आलोक सिंह, न्यूज़ एडिटर, आई.सी.एन. ग्रुप
खामोशी से तुम सब कह जाती हो
जब खामोश नज़रों से मुझे देखती हो
अब वो ख़ामोश नज़रे मैं पढ़ लेता हूँ
कितने ही सवालों के ग़ुबार देखता हूँ
गुमसुम शाम और रात सी ठहर जाती हो
जब भी आंखों से अश्क़ बहा जाती हो
मंज़िलें खामोश तेरे आने की राह देखती है
और सूने रास्तों पर तेरे क़दमों निशान ढूँढती हैं
कितने अफसानों को तुम पीछे छोड़ जाती हो
जब भी ख़ामोश निगाहों से मुड़के देखती हो
महफिलें भी देखो कितनी वीरान सी हो गईं हैं
तेरी रुखसती से ये भी वाकिफ हो गयी हैं
कह दिया करो वो सबकुछ जो दिल में रखती हो
मेरी संजीदगी पे भी इतना यकीन क्यों रखती हो
महज़ इंसान हूँ मैं भी कोई फरिश्ता तो नही
जवाब यूँ हर सवाल के हों ज़रूरी तो नहीं
खामोशी से तुम सब कह जाती हो
जब खामोश नज़रों से मुझे देखती हो।।