अहमदाबाद। नरोदा पाटिया दंगे के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय ने पूर्व मंत्री माया कोडनानी को निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया है।बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी के आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है। एसआईटी कोर्ट ने बाबू बजरंगी को मृत्युपर्यंत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इसके अलावा हरीश छारा और सुरेश लांगड़ा समेत 31 आरोपियों को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सचा को हाई कोर्ट ने बरकरार रखा है।इस तरह जिन 32 लोगों को निचली अदालत ने सजा सुनाई थी, उनमें से सिर्फ माया कोडनानी को ही राहत मिली है।
उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि माया कोडनानी की वारदात वाली जगह पर मौजूदगी साबित नहीं हुई है।जस्टिस हर्षा देवानी और जस्टिस ए. एस. सुपेहिया की पीठ ने मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद पिछले साल अगस्त में फैसला सुरक्षित रख लिया था। अगस्त 2012 में एसआईटी की विशेष अदालत ने राज्य की पूर्व मंत्री और बीजेपी नेता माया कोडनानी समेत 32 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कोडनानी को 28 साल के कारावास की सजा सुनाई गई थी। इसके बाद कोडनानी और बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी समेत सभी आरोपियों ने हाई कोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी।
बाबू बजरंगी को निचली अदालत ने मौत तक के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी।गुजरात में 2007 से 2009 के दौरान महिला एवं बाल कल्याण राज्य मंत्री रहीं माया कोननानी को नरोदा पाटिया मामले में गिरफ्तारी के बाद इस्तीफा देना पड़ा था। कोडनानी पर आरोप था कि उन्होंने दंगाइयों को मुस्लिम बस्तियों में हमले के लिए अपने भाषण के जरिए उकसाया था। नरोदा गाम दंगा के मामले में भी कोडनानी आरोपी हैं। यह दंगा भी उसी दिन हुआ था, जब नरोदा पाटिया में हिंसा हुई थी। इसमें मुस्लिम समुदाय के 11 लोगों की मौत हो गई थी।
पेशे से स्त्री रोग विशेषज्ञ रहीं माया कोडनानी को दंगे के मामले में 2009 में गिरफ्तार किया गया था। अगस्त, 2012 में विशेष एसआईटी अदालत ने उन्हें दोषी करार देते हुए 28 साल की आजीवन कैद की सजा सुनाई थी। हालांकि 2014 में स्वास्थ्य खराब होने के आधार पर उन्हें जमानत मिल गई थी। वह इन दिनों लोप्रोफाइल जिंदगी जी रही हैं और राजनीतिक गतिविधियों से दूर हैं। 26 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के गोधरा स्टेशन पहुंचने पर उस बोगी में आग लगा दी गई थी, जिसमें अयोध्या से लौट रहे 57 कारसेवक सवार थे। इसके बाद पूरे गुजरात में माहौल खराब हो गया और इसी कड़ी में 28 फरवरी, 2002 को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया में दंगा हुआ, जिसमें 97 लोग मारे गए।