एससी/एसटी एक्ट पर आएगा अध्यादेश, संविधान की नौवीं अनुसूची में डाला जाएगा कानून

12 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने तक अध्यादेश जारी करने या न करने के बारे में सरकार विचार-विमर्श कर रही है। अभी कर्नाटक में आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू है।
नई दिल्ली। मोदी सरकार अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अध्यादेश लाने की तैयारी में है ताकि मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने जिन बदलावों का आदेश दिया था, उन्हें पलटा जा सके। सरकार इस अध्यादेश के बाद संसद के मॉनसून सेशन में संविधान संशोधन विधेयक लाएगी। इस विधेयक के जरिए इस कानून को संविधान की नौंवी अनुसूची में डाल दिया जाएगा। ऐसा हो जाने पर अदालत इस कानून में बदलाव नहीं करविपक्ष और अपने कुछ सांसदों के दबाव में आई सरकार ने अध्यादेश का मसौदा विचार-विमर्श के लिए मंत्रालयों के पास भेजा है। सूत्रों ने संकेत दिया कि गृह मंत्रालय, आदिवासी मामलों के मंत्रालय और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने इस पर अपनी सहमति दे दी है। इस अध्यादेश में कहा जाएगा कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम अपने मूल रूप में लागू होगा। जिस फॉर्मूले पर विचार किया जा रहा है, उसके मुताबिक, चाहे कोई भी किसी भी कोर्ट का जजमेंट/डिक्री/ऑर्डर हो या कोई दूसरा कानून हो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा और इस अधिनियम के प्रावधान वैध रहेंगे।12 मई को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होने तक अध्यादेश जारी करने या न करने के बारे में सरकार विचार-विमर्श कर रही है। अभी कर्नाटक में आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू है। सूत्रों ने बताया कि अध्यादेश 5-7 दिनों में जारी किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम 1989 के तहत आरोप लगते ही आपराधिक मामले दर्ज करने और आरोपियों की गिरफ्तारी करने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि इस एक्ट के तहत किसी सरकारी कर्मचारी को गिरफ्तार करने से पहले डिप्टी सुपरिंटेंडेंट लेवल या इससे ऊपर के रैंक के अधिकारी से शुरुआती जांच अनिवार्य रूप से करानी होगी। जस्टिस आदर्श गोयल और जस्टिस यू यू ललित की बेंच ने इस एक्ट के तहत अग्रिम जमानत मिलने पर रोक को भी हटा दिया था और यह शर्त लगा दी थी कि किसी सरकारी कर्मचारी पर तभी मुकदमा चलाया जा सकेगा, जब हायर अथॉरिटीज से उसके लिए इजाजत ले ली जाए। अध्यादेश के अलावा सरकार एक संविधान संशोधन भी पेश करेगी, जिसके जरिए इस एक्ट को संविधान की नौंवी अनुसूची में डाल दिया जाएगा। ऐसा होने पर इस एक्ट में भविष्य में अदालत कोई बदलाव नहीं कर सकेगी। जिस संशोधन पर विचार किया जा रहा है, उसके मुताबिक एक्ट को संविधान के आर्टिकल 31 बी के तहत प्रोटेक्शन हासिल होगा। आर्टिकल 31बी कहता है कि नौंवी अनुसूची में दर्ज किसी भी कानून को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि वह किसी अदालत या ट्राइब्यूनल के किसी जजमेंट, डिक्री या ऑर्डर से मेल नहीं खाता या इनके जरिए दिए गए अधिकारों को छीनता है। सरकार को इस संशोधन विधेयक को पास कराने में कोई बाधा नहीं पडऩे की उम्मीद है क्योंकि विपक्ष खुद को ऐसे बदलाव के विरोधी के रूप में नहीं दिखाना चाहेगा।

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