आलोक सिंह, न्यूज़ एडिटर, आई.सी.एन. ग्रुप
“ न वो काबे से निकला न मंदिर से वो
ये कौन से ठेकेदार तबाही पर उतरे जो
तेरी तालिमों में तो सारे रास्ते मोहब्बत को
फिर ये निकले किस रास्ते से बतला तो दो,
ज़ुबाँ कोई भी सही सबक एक ही मिला सबको
फिर ये कौन सी जगह इतना ज़हर मिला तुमको
ज़हर इतना तो साँपों में भी नही देखा हमने तो
कितने साँपों को डसकर ये जहर मिला तुमको
तुम ये कौनसी जगह ले आये हो क़ायनात को
ये ज़िम्मा तो नही दिया था परवरदिगार ने तुमको
हमने तो ये गुलशन हरा भरा ही दिया था तुमको
फिर ये ख़िज़ाँ से दोस्ती कब गाँठ ली बता तो दो,
तुम भी जाने कैसी कमाल की बातें करते हो
जलते शोलो को तेल से बुझाने की बात करते हो
और घर किसने जला दिया तुम्हारा क्यों पूछते हो
जब क़ातिल को अपने ही घर दावत पर बुलाये बैठे हो
ज़माना बदतमीज़ कितना हो गया है कहते फिरते हो
खुद अल्फ़ाज़ दहकते ज़ुबाँ पर लिए गली गली फिरते हो
और शिकायत करूँ भी तो किस से करूँ मुझे बता तो दो
जबके अपने चाँद को मज़हबों में बंटते देखा उसने तो।।”