लेना पड़ेगा। ब्रेकिंग न्यूज और फेक न्यूज से ज्यादा दिन तक मीडिया में टिका नहीं जा सकता है। बनावटीपन से हटकर वास्तविकता की ओर आना पत्रकारिता में आक्सीजन का काम करता है। बिना आक्सीजन के ज्यादा देर तक कोई टिक नहीं सकता। आज के पत्रकार टेक्नॉलाजी का सहारा कॉपी-पेस्ट करने के लिए न करें, इससे उनकी विश्वसनीयता पर संकट आता है। उन्होंने ‘कहा जाता है- सुना जाता है’ नाम के एक पुराने अख़बार का उदाहरण देते हुए कहा कि आजकल इस तरह की ख़बरे भी खुलेआम आ रही हैं। जो ख़बर नहीं हैं फिर भी गॉसिप के तौर पर प्रस्तुत की जाती हैं।
आज गंभीर ख़बरों को पेज में उतनी प्रमुखता से भले ही स्थान न मिले लेकिन किसी चर्चित अदाकारा के आगमन या कार्यक्रम की ख़बर मीडिया में जरूर स्थान पा जाती है। उन्होंने पत्रकारों को सचेत करते हुए कहा कि कोई व्यक्ति विशेष अचानक से आपको जरूरत से ज्यादा तरजीह देने लगे तो उससे सचेत हो जाने की आवश्यकता है। उन्होंने अंग्रेजी के कुछ शब्दों का इस्तेमाल करते हुए कहा कि ख़बरों में फैक्ट, चेक- क्रॉसचेक और वैरिफिकेशन जरूर करें। ये मीडिया के लिए जरूरी है। इसीसे मीडिया की विश्वसनीयता बची रह सकती है। शगुन टीवी के प्रबंध निदेशक अनुरंजन झा ने अपने संबोधन में कहा कि सामाजिक बदलाव के लिए पत्रकारिता से बढ़ियां और शार्टकट हथियार कोई दूसरा नहीं है। इतना जरूर है कि अगर आपको पाठक, दर्शक या श्रोता तक अपनी बात पहुंचानी है तो आपको तकनीकि से अपडेट रहना होगा और अपने कंटेट पर काम करना होगा। उन्होंने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि हमें अपनी कीमत मालूम होनी चाहिए। हम किस उद्देश्य से काम कर रहे हैं यह हमें मालूम होना चाहिए तभी हम अपने काम से संतुष्ट रह सकते हैं और समाज में कुछ बदलाव लाने में भी सफल हो सकते हैं।
जनसत्ता के वरिष्ठ पत्रकार आदर्श झा ने बताया कि फेसबुक आज दुनिया मे सबसे ज्यादा कंटेट जनरेटर है। आज की ख़बरों में फेसबुक जैसे सोशल मीडिया का योगदान है। यह सबके लिए सुलभ है। जरूरत सिर्फ जज्बे के साथ काम करने की है सुविधा और साधन सबके लिए एक समान उपलब्ध है। ज़ी-टीवी बिहार के पॉलिटिकल एडिटर शैलेन्द्र कुमार ने कार्यशाला में उपस्थित विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि पत्रकारिता में आने का इरादा रखने वाले विद्यार्थियों को महात्मा गाँधी के विषय में जरूर अध्ययन करना चाहिए। पत्रकारिता में कैसी भाषा का प्रयोग होना चाहिए यह सीखना हो तो गाँधी जी की पत्रकारिता देखनी चाहिए। केविवि के वाणिज्य एवं प्रबंध विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता डॉ पवनेश कुमार ने उपस्थित मीडिया विशेषज्ञों, पत्रकारों, विद्यार्थियों समेत केविवि के कुलपति प्रो. अरविन्द अग्रवाल, कार्यशाला के संयोजक डॉ अमरेन्द्र त्रिपाठी, सह आयोजन सचिव डॉ भानु प्रताप, कोषाध्यक्ष डॉ शिवेन्द्र सिंह, विशेष सहयोग के लिए केविवि के डॉ विकास पारीक और विश्वविद्यालय के अधिकारियों-कर्मचारियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम के अंत में प्रतिभागियों को बिहार सरकार के पूर्व मंत्री और गांधीवादी चिंतक ब्रजकिशोर सिंह ने अपने आशीर्वचन के साथ संबोधित किया।